SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 314 ऐसा हो गया दफ्तर में, वैसा हो गया। पत्नी कुछ बात चलाती है। बातचीत से भरते हैं दोनों के बीच की खाली जगह को। क्योंकि वहां खाली है; और बातचीत न रही तो खालीपन एकदम दिखाई पड़ेगा। बातचीत न रही तो फासला साफ हो जाएगा। बातचीत ही जोड़े हुए है। लेकिन प्रेमी चुपचाप बैठे रहते हैं; एक-दूसरे से सटे बैठे हैं नदी के तट पर, न कुछ बोलते हैं। बोलने की कोई जरूरत नहीं । जो बिन बोले हो जाए उसे बोल कर क्या कहना ? जो ऐसे ही हो जाए मौन में संवाद, उसके लिए शब्द का क्या उपयोग करना ? और यही घटना धीरे-धीरे गुरु और शिष्य के बीच घटनी शुरू होती है। बोलना तभी तक पड़ता है जब तक बिन बोले तुम न समझ सको। जब तुम बिन बोले समझने लगोगे तब बोलने की कोई जरूरत न रह जाएगी। तब तुम आओगे चुपचाप मेरे पास, बैठोगे, समझ लोगे, और चले जाओगे। जैसे-जैसे करीब हम होने लगते हैं वैसे-वैसे बोलना न बोलने जैसा होने लगता है। अभी भी जो मेरे करीब आ गए हैं, वह मैं जो बोलता हूं उससे उनका बहुत प्रयोजन नहीं है। मेरे दो शब्दों के बीच में जो खाली जगह है, उससे ही उनका ज्यादा प्रयोजन है। अब वे लकीरों के बीच पढ़ने लगे हैं और शब्दों के बीच सुनने लगे हैं। अब शब्द तो केवल बहाना है। लेकिन जो नए होंगे उनके लिए शब्द ही सेतु होंगे । दूर को जोड़ना हो, शब्द चाहिए। पास को जोड़ना हो, मौन काफी है। लाओत्से कहता है, बड़े देश को भी स्त्री जैसा होना चाहिए, और छोटे देशों के नीचे रख लेना चाहिए। यह बड़ी महत्व की बात है। काश, कभी यह हो सके तो दुनिया में युद्ध बंद हो जाएं। लाओत्से की बात सुनी जाए तो ही दुनिया से युद्ध समाप्त हो सकते हैं, अन्यथा नहीं। क्योंकि लाओत्से यह कह रहा है कि बड़ा देश अपने को नीचे रख ले। तुम इतने बड़े हो कि ऊपर रखने की बात ही बेहूदी मालूम पड़ती है। जो बड़ा है वह विनम्र हो जाता है। रहीम ने कहा है, जब वृक्ष फलों से लद जाता है तो डालियां झुक जाती हैं। जो जितना भर जाता है, जितना बड़ा हो जाता है, उतना झुक जाता है। जमीन छूने लगती हैं उसकी डालियां । ये तो बिना फल के वृक्ष हैं जो अकड़े खड़े रहते हैं। छोटा आदमी अकड़ा रहता है, क्योंकि उसे डर है कि अगर झुका तो लोग समझ लेंगे छोटा है। बड़े को क्या है ? बड़ा झुक सकता है। क्योंकि कितना ही झुके, बड़प्पन तो खोता नहीं, बल्कि झुकने से बढ़ता है। जिसके भीतर हीनता की ग्रंथि छिपी है, वह डरता है। मेरे पास लोग आते हैं। मैं उनको देखता हूं। उनमें जिनमें भी थोड़ा सा भी बड़प्पन है, वे सरलता से झुक जाते हैं जो बहुत क्षुद्र हैं और बहुत हीनता की ग्रंथि से भरे हैं, वे अकड़े खड़े रह जाते हैं। उनका झुकना मुश्किल है। क्योंकि उनको डर है, अगर वे झुके, उन्हें पता है कि वे हीन हैं, दूसरों को भी पता चल जाएगा कि हीन हैं। जो झुक सकता है सरलता से, जिसे झुकने में जरा भी अड़चन नहीं आती, जिसे झुकना सहज बात है, उसका अर्थ है कि उसके भीतर कोई हीनता का बोध नहीं, कोई इनफीरियारिटी कांप्लेक्स नहीं है। छोटे डरते हैं झुकने से; बड़े अवसर खोजते हैं झुकने का । क्षुद्र भयभीत रहता है कि कहीं कोई ऐसा मौका न आ जाए कि झुकना पड़े। जो क्षुद्र नहीं है उसका भय क्या? इसलिए जितनी श्रेष्ठता होती है उतनी विनम्र होती है। और जितनी क्षुद्रता होती है उतनी ही अहंकारपूर्ण होती है। लाओत्से कहता है, बड़े हो― चाहे व्यक्ति, चाहे देश – तो झुक रहो । नदीमुख नींची भूमि की तरह हो जाओ। क्योंकि तुम संसार के संगम हो । झुकोगे तो ही संगम बन पाओगे । संगम की भूमि तो नीची होनी चाहिए,
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy