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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मुझसे एक दिन कह रही थी कि आपको कुछ करना पड़े; पति का दिमाग खराब हो गया मालूम होता है। मैंने पूछा कि क्या हुआ? उसने कहा कि शनिवार के दिन भी उन्होंने, जब मैंने भिंडी की सब्जी बनाई, बड़ी प्रशंसा की और कहा, बहुत अदभुत है। रविवार के दिन कहा, अच्छी है। सोमवार के दिन कुछ बोले नहीं। मंगल को बड़े उदास दिखाई पड़े। बुध को बड़े क्रोधित थे। बृहस्पति को उन्होंने थाली फेंक दी; कहने लगे, जीवन नष्ट कर दिया मेरा! भिंडी, भिंडी, भिंडी! इनका दिमाग खराब हो गया है। क्योंकि शनिवार के दिन कहा था, बहुत अच्छी है। और एक सप्ताह भी पूरा नहीं बीता और थाली फेंकते हैं। कोई भी फेंक देगा। स्वाद मरने लगता है। स्वाद परिवर्तन मांगता है। सुख भी रोज-रोज मिले तो तुम दुख की आकांक्षा करने लगते हो। फूल ही फूल की शय्या पर लेटे रहो; कांटे की इच्छा पैदा हो जाती है। स्वाद परिवर्तन चाहता है। तुम अगर श्रद्धा ही श्रद्धा मुझ पर रखोगे तो आज नहीं कल श्रद्धा का स्वाद मर जाएगा। फिर तुम अश्रद्धा रखना चाहोगे। तब एक वर्तुल पैदा होता है। श्रद्धा अश्रद्धा में बदल जाती है, अश्रद्धा श्रद्धा में। और तब तुम एक ऐसे चक्र में पड़े जिससे निकलना मुश्किल हो जाएगा। श्रद्धा पहला कदम है, अंतिम मंजिल नहीं। अश्रद्धा से श्रद्धा बेहतर है। फिर श्रद्धा से भी बेहतर एक घड़ी है; . जहां न श्रद्धा है, न अश्रद्धा। उसके बाद फिर कोई टूटने का उपाय नहीं है। सौ प्रतिशत अच्छा देखते हो, शुभ है। क्योंकि इससे तुम्हारे भीतर की श्रद्धा प्रगाढ़ होगी। लेकिन इसको अंतिम मत मान लेना। ऐसी घड़ी लानी है जब शुभ-अशुभ दोनों ही व्यर्थ हो जाएं, फीके हो जाएं, दूर निकल जाएं। तभी तुम आमने-सामने मुझे जान सकोगे। और तब मुझसे टूटने की कोई व्यवस्था न होगी। यह मेरा शरीर भी गिर जाए तो भी मैं जुड़ा रहूंगा। तुम लाखों मील दूर रहो तो भी जुड़े रहोगे। तब टूटने की जगह ही न रही। तब बीच में फासला ही न रहा। एक बात! दूसरी बात समझ लेनी जरूरी है कि जो व्यक्ति, जैसा मैंने कहा, कि भले से भले व्यक्ति में भी एक प्रतिशत बुराई रहनी जरूरी है, नहीं तो वह पृथ्वी पर न रह जाएगा। नाव को अगर इस किनारे पर रखना हो तो कम से कम एक खूटी से तो बंधा रहना जरूरी है। नहीं तो नाव दूसरे किनारे की तरफ यात्रा पर निकल जाएगी। तो अच्छे से अच्छे आदमी में भी एक प्रतिशत बुराई होती है। उसकी बुराई भी बड़ी प्रीतिकर होती है, यह जरूर सच है। और शायद इसीलिए तुम्हें वह बुराई दिखाई न पड़े। बुरे से बुरे आदमी में भी एक प्रतिशत भलाई होती है। लेकिन वह भलाई भी बड़ी बुरी होती है। शायद इसीलिए तुम्हें दिखाई नहीं पड़ती। इसे थोड़ा समझो। बड़े से बड़े सिद्धपुरुष में भी इस पृथ्वी पर होने के लिए एक खूटी चाहिए। बिना खूटी के उसकी नाव दूसरे तट पर चली जाएगी। खूटी बांध कर रखनी पड़ती है, नहीं तो रुक नहीं सकता। वह खूटी क्या है? उस खूटी को तुम तो बुराई की तरह देख भी न पाओगे, क्योंकि जिस व्यक्ति में निन्यानबे प्रतिशत शुभ हो, उसका निन्यानबे प्रतिशत इतना आलोकित होता है कि वह जो एक प्रतिशत बुरा होता है वह भी उसके प्रकाश में स्वर्ण जैसा चमकता है। वह ऐसा ही समझो कि जैसे निन्यानबे बहुमूल्य हीरों के बीच में एक साधारण सा पत्थर जड़ा हो। वह निन्यानबे हीरों की चमक-दमक इतनी होगी कि तुम उस एक पत्थर को भी चमकता हुआ पाओगे। वह एक पत्थर भी पास की चमक से दीप्त होगा। निकट के हीरे उसमें झलकेंगे, वह शायद कांच का टुकड़ा ही हो। और अगर निन्यानबे पत्थर हों रद्दी-सद्दी इकट्ठे और उनके बीच में एक हीरा भी जड़ा हो तो भी यही घटेगा: तुम उस हीरे को न पहचान पाओगे। इसीलिए तो ऐसा होता है कि अगर गरीब आदमी हीरे की अंगूठी भी पहने हो, कोई नहीं सोचता कि हीरा है। अमीर आदमी नकली पत्थर भी लगाए हो तो लोग समझते हैं करोड़ों का होगा। आदमी पर निर्भर है। गरीब पर तुम अपेक्षा कहां करते हो कि उसके पास हीरे की अंगूठी होगी। इसलिए अमीर अगर नकली हीरे भी पहने रहता है तो भी प्रशंसित होता है, और गरीब अगर असली हीरे भी लिए फिरे तो कोई देखता नहीं; कोई मान ही नहीं सकता। 270
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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