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________________ कृष्ण में राम-रावण आलिंगन में है मुल्ला नसरुद्दीन अपने मनोचिकित्सक के पास जाकर कह रहा था कि अब आपको कुछ करना पड़े। यह जरा जरूरत से ज्यादा हुआ जा रहा है। मेरी पत्नी टब में बैठ कर रबर की बतख से घंटों खेलती रहती है। रोकिए। मनोचिकित्सक ने कहा कि इसमें कुछ ऐसा चिंतित होने का कारण नहीं है। अगर खेलती भी रहे तो बतख से ही खेलती है किसी का कुछ नुकसान भी नहीं कर रही, कोई हानि भी नहीं कर रही। और पत्नी अगर बतख से खेल रही है तो घर में भी शांति रहेगी, तुम भी चैन में रहोगे। इसमें हर्ज क्या है? यह तो बहुत बेहतर ही है। जिनकी पत्नियां नहीं खेलती हैं, उनको भी खेलना सिखाना चाहिए। इससे तुम चिंतित मत होओ। यह तो बिलकुल इनोसेंट है, निर्दोष बात है। खेलने दो। नसरुद्दीन ने कहा, कैसे खेलने दो? मुझे खेलने का वक्त ही नहीं मिलता। चौबीस घंटे बतख लिए बैठी है। तो हम कब खेलें? अस्सी साल के भी हो जाओ तो भी खिलौनों का ही तो खेल चलता है। खिलौनों के बाहर कहां हो पाते हो? धन-संपत्ति खिलौना है। यश-पद-प्रतिष्ठा खिलौना है। खिलौने का मतलब समझते हो? खिलौने का मतलब जो खेल में उलझाए रहे, उलझाए रखे। खिलौने का मतलब है जो खेल में लगाए रखे। तो जिन-जिन खेलों में तुम्हें जो-जो चीजें लगाए रखी हैं वे सब खिलौना हैं। कोई राजनीति के खेल में लगा है तो राजनीति खिलौना है। तो जिंदगी भर दिल्ली जाने में लगी है बिना इस बात की फिक्र किए कि दिल्ली पहुंच कर करना क्या है। यह पहुंच कर ही सोचेंगे, क्योंकि फुरसत भी नहीं है सोचने की। पहुंच कर ही पता चलता है, पहुंच गए, अब करने को क्या है? अब पीछे लौटते जाते भी नहीं बनता, क्योंकि नाहक बदनामी होगी। अब पूंछ कट गई। अब पीछे जाकर भी लोगों को क्या बताएंगे? तो पहले लोग दिल्ली जाने की कोशिश में लगे रहते हैं, फिर दिल्ली में अड़े रहने की कोशिश में लगे रहते हैं कि अब यहां से जाना कैसे! अब कट गई पूंछ तो अब यहां टिके रहो, बताए रहो कि सब ठीक है, बड़ा आनंद आ रहा है। खेल चल रहे हैं बुढ़ापे तक। तो इसको तो मानने में हमें कोई अड़चन नहीं है कि आदमी बचकाना ही मर गया। इससे उलटी घटना घटी है लाओत्से के जीवन में कि वह बचकाना कभी था ही नहीं; चाइल्डिश, बचकाना कभी भी न था। बूढ़ा ही पैदा हुआ। बड़ा काव्यपूर्ण वक्तव्य है। लेकिन इतिहास में कैसे इसे जमाओगे? इसको जमाना मुश्किल है। इसको इतिहास में • बिठाना मुश्किल है। जो मध्य में जीता है वह संगीत में जीता है। उसका प्रभाव भी पड़ता है तो प्रभाव भी बड़ा सपनीला, बड़ा काव्यात्मक, जैसे एक झोंका आया, फूल की एक सुगंध आई और चली गई, और फिर तुम याद करते रह गए। लेकिन फूल की सुगंध किसी को बताओ भी तो कैसे बताओ? और लाओत्से जैसे फूल कभी-कभी खिलते हैं, आकाश-कुसुम की भांति, पृथ्वी के फूल नहीं हैं। इसलिए उनकी सुगंध की याद जिन पर छूट जाती है वे गीत गाते हैं, नाचते हैं, उत्सव मनाते हैं, लेकिन बता नहीं पाते कि हुआ क्या है। मदमस्त हो जाते हैं। इस सारी बात के पीछे कारण है कि संत मध्य में जीता है। नहीं तो इतिहास में कोई परिणाम छोड़ जाएगा। 'जो संसार की हुकूमत ताओ के अनुसार चलाता है, उसे पता चलेगा कि अशुभ आत्माएं अपना बल खो बैठती हैं।' जो अशुभ है, जो हमारे भीतर बुराई है, जिसको शैतान कहें, जिसको लाओत्से अशुभ आत्मा कह रहा है, इसका बल खो जाता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि इसकी ऊर्जा खो जाती है। इसका इतना ही अर्थ है कि इसका बल रूपांतरित हो जाता है। ऊर्जा तो शेष रहती है, क्योंकि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती। संसार में कुछ भी नष्ट नहीं होता, सिर्फ बदलता है, रूपांतरित होता है। रूप बदलते हैं, ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती। ऊर्जा तो बनी रहती है, लेकिन लोगों को कष्ट देना बंद कर देती है। 295
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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