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स्त्रंण गुण से बड़ी कोई शक्ति नहीं
तभी तो नदियां वहां गिरेंगी। अकड़े, ऊपर उठे, तो संगम न बन पाओगे। और संगम संसार का स्त्रैण गुण है। वहीं तो मिलन होता है।
हम इस देश में संगम को तीर्थ मानते रहे हैं। क्यों मानते रहे हैं तीर्थ? तीर्थ बड़ा विनम्र है। वहां बहुत सी नदियां आकर गिरी हैं। तीर्थ गड्ढा है। वह स्त्रैण गुण है। तुम भी तीर्थ में जाकर झुक जाना; स्त्रैण गुण से भर जाना; खाली हो जाना। तो भरे हुए लौटोगे।
लेकिन होता उलटा है। लोग तीर्थ जाते हैं, और अकड़ कर लौटते हैं कि हम तीर्थयात्री हैं, हम हज होकर आए, हाजी हैं। अब उनकी अकड़ ही अलग है। अब उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते।
तीर्थ यानी संगम। संगम यानी झुका हुआ, जहां नदियां गिर रही हैं। वहां जाकर तुम भी देख लेना। इसलिए तीर्थयात्रा उपयोगी है कि वहां देखना, जो झुका हुआ स्थल है, वहां तीन नदियां गिर रही हैं। ऐसे ही तुम झुक जाना, तो तुम भी बहुत सी नदियों के गिरने के स्वाभाविक स्थल बन जाओगे। कुछ करना न पड़ेगा। संगम में कुछ किया थोड़े ही है। नदियों को न बुलावा दिया है, न खींच कर नदियों को लाया गया है। ये नदियां कोई नहरें तो नहीं हैं। ये अपने से आई हैं। कोई इनको ले नहीं आया है। ये क्यों आई हैं? ये किसकी तलाश करती आई हैं? ये एक गड्ढे को खोज रही थीं जहां समा जाएं; कोई गर्भ खोज रही थीं जहां लीन हो जाएं; कोई पात्र की तलाश थी जिसको भर दें।
'स्त्री पुरुष को मौन से जीत लेती है, और मौन से वह नीचा स्थान प्राप्त करती है।'
कहती है दासी अपने को, हो जाती है मालकिन। कहती है दासी, बन जाती है रानी। अगर परमात्मा के हृदय में भी तुम्हें ऊंचा स्थान पाना हो तो तुम आखिरी से भी आखिरी हो रहना।
___ 'इसलिए यदि एक बड़ा देश अपने को छोटे देश के नीचे रखता है, तो वह छोटे देश को आत्मसात कर लेता है।'
कर ही लेगा। यही तो पूरा का पूरा उपाय है गुरु को आत्मसात कर लेने का कि तुम गुरु के नीचे अपने को रख देना। तुम गड्डा बन कर बैठ जाना वहां; गुरु की नदी तुममें गिर जाएगी, तुम भर जाओगे। जिसे भी आत्मसात करना हो, उसके नीचे गड्ढे बन कर बैठ जाना, उसके चरण पकड़ लेना। - लाओत्से कहता है, अगर बड़ा देश छोटे देश के नीचे अपने को रख दे, तत्क्षण छोटे देश को पी जाएगा। और यह पीना बड़ा प्रेम का होगा। यह कोई युद्ध से दबाया हुआ नहीं होगा, यह कोई तलवार के बल पर नहीं हुआ होगा। यह संगम होगा। यह स्त्रैण गुण से होगा।
. इसलिए तो भारत ने कभी किसी पर हमला नहीं किया; कभी चाहा नहीं हमला करना। कारण था। हमला करने की बात ही बेहूदी है। यह देश इतना बड़ा है। और इसने बहुतों को आत्मसात कर लिया। जो भी विदेशी आया, जिसने भी इस पर हमला किया, जो भी इसका मालिक बन कर बैठा, उसको यह पी गया, उसको आत्मसात कर लिया। इसका आत्मसात करना बड़ा सूक्ष्म है! जो कुछ लाओत्से कह रहा है वह भारत का पूरा इतिहास है। इसने इंच भर भी अपने से बाहर जाकर फैलाव नहीं करना चाहा। छोटी-छोटी कौमें आईं; बड़ी छोटी कौमें थीं। इस मुल्क के सामने उनका कोई इतिहास न था, कोई गौरव न था। हूण आए, यवन आए, तुर्क आए, मुगल आए; उनका कोई इतिहास न था। भटकते कबीले थे, खानाबदोश थे; कोई संस्कृति न थी। इस मुल्क में उन्होंने शासन किया। वे इस भ्रांति में रहे कि वे शासन कर रहे हैं। वे अब कहां हैं? उन सबको भारत पी गया। इसने उनके नीचे रख लिया। यह चुपचाप उनको आत्मसात कर गया।
और अब पश्चिम में पता चलना शुरू हो रहा है। और भविष्य बताएगा इस घटना को। क्योंकि ये तो बहुत सूक्ष्म रास्ते हैं। अंग्रेजों ने इतने दिन तक इस मुल्क में हुकूमत की। वह हुकूमत तो क्षणभंगुर थी; आई-गई हो गई।
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