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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ नहीं, क्रोध भी जरूरी है, अहंकार भी जरूरी है। इसलिए दबाना मत, काटना मत। नहीं तो तुम अपंग हो जाओगे। जैसे हाथ को काट दे कोई, आंख को काट दे कोई, तो शरीर अपंग हो जाता है। ऐसे ही क्रोध को कोई काट दे, काम को कोई काट दे, लोभ को कोई काट दे, तो आत्मा अपंग हो जाती है। सभी कुछ अनिवार्य है। इसका मतलब यह नहीं है कि तुम क्रोध में ही जीते रहना। इसका मतलब यह है कि तुम क्रोध में खोज करना कि कैसे करुणा का जन्म हो सके, क्रोध में कैसे करुणा का जन्म हो सके, कैसे करुणा क्रोध को समाविष्ट कर ले, कैसे क्रोध की ऊर्जा और शक्ति करुणा में लीन हो जाए, करुणा बन जाए। महावीर निश्चित ही बहुत क्रोधी रहे होंगे। नहीं तो इतनी बड़ी अहिंसा पैदा नहीं हो सकती थी। और इसमें कारण साफ दिखाई पड़ता है। बुद्ध भी बड़े क्रोधी रहे होंगे। नहीं तो इतनी बड़ी महाकरुणा कहां से पैदा होती? और इसीलिए जैनों के चौबीस तीर्थंकर क्षत्रिय हैं। क्योंकि क्षत्रियों से बड़ा क्रोधी खोजना मुश्किल है। बुद्ध भी क्षत्रिय हैं। एक भी तीर्थंकर ब्राह्मण नहीं हुआ, बनिया नहीं हुआ। कारण है। क्योंकि अगर अहिंसा का जन्म होना हो तो महाक्रोध से ही हो सकता है। और क्षत्रियों से ज्यादा महाक्रोधी तुम नहीं खोज सकते हो। क्रोध की ऊर्जा को बदलो।। कुछ ही समय पहले, आकाश में बिजली कौंधती थी और आदमी सिर्फ डरता था और कंपता था। अब हम उसी बिजली को घर में बांधे हुए हैं। वही बिजली तुम्हारा पंखा चलाती है। गर्मी हो तो शीतलता देती है; शीतलता हो तो गर्मी देती है। वही बिजली चाकर की तरह, नौकर की तरह काम में संलग्न है चौबीस घंटे। यह वही बिजली है जिससे वेद के ऋषि घबड़ा रहे थे। यह वही बिजली है जिसको वे सोच रहे थे कि इंद्र नाराज होकर भेज रहा है। यह वही बिजली है जो आकाश में कड़कती थी तो छाती कंप जाती थी। वही बिजली नौकर हो गई। आज तुम सोच भी नहीं सकते, अगर बिजली खो जाए तो सभ्यता कहां होगी? थोड़ी देर सोचो, अगर बिजली अचानक खो जाए तो तुम दस हजार साल पीछे एकदम गिर जाओगे। इससे कम नहीं। तुम वहीं पहुंच जाओगे जहां आदमी ने सभ्यता की शुरुआत की थी। आज सारी सभ्यता और संस्कृति का आधार बिजली है। कोई तीन वर्ष पहले अमरीका में कुछ आटोमैटिक यंत्रों की भूल से-अमरीका चार हिस्सों में बंटा है बिजली के हिसाब से, चार केंद्र हैं-एक केंद्र की बिजली गड़बड़ हो गई तो सैकड़ों नगरों की बिजली चली गई तीन दिन तक। और जो अनुभव वहां हुए, किसी ने सोचे भी न थे। क्योंकि बिजली क्या चली गई सारा जीवन चला गया। बिजली नहीं तो पानी मिलना बंद हो गया। बिजली नहीं तो लोग पचास-पचास ऊपर की मंजिल में कैद हो गए; नीचे आना मुश्किल हो गया। बिजली नहीं तो ट्रेनें बंद हो गईं। बिजली नहीं तो सब ठप्प हो गया। दस हजार साल पीछे तीन दिन के लिए पूरी व्यवस्था गिर गई। गांव उजाड़ मालूम पड़ने लगे। सब तरफ सन्नाटा हो गया। सब शोरगुल, सब चहल-पहल सब विदा हो गई। सब दफ्तर बंद हो गए। सब दुकानें बंद हो गईं। उन तीन दिनों में अमरीका के उस हिस्से में जो अनुभव हुआ वह अनुभव ऐसा हुआ कि जैसे कि अब बिजली हमारा प्राण है। कभी यह बिजली हमारी दुश्मन थी, शत्रु की तरह कौंधती थी। और वेद के ऋषि प्रार्थना करते हैं, हे इंद्र, कृपा कर! यज्ञ करते हैं, आहुति चढ़ाते हैं, ताकि तू नाराज न हो जाना, बिजली मत भेज देना। जिस बिजली से मौत आती थी वह अब जीवन का आधार हो गई। ठीक ऐसी ही घटना मनुष्य के भीतर भी घटती है। जिस क्रोध से तुम्हें लगता है जीवन दुखपूर्ण है, वही क्रोध करुणा बन जाता है। जिस कामवासना से तुम्हें लगता है कि जीवन नरक हो गया है, वही कामवासना ब्रह्मचर्य की परम अनुभूति बन जाती है। एक बात ध्यान रख लेना तो लाओत्से का सूत्र तुम्हें सहज ही समझ में आ जाएगा कि जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। अगर तुम्हें पता न चल रहा हो तो जल्दी मत करना। 290
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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