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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 322 विज्ञान में खोजता एक है, ज्ञान सबका हो जाता है। धर्म में खोजता एक है, उसका ही ज्ञान रहता है, दूसरे का नहीं हो पाता। इसलिए गवाह नहीं जुटाए जा सकते। तुम कहोगे भी तो कोई तुम्हारी मानेगा न। लोग हंसेंगे। लोग पागल समझेंगे। क्योंकि जिस बात के लिए गवाह न हो और जिसे तुम दूसरे के सामने प्रकट न कर सको उसकी मान्यता कौन करेगा ? तुम कहते हो, मैंने ईश्वर को पा लिया। लोग कहेंगे, दिखाओ कहां है ईश्वर ? जब तुमने पा लिया, हमें भी दिखा दो। तब तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तुम कहोगे, जान लिया आत्मा को । लोग कहेंगे, थोड़ा झलक हमें भी दिखा दो। तब तुम कठिनाई में हो जाओगे। क्योंकि तुमने जो झलक पाई है वह नितांत वैयक्तिक है । तुमने जो जाना है वह तुम दूसरे को न जना सकोगे। तुम ज्ञान को ऐसा दे न सकोगे, हस्तांतरित न कर सकोगे। ट्रांसफरेबल नहीं है। तुम्हारे भीतर पैदा होता है; तुम उससे आपूर भर जाते हो, आकंठ भर जाते हो। तुम्हारा रोआं-रोआं उसे ध्वनित करने लगता है; तुम्हारी धड़कन धड़कन में उसका गीत होता है। उठते हो, बैठते हो, तो उसी में; चलते हो, फिरते हो, तो उसी में; वही सब कुछ हो जाता है तुम्हारे जीवन का। एक अपूर्व वातावरण की तरह तुम्हें घेर कर चलता है तुम्हारा अनुभव। लेकिन तुम किसी को भी भागीदार न बना सकोगे। निकटतम भी, तुम्हारा प्रिय से प्रिय व्यक्ति भी बाहर ही खड़ा रहेगा, तुम्हारे अंतःकक्ष में प्रवेश न पा सकेगा। इसलिए धर्म हर बार खोजा जाता है, हर बार खो जाता है । बुद्ध खोज लेते हैं, खो जाता है। लाओत्से खोज लेता है, खो जाता है। हजार बार खोजा जाता है, फिर-फिर खो जाता है। और जब भी तुम्हें खोजना होगा तो तुम्हें नए सिरे से ही खोजना होगा। इसलिए धर्म का कोई विज्ञान नहीं बन सकता; उसे पाठशालाओं में पढ़ाया नहीं जा सकता। उसका कोई शास्त्र नहीं बन सकता। कोई दूसरा तुम्हें दे ही नहीं सकता। यह है उसका रहस्य । खजाना इतना रहस्यपूर्ण है कि अकेला अपने अकेलेपन में ही पाता है। वह अंतरतम का स्वाद है । पगडंडी है एकांत की । इसलिए तो महावीर ने उस परम रहस्य को कैवल्य कहा है। महावीर ने बड़ा अनूठा शब्द चुना है । सब शब्द फीके हैं। औरों ने भी शब्द चुने हैं, लेकिन महावीर का शब्द निश्चित अनूठा है। कैवल्य का अर्थ है : टोटल, एब्सोल्यूट लोनलीनेस। कैवल्य का अर्थ है: बिलकुल अकेले; केवल तुम, और कोई भी नहीं । केवल तुम्हारी चेतना, और कोई भी नहीं। वह ज्ञान कैवल्य है । वह रहस्यपूर्ण है। बंधे हुए रास्तों की तरह नहीं है जहां भीड़ चल सके; बड़ा बारीक और महीन रास्ता है। जीसस ने कहा है, अगर मेरे मार्ग पर चलना है तो बड़ा संकीर्ण है मार्ग, नैरो इज़ दि गेट। बड़ा संकीर्ण है द्वार । कबीर ने कहा है, प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय । वहां दो भी न बन सकेंगे, तीन का तो सवाल ही नहीं उठता। तुम अकेले ही जाओगे- नग्न, निर्वस्त्र, धारणा - शून्य । तुम एक विचार भी अपने साथ न ले जा सकोगे, व्यक्ति की तो बात और तुम शास्त्र अपने साथ न ले जा सकोगे। तुम अपना ज्ञान भी अपने साथ न ले जा सकोगे। इसीलिए तो ज्ञानी कहते हैं, हो जाओ छोटे बच्चे की भांति अज्ञानी । क्योंकि तुम्हारा ज्ञान भी वहां साथ न जा सकेगा। तुमने जो भी कूड़ा-कर्कट सम्हाला है संसार में, बचाया है, कुछ भी तुम वहां न ले जा सकोगे। मंदिर के सब छोड़ देना होगा। जाएगी निर्वस्त्र चेतना, नग्न, नितांत अकेली । केवल तुम्हारा होश जाएगा, और कुछ भी नहीं जाएगा। लौट कर तुम गूंगे हो जाओगे । कहना चाहोगे, शब्द न मिलेंगे। बताना चाहोगे, हाथ न उठेगा। इसलिए है रहस्य : जान लिया जाए और कहा न जा सके। बाहर वैज्ञानिक कहते हैं, जिसको जान लिया उसे कहने में अड़चन क्या ? कहते क्यों नहीं? जब जान ही लिया तो कह दो ! पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक और बहुत योग्य प्रतिभा संपन्न व्यक्ति लुडविग विटगिंस्टीन ने कहा है
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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