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कृष्ण में राम-रावण आलिंगन में हैं
सी भी उदारता बरती तो तुम अपने को दबा न सकोगे। क्योंकि जब तुम दूसरे के साथ उदारता बरतोगे तो अपने साथ भी उदारता बरतोगे।
इस क्रोध में ऐसा लगता है कि भीतर तो कहीं गांधी को भी पाखाना फेंकने का मन नहीं है, जबरदस्ती फेंक रहे हैं। और यह कस्तूरबा उपद्रव खड़ा कर रही है। कस्तूरबा के विरोध में गांधी का इतना क्रोधित हो जाना अपने ही भीतर दबे हुए मन के विरोध में क्रोधित होना है। और इसलिए पत्नी पर वे ज्यादा क्रुद्ध हुए होंगे, क्योंकि पत्नी बहुत निकट है। वह तुम्हारा अचेतन जैसा है; तुम्हारे बहुत करीब है।
गांधी के सभी बच्चे मुश्किल में जीए। गांधी का एक बेटा हरिदास तो मुसलमान हो गया, शराबी हो गया, जुआरी हो गया-गांधी के कारण। क्योंकि अतिशय हो गई हर बात। हरिदास चाहता था कि पढ़ने जाए, शिक्षित हो। लेकिन गांधी शिक्षा के विपरीत थे। वे कहते थे, यह शिक्षा तो बिगाड़ती है। तो बस आश्रम में ही पढ़ो-लिखो, जो भी पढ़-लिख सकते हो।
बाप को भी यह हक नहीं है बेटे के ऊपर अपनी धारणा को थोपने का। लेकिन सज्जन बाप दुष्ट होता है। सज्जन बाप यह देखता ही नहीं कि बेटे की भी कोई आकांक्षाएं हैं, अभिलाषाएं हैं। और वह स्वतंत्र है अपनी आकांक्षाओं-अभिलाषाओं में। अगर वह गलत भी है तो भी स्वतंत्र है।
फिर हरिदास को हर छोटी-छोटी चीज पर बाधा थी। आश्रम में खाने-पीने पर नियंत्रण था; मिठाई नहीं लाई जा सकती, शक्कर नहीं लाई जा सकती, चाय नहीं पी जा सकती, आइसक्रीम नहीं खाई जा सकती। कुछ भी नहीं किया जा सकता। छोटे बच्चे छोटे बच्चे हैं। चोरी की शुरुआत हो गई। तो हरिदास बाहर जाकर चोरी से चीजें खाने लगा। फिर यह चोरी पकड़ी जाने लगी। फिर हरिदास को इसके लिए दंड मिलने लगा। यह संघर्ष घना हो गया। एक ऐसी घड़ी आ गई जहां कि बेटे को बाप से बिलकुल टूट जाना पड़ा। और प्रतिशोध में वह शराब पीने लगा। और आखिरी प्रतिशोध में वह मुसलमान हो गया।
जब गांधी को खबर मिली कि हरिदास मुसलमान हो गया और उसने अपना नाम अब्दुल्ला गांधी कर लिया तो उनको बड़ी चोट लगी। जब हरिदास को वापस खबर मिली कि गांधी को पता चला तो उनको चोट लगी तो वह बहुत - हंसा। उसने कहा, चोट का क्या सवाल है? वे तो कहते हैं, हिंदू-मुसलमान सब एक ही हैं। मैं तो उनकी ही बात मान कर चल रहा हूं। इसमें चोट क्यों लगती है? और अगर चोट लगती है तो उनको खुद अपनी बात पर भरोसा नहीं है कि हिंदू-मुसलमान एक ही हैं। अगर सच में ही एक ही हैं तो क्या फर्क पड़ता है हिंदू रहे कि मुसलमान रहे!
. गांधी कहते तो हैं कि हिंदू-मुसलमान एक ही हैं, लेकिन गांधी पक्के हिंदू हैं। इसलिए वे किसी और को धोखा दे पाएं, मुसलमान को धोखा नहीं दे पाए। गहरे में हिंदू हैं। गीता को माता कहते हैं, कुरान को तो माता या पिता नहीं कहते। और एक बड़ी चालाकी है बात में। कुरान में उन-उन चीजों की वे प्रशंसा करते हैं जिनका गीता से मेल है; कुरान के वे हिस्से काट डालते हैं जिनका गीता से मेल नहीं है। यह कौन सी प्रशंसा हुई? यह तो कुरान में भी गीता की ही प्रशंसा हुई। जहां कुरान गीता के विपरीत है वहीं सवाल है। ऐसे तो मुसलमान भी गीता की प्रशंसा कर देता है। लेकिन उन्हीं हिस्सों की प्रशंसा करता है जो कुरान का ही अनुवाद मालूम पड़ते हैं; बाकी हिस्सों को छोड़ देता है। ऐसे तो जैन भी प्रशंसा कर देता है।
यह एक बहुत अनूठा प्रयोग हो। अगर जैनों से कहा जाए कि तुम सभी धर्मों में जो सार-धर्म है उसको संगृहीत करके बताओ; मुसलमानों से कहा जाए, हिंदुओं से, बौद्धों से। तो तुम पाओगे, वे जो सारभूत निकालेंगे वह सबका अलग-अलग होगा। क्योंकि जैन यह तो मानता ही है कि सत्य तो महावीर के पास है। अब यह हो सकता है कि उसकी प्रतिध्वनि कुरान में भी कहीं हो थोड़ी-बहुत। लेकिन प्रतिध्वनि! उतनी दूर तक हम कुरान की भी प्रशंसा करेंगे।
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