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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 288 एक नीचे दबा होता है। अगर तुम पुरुष हो, तुम्हारी स्त्री पीछे छिपी है। अगर तुम स्त्री हो, तुम्हारा पुरुष पीछे छिपा है। इसलिए तो वैज्ञानिक कहते हैं कि हार्मोन के परिवर्तन से स्त्री को पुरुष बनाया जा सकता है, पुरुष को स्त्री बनाया जा सकता है। जरा सिक्के को पलटने की बात है। कुछ अड़चन नहीं है । और भविष्य में यह घटना बढ़ेगी। बहुत से प्रयोग हो गए हैं। बहुत से पुरुष स्त्रियां हो गए हैं, बहुत सी स्त्रियां पुरुष हो गई हैं। भविष्य में यह अनुपात बढ़ता जाएगा। क्योंकि जब कोई ऊब जाएगा पुरुष होने से तो स्त्री हो जाना पसंद करेगा। जब कोई ऊब जाएगा स्त्री होने से तो पुरुष हो जाना पसंद करेगा। स्वतंत्रता और भी खुल जाएगी। तो तुम दोनों अनुभव कर सकते हो जीवन में। नपुंसक की तकलीफ क्या है ? न तो वह स्त्री है, न वह पुरुष है। उसके भीतर ताना-बाना नहीं है। उसके भीतर तनाव नहीं है। तनाव में शक्ति है। उसके भीतर कोई विरोध नहीं है जिसको जोड़ कर संगीत पैदा किया जा सके। इसलिए वह दीन है। इसलिए वह दया योग्य है । एक अर्थ में वह है ही नहीं; वह सिर्फ दिखाई पड़ता है कि है । उसका व्यक्तित्व एक धोखा है। क्योंकि व्यक्तित्व की गरिमा दो विरोधों के बीच पैदा हुए तनाव और शक्ति और ऊर्जा से आती है। हम एक बच्चा पैदा कर सकते हैं जिसमें क्रोध न हो। वह बच्चा जी न सकेगा। और अगर जीएगा भी तो बड़ा दयनीय होगा। जिस बच्चे में क्रोध न हो उसमें गरिमा न होगी । उसमें तेज न होगा। उसमें चमक न होगी । उसमें प्रतिरोध की क्षमता न होगी। वह बिना रीढ़ का होगा। वह सांप की तरह सरकेगा जमीन पर, मनुष्य की तरह खड़ा न हो सकेगा। रेंग सकेगा, चल न सकेगा। दौड़ना तो असंभव है। और अगर उसमें क्रोध न हो तो उसके भीतर अस्मिता पैदा न होगी। मैं हूं, यह भाव पैदा न होगा। अहंकार का जन्म न होगा। और जिसमें अहंकार ही न जन्मा वह अहंकार का समर्पण कैसे करेगा? जो तुम्हारे पास है ही नहीं उसे तुम छोड़ोगे कैसे? उसके जीवन में परमात्मा की कभी कोई अनुभूति न हो सकेगी। फर्क को ठीक से समझ लेना । एक भिखारी रास्ते पर खड़ा है । बुद्ध भी रास्ते पर खड़े हैं भिखारी की तरह । लेकिन तुम यह मत समझना कि वे दोनों एक ही हैं। उनमें गुणात्मक भेद है। एक ने साम्राज्य छोड़ा है; एक ने अभी. पाया नहीं । और जिसने साम्राज्य छोड़ा है उसके भिखारीपन में भी सम्राट की आभा होगी। जिसने सब जान लिया है, और इसलिए छोड़ दिया है, उसके छोड़ने में एक परम संतोष होगा, एक अनुभव का प्रकाश होगा। वह प्रौढ़ हो गया है; सम्राट पीछे छूट गया है। इसलिए हम उसे भिखारी नहीं कहते हैं। हमने भिखारी के लिए दो शब्द चुने हैं । उसको हम भिक्षु कहते हैं । भिक्षु और भिखारी बड़े अलग-अलग शब्द हैं। भिखारी वह है जिसकी वासनाएं जीवित हैं; जो चाहता तो सम्राट होना है, लेकिन नहीं हो पा रहा; जिसकी आकांक्षा तो समृद्धि की है, लेकिन असफल है। उसके भीतर एक विषाद है, एक हताशा है। यह भी हो सकता है, वह अपने मन को समझा ले कि क्या रखा है संपत्ति में और क्या रखा है महलों में! ऐसे बहुत से भिखारी भिक्षु बने भी बैठे हुए हैं, जो सोचते हैं, क्या रखा है महलों में! लेकिन जब तक तुम्हारे मन में यह सवाल उठता है कि क्या रखा है महलों में, तब तक तुम अपने को समझा रहे हो और तुमने महल जाने नहीं । तुम कंसोलेशन, सांत्वना कर रहे हो । एक जैन मुनि अपना गीत पढ़ कर मुझे सुना रहे थे। सुनने वाले बड़ी प्रशंसा से भर गए । गीत अच्छा था। लेकिन गीत से मुझे प्रयोजन नहीं था; जो उसमें कहा था वह बड़ा बेहूदा था। लेकिन न जैन मुनि को खयाल था, न उनके सुनने वालों को खयाल था । गीत था, एक संन्यासी के भाव गीत में प्रकट थे कि मुझे तुम्हारे महलों से कोई सरोकार नहीं। तुम्हारे तख्तोताज मेरे लिए दो कौड़ी के हैं । तुम्हारा स्वर्ण मेरी इस धूल जैसा है। मैंने उनसे पूछा, इसको गीत में लिखने की जरूरत क्या है ? अगर सच में ही तुम्हें ताज और सिंहासन से कोई मतलब नहीं है तो गीत लिख कर समय क्यों खराब किया ? और अगर सच में ही सोना धूल जैसा है तो कहने की
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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