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________________ कृष्ण में राम-रावण आलिंगन में है बीस साल पहले तक शरीरशास्त्री, फिजियोलाजिस्ट कहते थे कि मनुष्य के मस्तिष्क का आधा हिस्सा बिलकुल बेकार है, किसी काम का नहीं। क्योंकि कुछ काम समझ में नहीं आता था। बहुत से शरीर के हिस्से शरीरशास्त्री यों ही काट देते हैं, सर्जन ऐसे ही अलग कर देता है, कि यह बेकार है। टांसिल का कोई उपयोग नहीं, निकालो, जितनी जल्दी बने निकाल डालो। जरा सी गड़बड़ हुई कि टांसिल अलग कर दो। एपेंडिक्स का कोई उपयोग ही नहीं है; काट कर फेंक दो। लेकिन यह हो कैसे सकता है कि एपेंडिक्स है और बिना उपयोग के हो? नहीं तो होगी क्यों? अस्तित्व किसी चीज को किस लिए पैदा कर लेगा? जहां इतनी व्यवस्था है, जहां अस्तित्व इंच-इंच किसी बड़े गहन नियम के अनुसार चल रहा है, अस्तित्व कोई अराजकता नहीं है, जहां इतना सूक्ष्म तत्व मनुष्य का मन पैदा हो गया है, वहां कोई चीज अकारण होगी, व्यर्थ होगी? हां, अगर अस्तित्व एक्सीडेंटल होता, सिर्फ एक संयोग मात्र होता, तो ठीक था। लेकिन विज्ञान भी मानता है कि अस्तित्व संयोग मात्र नहीं है। अगर संयोग मात्र हो तब तो विज्ञान को बनाने का उपाय ही नहीं है फिर! कि संयोग का क्या भरोसा? विज्ञान तो जीता ही इस भरोसे पर है कि अस्तित्व एक गहन नियम से चल रहा है। उस नियम की खोज पर तो सारे विज्ञान का आधार है, कि हम उसको खोज लेंगे। तो बस सौ डिग्री पर पानी गरम होता है, यह नियम है। अगर यह संयोग हो तो पूना में हो जाए सौ डिग्री पर, बंबई में न हो। हिंदुस्तान में हो जाए कि चलो, यह धार्मिकों का देश है, सौ डिग्री पर हो जाओ; रूस में न हो, कि नास्तिकों के देश में तीन सौ डिग्री पर होंगे गरम। संयोग नहीं है। सौ डिग्री पर गरम होता है; नियम है। नियम की आस्था तो सारे विज्ञान का आधार है। और तुम विज्ञान से ज्यादा आस्थावान दूसरी कोई चीज न पाओगे। क्योंकि सारी आस्था इस पर है कि जगत दुर्घटना नहीं है, संयोग नहीं है, एक्सीडेंट नहीं है। जब पूरा अस्तित्व एक किसी गहन नियम से चलता है तो मनुष्य के भीतर भी कुछ भी अकारण नहीं हो सकता। यह हो सकता है, हमें पता न हो। आज नहीं कल एपेंडिक्स का प्रयोजन पता चलेगा। आज नहीं कल टांसिल्स का प्रयोजन पता चलेगा। मस्तिष्क का आधा हिस्सा बिलकुल निष्क्रिय पड़ा है। तो वैज्ञानिक बीस साल पहले तक कहता था, इसका कोई प्रयोजन नहीं है, एक्सीडेंटल है। लेकिन अब उसका प्रयोजन पता चलना शुरू हुआ है। इधर बीस वर्षों में जो खोज-बीन हुई है मस्तिष्क पर उससे पता चलता है कि जीवन में जितनी चमत्कारी बातें दिखाई पड़ती हैं उन सबमें उस मस्तिष्क के हिस्से का काम है जिसका हमें कोई अर्थ पता नहीं चलता। कोई आदमी दूसरे के विचार पढ़ लेता है, तब वह हिस्सा सक्रिय हो जाता है जो साधारणतया निष्क्रिय पड़ा है। या कोई आदमी, जैसे रूस में एक महिला है मिखालोवा, वह बीस फीट दूर की चीजों को भी प्रभावित कर देती है। बीस फीट दूर से खड़े होकर किसी चीज को हाथ से खींचना चाहे तो वह चीज सरकती हुई चली आती है। उस पर बड़े प्रयोग हुए हैं रूस में कि वह कैसे कर रही है! बहुत सी बातें जाहिर हुईं। एक बात खास जाहिर हुई कि जब वह यह करती है तब उसका वह मस्तिष्क का हिस्सा काम करता है जो साधारणतः काम नहीं करता। तो इसका अर्थ यह हुआ कि जीवन में जो भी परा-मनोवैज्ञानिक, पैरा-साइकोलाजिकल घटनाएं हैं-वे सामान्य नहीं हैं, कभी-कभी कोई आदमी कर पाता है-वे सदा उस मस्तिष्क के हिस्से से होती हैं जो साधारणतः बेकार पड़ा है। उसको काट मत देना। क्योंकि उसमें ही तुम्हारी सारी परा-मनोवैज्ञानिक क्षमताएं छिपी पड़ी हैं। और आज नहीं कल हम उपाय खोज लेंगे कि ये परा-मनोवैज्ञानिक क्षमताएं भी सिखाई जा सकें और तुम्हारे मस्तिष्क का वह हिस्सा काम करने लगे। |291
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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