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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 'इतना ही नहीं कि लोगों को हानि पहुंचाना बंद कर देती है...।' वह जो अशुभ चेतना के प्रभाव में या अशुभ के प्रभाव में पड़ी हुई आत्मा है वह लोगों को नुकसान करना बंद कर देती है, इतना ही नहीं। 'संत स्वयं भी लोगों की हानि नहीं करते।' संत ऐसे जीता है जैसे नहीं है; हवा के झोंके की तरह जीता है। तुम्हारे पास से भी गुजर जाता है, तुम्हें याद भी आती है, स्पर्श भी होता है, अनुभव भी होता है, लेकिन अदृश्य। तुम पर आक्रामक नहीं, तुम्हें बदलने को आतुर नहीं। तुम्हें अच्छा बनाने की भी चेष्टा नहीं है संत की, क्योंकि अक्सर होता है तुम्हें अच्छा बनाने की चेष्टा में ही तुम बुरे हो जाते हो। क्योंकि तुम्हारे अहंकार को वह चेष्टा भी बाधा डालती है। किसी को भूल कर अच्छा बनाने की कोशिश मत करना। और अगर कोशिश की और वह बुरा हो जाए तो अपने को जिम्मेवार समझना। लोग सोचते हैं, हमने इतनी कोशिश की, फिर यह आदमी अच्छा न हो पाया! असलियत उलटी है। तुम्हारी इतनी कोशिश के कारण ही हो गया। अच्छे बाप के घर बुरे बेटे पैदा होते हैं, क्योंकि अच्छा बाप बड़ी कोशिश करता है बेटे को अच्छा बनाने की। अपने से ऊंचा न जा सके तो कम से कम अपने तक तो हो जाए। यह कोशिश इतनी ज्यादा हो जाती है कि बेटे के लिए फंदे जैसी लगने लगती है। बेटे की अस्मिता को चोट पहुंचती है। बेटा इस बाप की अगर माने तो मुर्दा हो जाएगा। आज्ञा तोड़नी जरूरी है। बाप से विपरीत जाना जरूरी है। क्योंकि विपरीत जाकर ही बेटे अपने अस्तित्व को अनुभव करेंगे। यह अनिवार्य है। जैसे मां के पेट के बाहर बच्चा जाएगा, यह जरूरी है नौ महीने के बाद। जाना ही चाहिए। जिस दिन मां के पेट के बाहर बच्चा जाता है उस दिन दूर जाने की प्रक्रिया शुरू हुई। यह चलती रहेगी। फिर जिस दिन बेटा पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने लगेगा, वह मां से और दूर गया। मां बड़ी कोशिश करेगी कि किसी के साथ खेलने न जाने दे, घर में ही बंद रख ले। लेकिन फिर बेटा बड़ा कैसे होगा? उसका अहंकार कैसे निर्मित होगा? फिर बेटा स्कूल जाएगा, और • दूर गया। फिर हॉस्टल में रहने लगेगा, और दूर गया। फिर किसी एक स्त्री के प्रेम में पड़ जाएगा। उस दिन, उस दिन गर्भ से जो काम शुरू हुआ था, पूरा हुआ। अब वह खुद ही गर्भ देने के योग्य हो गया, प्रक्रिया पूरी हो गई। और जिस दिन बेटा किसी स्त्री के प्रेम में पड़ता है, मां कितना ही उत्सव मनाए, भीतर दुखी और पीड़ित होती. है। इसीलिए तो मां-बाप प्रेम को बिलकुल बरदाश्त नहीं करते। विवाह को बरदाश्त कर लेते हैं, प्रेम को बरदाश्त नहीं करते। क्योंकि विवाह के आयोजक वे ही होते हैं, प्रेम का आयोजन बेटा खुद कर लेता है। उसका मतलब वह बिलकुल इतनी दूर चला गया कि जीवन की इतनी गहनतम बात का भी निर्णय खुद ले रहा है। उस संबंध में भी बाप से पूछने नहीं आया। प्रेम को स्वीकार करना बाप को कठिन पड़ता है। मुल्ला नसरुद्दीन की लड़की एक अभिनेता के प्रेम में पड़ गई। जैसा कि अक्सर लड़कियां पड़ जाती हैं; फिर पछताती हैं, क्योंकि अभिनेता यानी अभिनेता। बाप को आकर कहा, डरते हुए कहा। मुल्ला नसरुद्दीन ने सुन कर कहा कि बकवास बंद! अभिनेता? ये लुच्चे-लफंगे? इनके साथ प्रेम? जिंदगी खराब करनी है? पर उस लड़की ने कहा, पापा, मेरा प्रेम हो गया है। उसने कहा, छोड़, प्रेम-रोम से क्या लेना-देना? जिंदगी भर का सवाल है। यह मैं कभी बरदाश्त न करूंगा। तू कोई भी खोज ले अभिनेता को छोड़ कर। लेकिन बेटी पीछे ही लगी रही। आखिर धीरे-धीरे बाप को उसने फुसलाना शुरू कर लिया। गांव में नाटक कंपनी आई जिसमें वह लड़का अभिनेता था। तो बेटी ने नसरुद्दीन को राजी कर लिया कि आप एक दफा देख तो लें उसको चल कर। नसरुद्दीन ने अभिनय देखा। अभिनय के पूरे होने पर लड़की से कहा कि नहीं, लड़का अच्छा है, 296
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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