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ताओ उपनिषद भाग ५
लेकिन उनके माध्यम से भारत का हृदय पश्चिम में प्रविष्ट हो गया। सारी दुनिया भारत की तरफ दौड़ रही है। यह एक दूसरी ही विजय-यात्रा है, जिसको मिटाने का कोई उपाय नहीं है।
पश्चिम भारत पर हुकूमत करता रहा दो-तीन सौ वर्ष। भारत ने उसकी बहुत फिक्र न की। शासक ही फिर भारत के उपनिषद, वेद, गीता के अनुवादक बन गए। शासक ही फिर भारत के साधुओं-संन्यासियों के सत्संग में पहुंच गए। पश्चिम की हुकूमत के द्वारा ही भारत ने पश्चिम पर अपनी हुकूमत का जाल फैला दिया।
लंबा समय लगेगा, तब जाहिर होगा कि कौन जीता, कौन हारा। भारत को हराना मुश्किल है, एकदम असंभव है। वह नदी को उलटी धार बहाना है। आज पश्चिम के कोने-कोने में भारत का संन्यासी है। पश्चिम के कोने-कोने में भारत के मंदिर उठ रहे हैं। पश्चिम के कोने-कोने में ध्यान करने वाले लोग हैं, प्रार्थना करने वाले लोग हैं।
पर यह बड़ा धीमा है, बड़ा सूक्ष्म है-स्त्रैण है। इसलिए तुम इसकी अखबारों में खबर न पढ़ पाओगे। यह इतने चुपचाप हो रहा है, इतने मौन हो रहा है।
मैं यहां बैठा हूं। मैं तो उन गुरुओं को भी थोड़ा आक्रामक मानता हूं जो पश्चिम जाते हैं। क्योंकि उतना भी क्या । जाना? उसमें भी थोड़ा पुरुष-गुण हो गया। मैं चुपचाप यहां बैठा रहता हूं। जिसको आना है वह आ ही जाएगा। अगर गड्डा पूरा है तो कितनी देर तक नदी यहां-वहां भटकेगी? उसे आना ही पड़ेगा।
एक गड्ढा होकर बैठ जाओ। तो दूर-दूर देशों से, देश-देशांतर से नदियां बहती चली आती हैं। ..
लाओत्से कहता है कि बड़ा देश अपने को छोटे देश के नीचे रख ले तो वह छोटे को आत्मसात कर लेता है। और यदि छोटा देश भी होशियार और कुशल हो और बड़े देश के नीचे अपने को रख ले तो वह बड़े देश को आत्मसात कर लेता है।
छोटे-बड़े का सवाल नहीं है; जो नीचे रखता है वही अंततः बड़ा हो जाता है।
'इसलिए कुछ दूसरों को आत्मसात करने के लिए अपने को नीचे रखते हैं; कुछ स्वभावतः ही नीचे होते हैं और दूसरों को आत्मसात करते हैं।' ___ पर सूत्र वही है, नियम वही है। चाहे तुम होशपूर्वक करो, चाहे तम बिन जाने करो; लेकिन जो नीचे है. आखिर में वही जीत जाता है। बीच में कितना ही शोरगुल मचे, और नदी कितने ही उफान ले और बाढ़ आए, और नदी कितने ही मनसूबे बांधे, लेकिन वे मनसूबे बीच के हैं। आखिर में गड्डा नदी को आत्मसात कर लेता है।
फिर बड़ा देश भी यही चाहता है कि दूसरों को शरण दे, और छोटा देश भी यही चाहता है कि प्रवेश पा सके और शरण पाए। इस प्रकार यह विचार कर कि वे दोनों वह पा सकें जो वे चाहते हैं, बड़े देश को अपने आप को नीचे रख लेना चाहिए।'
क्योंकि छोटे देश को नीचे रखने में वही अड़चन होगी जो छोटे आदमी को नीचे रखने में होती है। उसका अहंकार, हीनता का बोध कि मैं छोटा हूं, अड़चन देगा। बड़े को तो कोई हीनता नहीं है; वह नीचे रख सकता है।
यह जो सूत्र है, राष्ट्र, समाज, व्यक्ति, सबके लिए लागू है। क्योंकि नियम एक है। जीतना हो, हारने को मार्ग बनाओ। पाना हो, खोने की विधि सीखो। अमृत हो जाना हो, मर जाओ, मिट जाओ अपने हाथ से। अगर सब पाना हो, सब छोड़ दो। और तुम अपराजेय हो जाओगे। मैं इसे ही जिनत्व कहूंगा। और जो बिना लड़े मिलता हो उसको लड़ कर लेने वाला नासमझ है।
कबीर ने कहा है कि जो काम सुई से हो जाता हो, तलवार क्यों उठाते हो? और सच तो यह है कि यह काम बिना सुई उठाए हो जाता है। फिर तलवार क्यों उठाते हो?
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