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ताओ उपनिषद भाग ५
तुम थोड़ा सोचो कि पुरुष हो और अगर तुम्हें गर्भ नौ महीने तक खींचना पड़े! तो मैं नहीं सोचता कि एक पुरुष भी नौ महीने तक जिंदा रह सकेगा। एक रात के लिए पत्नी बाहर चली गई हो और बच्चे को तुम्हारे पास छोड़ गई हो, तब तुम्हें पता चल जाता है कि बच्चा कितने उपद्रव मचा रहा है! कि तबीयत होने लगती है कि गर्दन दबा दो! अपनी दबा लो या इसकी दबा दो!
मुल्ला नसरुद्दीन एक बगीचे के पास अपने बच्चे को लेकर टहल रहा था। छोटी सी गाड़ी में बच्चे को बिठाए हुए था और बार-बार कहता जा रहा था, नसरुद्दीन, शांत रहो। नसरुद्दीन, शांत रहो। कोई बात नहीं नसरुद्दीन।
एक बूढ़ी महिला यह सुन रही थी। उसने कहा, बड़ा प्यारा बच्चा है!
और बच्चा चीख रहा है, चिल्ला रहा है, रो रहा है, हाथ-पैर फेंक रहा है। तो वह बुढ़िया पास आई और उसने बच्चे को कहा कि बेटा नसरुद्दीन, शांत हो जाओ।
नसरुद्दीन ने कहा, उसका नाम नहीं है नसरुद्दीन; नसरुद्दीन मेरा नाम है। मैं अपने को शांत रख रहा हूं किसी तरह; नहीं तो या तो इसकी गर्दन दबा दूंगा या अपनी दबा लूंगा।
स्त्री नौ महीने तक पेट में गर्भ को झेलती है, प्रजनन की पीड़ा को झेलती है। फिर बच्चे को बड़ा करना छोटा . काम नहीं। पुरुष तो यह समझते हैं कि स्त्रियों के पास काम ही क्या है! क्योंकि वे दुकान चला रहे हैं। स्त्रियां कर ही क्या रही हैं! भ्रांति में हैं। दुकान चलाना जरा भी कठिन नहीं। हजार ग्राहक आसान हैं; यह एक बच्चा उपद्रव ज्यादा है। फिर इसे बड़ा करती हैं। बड़ा करने में इसका लगाव, इसका प्रेम। फिर एक दिन यह विदा हो जाता है; यह किसी दूसरी स्त्री के प्रेम में पड़ जाता है। उस घाव को भी झेलती हैं।
स्त्रियों की सहनशक्ति पुरुषों से कई गुनी ज्यादा है। पुरुष की सहनशक्ति न के बराबर है। लेकिन पुरुष एक ही शक्ति का हिसाब लगाता रहा है, वह है मसल्स की। क्योंकि वह बड़ा पत्थर उठा लेता है, इसलिए वह सोचता रहा है कि मैं शक्तिशाली हूं। लेकिन बड़ा पत्थर उठाना अकेला आयाम अगर शक्ति का होता तो ठीक है; सहनशीलता भी बड़ी शक्ति है-जीवन के दुखों को झेल जाना।
स्त्रियां देर तक जवान रहती हैं, अगर उन्हें दस-पंद्रह बच्चे पैदा न करना पड़ें। तो पुरुष जल्दी बूढ़े हो जाते हैं; स्त्रियां देर तक युवा और ताजी रहती हैं।
जब बच्चे पैदा होते हैं तो प्रकृति को भी, परमात्मा को भी पता है, सौ लड़कियां पैदा करता है, एक सौ पंद्रह लड़के पैदा करता है। क्योंकि चौदह साल के होते-होते पंद्रह लड़के मर जाएंगे; तब संख्या बराबर हो जाएगी। लड़के ज्यादा पैदा होते हैं, लड़कियां कम पैदा होती हैं। क्योंकि विवाह की उम्र आते-आते पंद्रह प्रतिशत लड़के तो समाप्त हो चुके होंगे।
लड़कियां पहले बोलना शुरू करती हैं। बुद्धिमत्ता लड़कियों में पहले प्रकट होती है। लड़कियां ज्यादा सतेज होती हैं, ज्यादा शांत होती हैं। विश्वविद्यालयों में भी प्रतिस्पर्धा में लड़कियां आगे होती हैं।
ऐसा होना भी चाहिए। क्योंकि पुरुष अपरिहार्य नहीं है। पुरुष के बिना काम चल सकता है; स्त्री के बिना काम नहीं चल सकता। स्त्री अपरिहार्य है। इसमें कोई अड़चन नहीं है। अब तो आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन संभव है, पुरुष को बिलकुल विदा किया जा सकता है। लेकिन स्त्री को विदा नहीं किया जा सकता।
इस पर बड़े प्रयोग चलते हैं। पुरुष का उपयोग प्रकृति के सृजन में कितना है?
पुरुष संभोग के क्षण में क्षण भर में तो चुक जाता है; उसका काम पूर्ण हो गया। जो काम पुरुष के लिए क्षण भर में पूरा हो गया है, वह स्त्री के लिए कोई बीस वर्ष लगेंगे। वह उसके पूरे जीवन का ढांचा हो जाएगा। एक बच्चा पैदा होगा; बड़ा होगा; उसका विवाह होगा।
हा
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