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मेरी बातें छत पर चढ़ कर कठो
की। सम्राट को भागा हुआ जाना था इसके चरणों में, गिर पड़ना था चरणों में। तो कथा दूसरी होती। लेकिन च्यांग्त्से ने इतना कहा, फिर कोई पता नहीं कि कहानी का क्या हुआ। फिर दुबारा कभी सम्राट के आदमी न आए। च्यांग्त्से जैसे आदमी को निमंत्रण करना हो तो आदमियों को नहीं भेजना चाहिए निमंत्रण पर। सम्राट की अकड़ है वह। च्यांग्त्से जैसी महाप्रतिभा को लाना हो तो सम्राट को खुद आना था। और यह खबर पाकर तो आना ही था।
अब तुम समझ लो बात को। अगर च्यांग्त्से राजी हो जाता तो वह संत ही न था। सम्राट राजी हो गया उसके इनकार को, वह लाओत्से को समझा ही न था। तब कथा बिलकुल दूसरी होती। और संत को बुलाने के ये ढंग नहीं हैं। क्योंकि संत का अर्थ है परम स्वतंत्रता। यही वह कह रहा है कि एक कछुआ परम स्वतंत्रता में भी ठीक है; अपना स्वभाव तो है। तुम मुझे वजीर बनाना चाहते हो, बड़ा वजीर सही, लेकिन हो तो जाऊंगा गुलाम। तुम चलाने लगोगे मुझे, तुम बताने लगोगे क्या करना उचित है, क्या करना उचित नहीं है। तुम्हारे रीति-नियम मुझे चलाने लगेंगे। और मेरा उपयोग इतना ही हो सकता है कि मेरी जीवन-चेतना तुम्हें चलाए।
यह नहीं होने वाला था। इसलिए दुबारा सम्राट ने फिकर न की। इनकार हो गया, बात खत्म हो गई। इनकार से तो समझना था कि यह आदमी सच में ही बहुमूल्य है। स्वीकार कर लेता तो बेकार था। अगर लाओत्से की बात मान कर च्यांग्त्से चला जाता तो बेकार था। तुम्हें एक कहानी कहूं, उससे तुम्हें समझ में आ सके।
एक झेन फकीर मर रहा था। उसने अपने एक शिष्य को पास बुलाया। उसके हजारों शिष्य थे। और उसने इस शिष्य को कहा कि देखो, मैं मर रहा हूं। और मेरे गुरु ने मरते वक्त मुझे यह शास्त्र दिया था जिसे मैंने जीवन भर सम्हाल कर रखा है। और तुम भी जानते हो कि यह हमेशा मेरे तकिए के पास रखा रहता है। इसे मैंने अपने प्राणों की संपदा समझी। इसमें हमारे प्राचीन गुरुओं के सब अनुभव लिखे हैं। और इसमें मैंने मेरे अनुभव भी संयुक्त कर दिए हैं। इसे तुम सम्हाल कर रखना। यह बहुमूल्य थाती है; खो न जाए!
शिष्य ने कहा, व्यर्थ की बातचीत न करो। जो मुझे पाना था वह मैंने बिना शास्त्र के पा लिया है। इस कचरे को तुम्हीं रखो। शिष्य ने ऐसा कहा!
गुरु ने कहा, यह अभद्रता है। और जब मैं तुम्हें आज्ञा दे रहा हूं, मरता हुआ गुरु, तो तुम्हें इस तरह की बात | . शोभा नहीं देती। शास्त्र को सम्हालो! क्योंकि मैं मर रहा हूं, अब कौन सम्हालेगा इसको?
शिष्य ने हाथ में शास्त्र ले लिया; पास में जलती थी आग, सर्द रात थी, उस आग में फेंक दिया।
गुरु प्रसन्न हुआ, आनंदित हुआ। और उसने कहा कि अगर तुम सम्हाल कर रख लेते तो मैं समझता सब खो गया, मेरी मेहनत बेकार गई। और अब मैं तुम्हें बता देता हूं, उस शास्त्र में कुछ भी न था, वह कोरी किताब है। मेरे गुरु ने मुझे धोखा दिया; उनके गुरु ने उन्हें धोखा दिया; मैं तुझे देने की कोशिश कर रहा था। उसमें कुछ है नहीं। किसी ने कुछ लिखा नहीं है। क्योंकि एक ही तो अनुभव है : आखिरी कोरापन। जिस दिन तुम कोरी किताब हो गए उस दिन तुम शास्त्र हो गए। और तूने आज भला किया कि तूने आग में फेंक दिया। अगर तू जरा भी चूक जाता और सम्हाल कर रख लेता तो मैं बड़ा दुखी मरता। अब मैं तेरे साथ अपना शास्त्र छोड़े जा रहा हूं। तूने ठीक से बचा लिया। जो बचाने योग्य था वह बचा लिया; जो फेंकने योग्य था वह फेंक दिया।
लाओत्से जरूर प्रसन्न हुआ होगा, उसकी आत्मा आनंदित हुई होगी, जब च्यांग्त्से ने कह दिया कि जाओ, भाग जाओ, मैं भी इस कछुए की भांति अपने स्वभाव, अपनी साधारणता में मस्त हूं। तुम्हारे राजमहलों में मरे हुए मुर्दे रहते हैं, जिंदों का वहां वास नहीं। तुम किसी मरे हुए आदमी को खोज लो। मेरी वहां क्या जरूरत है?
नहीं, च्वांग्त्से लाओत्से के विपरीत नहीं जा रहा है, ठीक अनुसरण कर रहा है। अगर चला जाता तो लाओत्से की आत्मा रोती।
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