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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ तुमसे यह कहने को कोई दूसरा न मिलेगा। तुम जहां भी जाओगे लोग तुम्हें सिखाएंगे परिवर्तित होओ। छोड़ो क्रोध, यह बुरा है। छोड़ो काम, यह बुरा है। तुम जहां भी जाओगे लोग तुम्हें परिवर्तन के लिए प्रेरित करेंगे। और तुम परिवर्तित न हो सकोगे। और मैं तुम्हें परिवर्तन के लिए प्रेरित नहीं करता; क्योंकि मैं जानता हूं कि वही एकमात्र उपाय है परिवर्तन का। तुम सिर्फ राजी हो जाओ। क्या करोगे वीतरागता का? राग है तो राग सही। जो उसकी मर्जी। परमात्मा तुमसे ज्यादा जानता है, इस भाव को गहन करो। और जो दे उसमें राजी रहो। चोर बनाए तो चोर, और बेईमान बनाए तो बेईमान, उसकी मर्जी। नाटक से ज्यादा मत समझो। एक आदमी रावण बनता है नाटक में। तो क्या रोता है, चिल्लाता है कि मुझे राम बना दो? कि जाकर हाथ-पैर जोड़ता है कि मैं राम बनूंगा, रावण नहीं बन सकता? नहीं, इसकी कोई चिंता ही नहीं करता। क्योंकि सवाल रावण और राम बनने का नहीं है, सवाल अभिनय की कुशलता का है। रावण भी राम से बेहतर अभिनेता हो सकता है। तो प्रतिस्पर्धा वहां है। राम और रावण से क्या लेना-देना है? दोनों ही नाटक के पात्र हैं। दोनों ही कथानक के हिस्से हैं। बुरा भी कथा का हिस्सा है, भला भी कथा का हिस्सा है। तुम्हें जो बना दिया, तुम्हें जो पात्र मिल गया पूरा करने को, उसे समग्रता से पूरा कर दो। वहीं से तुम्हारी धन्यता शुरू होगी। तुम कथा को बदलने का आग्रह मत करो। और तुम यह मत कहो कि मुझे यह बनाओ, मुझे वह बनाओ। मैं तो राम होना चाहता था; रावण बना दिया! तुम थोड़ा सोचो कि सभी राम होना चाहें-रामलीला खत्म। रामलीला चलती इसीलिए है, चल सकती इसीलिए है, कि कोई रावण भी बनने को राजी है। इस जगत को एक बहुत बड़ा नाटयघर समझो। इस पृथ्वी को समझो एक बड़ा मंच। जीवन को अभिनय से ज्यादा मत समझो। जो उसने दिया है उसे पूरा कर दो। उसे पूरे मन से पूरा कर दो। और तुम पाओगे, परिवर्तन हो गया। मैं तुमसे कहता हूं कि अगर रावण अपने पात्र को, अपने अभिनय को पूरा का पूरा कर दे तो राम हो गया। क्योंकि परिपूर्ण कुछ भी कर देने में परमात्मा प्रविष्ट हो जाता है। वह परिपूर्ण है। हम जब भी कुछ जीवन के हिस्से को पूरा का पूरा भाव से कर देते हैं, हम उससे जुड़ जाते हैं। और अगर राम भी बेमन से अभिनय कर रहे हों कि उन्हें कुछ रस न आ रहा हो, या उनकी भी कुछ इच्छा हो कि क्या जरूरत मझे वनवास भेजने की चौदह वर्ष, यह मेरी सीता क्यों चुराई जाए, या इस तरह की बातें हों, तो राम भी रावण ही रह जाएंगे। तो मेरी बात को ठीक से समझ लेना। अगर रावण भी पूरा कर दे कृत्य, बिना अपने को बीच में लाए, तो राम हो जाता है। अगर राम भी अपने कृत्य में ना-नुच करें, शिकायत करें, कहें कि थोड़ा यहां बदल दो कहानी को, तो राम भी राम होने से चूक जाते हैं। राम को जो दिया गया है रूप, जो पात्र होने का अभिनय मिला है, उसमें कोई मूल्य नहीं है। कैसे तुम उस पात्रता को निभाते हो, कितनी परिपूर्णता से, कितनी समग्रता से तुम निभाते हो, उस पर ही सब निर्भर है। वही गुणधर्म आना चाहिए। तो मैं तुमसे कहूंगा, तुम राजी हो जाओ। परिवर्तन की जरूरत क्या है? तुम जैसे हो इतने भले हो, ऐसे सुंदर, तुम्हारी महिमा ऐसी है कि अब और क्या चाहिए? तुम्हें जो मिला है उसे तुम पूरा कर दो। दुकानदार हो, दुकानदार सही; संन्यासी की आकांक्षा मत करो। दुकान पर ही संन्यासी हो जाओगे। नौकर हो, नौकर; मालिक की आकांक्षा मत करो। अगर नौकर का भाव तुमने पूरा का पूरा प्रकट कर दिया तो तुम मालिक हो जाओगे। जंजीरें पड़ी रहें तुम्हारे हाथों पर, गुलामी तुम्हारा अभिनय हो, लेकिन अगर तुमने पूरे भाव से, समग्रता से कर दिया और तुम परमात्मा को धन्यवाद दे सके बिना किसी शिकायत के, तो तुम्हारी स्वतंत्रता अबाध है। कोई जंजीर तुम्हें रोक नहीं सकती; तुम्हारी मालकियत असीम है। 276
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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