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________________ स्नण गुण से बड़ी कोई शक्ति बहीं मुफ्त में ही कुछ पा लोगे। जो जा ही रहा था, वह जाता ही; तुमने कुछ दिया नहीं। लेकिन देने की भाव-दशा में तुम गड़े हो जाते हो; और उस गड्ढे में वह भर जाता है जो कभी नहीं जाता। अगर अमृत को पाना हो तो मरणधर्मा को बांटो। अगर शाश्वत को पाना हो तो क्षणभंगुर को पकड़ो मत, जाने दो, और जाते क्षण आनंद-उत्सव से जाने दो। क्योंकि अगर तुमने दिया भी और देने में उत्सव न रहा, तो भी देना व्यर्थ हो जाएगा। अगर बेमन से दिया, तो तुम दे भी दोगे, लेकिन तुम जो मिलता देने से वह न मिल पाएगा। बेमन से दिया, दिया ही नहीं। देना ऊपर-ऊपर रहा, भीतर गड्ढा न बना। लाओत्से कहता है, पहला सूत्र है कि तुम खाली हो जाओ। दूसरा सूत्र है कि खाली होने के लिए तुम समुद्र की तरह नीचे हो जाओ, जहां सारी नदियां आकर गिर जाती हैं। तुमने समुद्र का कभी विचार किया? सबसे बड़ा, सबसे नीचे! यही बड़े होने का राज है, यही बड़े होने का मार्ग है। और तुमने कभी खयाल किया? समुद्र में इतनी नदियां गिरती हैं, बाढ़ नहीं आती; इतने बादल जाते हैं, समुद्र सूखता नहीं। क्या राज है? इतनी नदियां गिरती हैं, बाढ़ नहीं आती। गड्डा बड़ा विराट है। तुम इसमें बाढ़ न ला सकोगे। बाढ़ तो केवल चाय की प्यालियों में आती है। गड्डा बहुत छोटा है, न के बराबर है; जरा से में भर जाता है। समुद्र में कहीं कोई बाढ़ आती है? गड्ढा इतना विराट है कि डालते जाओ संसार की सारी नदियों को, सागर पीता चला जाता है, कोई बाढ़ नहीं आती। सागर उत्तेजित नहीं होता। जिस दिन तुम्हारा गड्डा भी अनंत होगा उस दिन महा सुख की वर्षा होती रहेगी, और तुम उत्तेजित न होओगे। अभी तो क्षुद्र सुख भी तुम्हें ऐसा उत्तेजित कर देता है, दीवाना कर देता है। तुम चाय की प्याली हो। उसमें बड़े जल्दी तूफान आ जाते हैं। और अभी तो जरा सा भी छलक जाए तो तुम खाली हो जाते हो। सागर से इतने विराट बादल उठते रहते हैं, कहीं कुछ पता भी नहीं चलता। जिसे लेने का पता न चला उसे देने का पता भी नहीं चलेगा। जो लेते वक्त शांत रहा वह देते वक्त भी शांत रहेगा। सागर अपने में रमा रहता है; जैसा है वैसा बना रहता है। सागर में उतार-चढ़ाव नहीं हैं, बाढ़ नहीं आती, गड्डा नहीं बनता। सागर करीब-करीब अपने को अपने स्वभाव में लीन रखता है। जिस दिन तुम गड्ढे हो जाओगे, तुम्हारी लीनता भी ऐसी ही होगी। न तो तुम पागल . हो जाओगे सुख से और न पागल हो जाओगे दुख से। अभी दोनों तुम्हें पागल करते हैं। और जब तक सुख-दुख तुम्हें पागल कर सकते हैं, तब तक तुम जानना कि तुम्हें अभी उसका स्वाद नहीं मिला जिसको बुद्धत्व कहते हैं, जिसको लाओत्से ताओ की प्रतीति कहता है। उस स्वाद के मिलते ही सब सुख फीके हैं, सब दुख झूठे हैं, आना-जाना भ्रांति है। तुम उससे जुड़ गए जिसका न कोई आना है, न कोई जाना है। जिसका कोई आवागमन नहीं, जो सदा एकरस है। उसे ही हमने ब्रह्म कहा है। एक बात और, फिर हम सूत्र में प्रवेश करें। लाओत्से की अनूठी से अनूठी खोज है: स्त्रैण का सिद्धांत। लाओत्से कहता है कि जीवन-सत्य की खोज में तुम स्त्रैण सिद्धांत का अनुसरण करो। तो पहले हम समझ लें कि स्त्रैण सिद्धांत है क्या। साधारणतः तो तुम समझते हो कि पुरुष शक्तिशाली है। लेकिन तुम बड़ी भ्रांति में हो। अब तो बायोलाजिस्ट्स, जीव-वैज्ञानिक भी राजी हैं कि स्त्री ही ज्यादा शक्तिशाली है। और यह केवल पुरुष का अहंकार है, सदियों से पोसा गया, कि पुरुष यह मानता है कि वह शक्तिशाली है। थोड़ा सोचो! स्त्रियां पुरुषों से ज्यादा जीती हैं-पांच साल औसत उम्र ज्यादा। पुरुष पचहत्तर साल जीएगा तो स्त्री अस्सी साल जीएगी। क्यों स्त्रियां पुरुष से ज्यादा जीती हैं अगर पुरुष शक्तिशाली है? स्त्रियां कम बीमार पड़ती हैं। और स्त्रियां दुख को सहने में बड़ी क्षमताशाली हैं। पुरुष छोटे-छोटे दुख से उद्विग्न हो जाता है। 1307
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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