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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ रहा हो, हत्या कर रहा हो, लेकिन मैं कर रहा हूं, और ठीक नहीं है, यह होश एकमात्र किरण है बुरे से बुरे आदमी में। यही किरण उसे उबारेगी। इसी किरण के सहारे वह ऊपर चढ़ेगा। इसी किरण के पायदानों पर यात्रा होगी। बोध बढ़ेगा, बढ़ेगा, बढ़ेगा, और एक दिन मुक्ति की घड़ी आ जाएगी। भले से भले आदमी में एक प्रतिशत जो बुराई है वह करुणा है। क्योंकि करुणा ही उसे अंत में बांधे रखती है। जब सब बंधन टूट गया, न कोई मोह है, न कोई आसक्ति है, न कोई लोभ है, न कोई क्रोध है, उस दिन करुणा ही उसे बांधे रखती है। संसार की तरफ से देखने पर करुणा अदभुत है। हम तो कहते हैं, करुणा से बड़ा और कोई गण नहीं। लेकिन अगर तुम परमात्मा की तरफ से जिस दिन देख पाओगे उस दिन तुम पाओगे, करुणा आखिरी बंधन है। संसार की तरफ से करुणा सबसे ऊपर है, लेकिन आखिरी ऊंचाई की तरफ से करुणा सबसे नीचे है। इस तरफ से, जहां हम हजारों बंधन से बंधे हैं, वहां करुणा मुक्ति मालूम होती है। लेकिन जो करुणा में खड़ा हो गया उसे पता लगता है, अब यह आखिरी बंधन है, यह भी टूट जाना चाहिए। इसलिए बहुत लोग ज्ञान को उपलब्ध होते हैं, लेकिन सभी तीर्थंकर नहीं होते, सभी बुद्ध नहीं होते। ज्ञान को तो बहुत लोग उपलब्ध होते हैं, मोक्ष को भी उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन सभी लोग सदगुरु नहीं हो सकते। सदगुरु वही व्यक्ति हो सकता है जिसने जन्मों-जन्मों में करुणा का बंधन ढाला हो। इसलिए बुद्ध ने तो एक नियम बनाया है कि ध्यान और करुणा का साथ-साथ ही विकास होना चाहिए। अगर ध्यान का अकेला विकास हो और करुणा का विकास न हो तो जिस दिन व्यक्ति ज्ञानी होगा उसी दिन तिरोहित हो जाएगा। व्यर्थ की खूटियां उखाड़ो, लेकिन बुद्ध कहते हैं, एक सोने की खूटी को गाड़ते भी रहो। क्योंकि जब सब खूटियां टूट जाएं तब तुम्हारी नाव अगर एकदम से उस पार चली जाए तो इस तरफ तुम्हारा कोई भी लाभ न ले पाएगा। थोड़ी देर ठहर जाओ। मुक्त होकर थोड़ी देर इस किनारे रुक जाओ। ताकि जो राह पर हैं, जो भटक रहे हैं, जिन्हें कुछ सूझ नहीं रहा है, वे थोड़ी सी तुम्हारी रोशनी पी लें। थोड़ी देर! और जब नाव तैयार हो गई हो और पाल खिंच गया हो और दूसरे किनारे का आमंत्रण आ गया हो, तब रुकना बड़ा मुश्किल हो जाता है। उस दिन कोई पीछे लौट कर देखना भी नहीं चाहता। इतने दिनों से जिस नाव की प्रतीक्षा की थी, जन्मों-जन्मों जिसके लिए यात्रा की थी, वह आज किनारे आ लगी। सब तैयारी हो गई, अब बस बैठना है और नाव खुल जाएगी। उस क्षण कौन किनारे रुकता है? तो बुद्ध कहते हैं, ध्यान के साथ-साथ करुणा को भी पोषित करो। ताकि जब नाव सामने आ जाए तो तुम तत्क्षण बैठ न जाओ, थोड़ी देर, थोड़ी देर नाव खड़ी रहने दो। कोई जल्दी नहीं है, थोड़ी देर दूसरों को तुम्हारा रस ले लेने दो। थोड़ी देर तुम्हारी प्रभा दूसरों के अंधकार में प्रविष्ट हो जाने दो। थोड़ी देर तुम्हारी जीवन-ऊर्जा का दान बंटने दो। थोड़ी ही देर सही, ज्यादा देर यह नहीं हो सकता, लेकिन थोड़ी देर संयम रखो। बुद्ध कहते हैं, थोड़ी देर संयम रखो; मत सवार हो जाओ नाव पर। जन्मों-जन्मों की खोज है, इसलिए पूरे प्राण कहेंगे, बैठ जाओ, आ गई मंजिल; अब क्या बाहर रुकना। देखो, पीछे बहुत लोग चल रहे हैं; तुम्हारे कारण शायद उन्हें थोड़ी रोशनी मिल जाए। शायद उस तरफ की थोड़ी झलक तुम्हारे झरोखे से उन्हें मिल जाए। शायद तुम्हारे माध्यम से वे उस अलौकिक का थोड़ा सा स्वाद ले लें। उससे उन्हें वंचित मत करो। करुणा का इतना ही अर्थ है। लेकिन है यह बुराई। बुराई इसलिए है कि तुम्हारी परम मुक्ति के लिए यह आखिरी बाधा है। दूसरों के लिए हितकर है, लेकिन तुम्हारी परम मुक्ति के लिए आखिरी बंधन है। यह करुणा शुभ ही मालूम पड़ेगी, लेकिन यह शुभ नहीं है। इसे भी छोड़ देना होगा। क्रोध तो छोड़ना ही है, एक दिन करुणा भी छोड़ देनी है। तभी तुम परम शून्य हो सकोगे। अभी तुम क्रोध से भरे हो, कल करुणा से भर जाओगे। बड़ा भेद पड़ गया। 1272
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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