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________________ दुसरा प्रश्न: आपने कहा कि व्यक्ति में माँ प्रतिशत अच्छा या बुरा हो नहीं सकता। लेकिन क्या आप स्वयं ही साँ प्रतिशत शुभ के प्रतीक नहीं? मैं आपमें कुछ भी बुनाई नहीं देख पाता हूं। या यह प्रश्न इसलिए ही उठ रहा है कि में कुछ न कुछ बुनाई देखने की कामना रखता हूं? मेरी बातें छत पर चढ़ कर कठो _ निश्चित ही! मन किसी भी चीज में सौ प्रतिशत नहीं देख सकता। वह मन की क्षमता नहीं है। क्योंकि मन द्वंद्व के बिना सोच नहीं सकता। अगर तुमने कहा कि सौ प्रतिशत भलाई दिखाई पड़ती है तो कहीं न कहीं अचेतन में बुराई का कोई न कोई बादल भटक रहा है। अन्यथा भलाई भी कैसे दिखाई पड़ेगी? ___ भलाई के लिए भी बुराई की पृष्ठभूमि चाहिए। सफेद खड़िया की लकीर खींचनी हो तो काला ब्लैकबोर्ड चाहिए। कैसे पहचानोगे कि यह भलाई है? मुझसे लगाव हो, मुझसे प्रेम हो, मुझसे मोह बन गया हो, तो मन सारी बुराई को अचेतन में डाल देगा, सारी भलाई को ऊपर उठा लेगा। सौ प्रतिशत दिखाई पड़ेगी, लेकिन हो नहीं सकती। अचेतन में खोजोगे तो पाओगे, कुछ बुराई दिखाई पड़ती है। शायद वह बुराई दिखाई न पड़े, इसीलिए चेतन मन दोहराए चला जाता है कि नहीं, सौ प्रतिशत ठीक। पर यह स्वाभाविक है। इससे कुछ चिंता लेने जैसी नहीं है। मन द्वंद्व में ही देख सकता है। जिस दिन तुम मन के बाहर होकर मुझे देखोगे, न मैं बुरा दिखाई पडूंगा, न भला; न साधु, न असाधु; न शुभ, न अशुभ। क्योंकि दोनों एक साथ चले जाते हैं, या दोनों साथ-साथ रहते हैं। जैसे सिक्के के दो पहलू साथ ही साथ होंगे, तुम एक पहलू न बचा सकोगे। हां, इतना कर सकते हो, एक पहलू नीचे दबा दो, एक पहलू ऊपर उठा लो; जो ऊपर का है वह दिखाई पड़े, जो नीचा है वह दबा रहे। लेकिन नष्ट नहीं हो गया, वह मौजूद है। सिक्के को या तो पूरा बचाओ तो दोनों पहलू बचते हैं, या पूरा फेंको तो दोनों पहलू जाते हैं। तो जब तक तुम्हें शुभ दिखाई पड़े, जानना कि कहीं न कहीं पृष्ठभूमि में अशुभ छिपा हुआ है। नहीं तो बैकग्राउंड कौन बनेगा? शुभ दिखाई कैसे पड़ेगा? जब कोई व्यक्ति समर्पित होता है तो पहली घटना यही घटती है कि सौ प्रतिशत अच्छा दिखाई पड़ता है गुरु। यहां रुक मत जाना। क्योंकि यहां अंधेरे में छिपी पृष्ठभूमि मौजूद है। यह घड़ी भी कीमती है। ऐसा अनुभव होना भी कि कोई सौ प्रतिशत ठीक है, श्रद्धा की बड़ी ऊंचाई है। लेकिन यह अंतिम नहीं है। एक कदम और लेना जरूरी है। तब श्रद्धा की अंतिम छलांग लगती है। तब न गुरु भला रह जाता, न बुरा। क्योंकि जब तक मैं भला हूं तब तक मेरे बुरे होने की संभावना शेष है। कभी भी पांसा पलट सकता है। कभी भी जो पहलू नीचे दबा है ऊपर आ सकता है। हवा का जरा सा झोंका और सब बदल जा सकता है। इस पर बहुत भरोसा मत करना। एक छलांग और, जब मैं न बुरा रह जाऊं, न भला। फिर तुम मुझसे दूर न जा सकोगे। फिर तुम मेरे विपरीत न हो सकोगे। फिर कोई उपाय ही न रहा। फिर मैं भला भी नहीं हूं, बुरा भी नहीं हूं। तो अश्रद्धा कैसे जगेगी? क्योंकि श्रद्धा भी गई। जब तक श्रद्धा है तब तक अश्रद्धा भी छिपी है। जब तक आदर है तब तक अनादर भी छिपा है। जब तक मान है तब तक अपमान भी छिपा है। जब तक मैं मित्र की भांति लगता हूं तब तक मैं कभी भी शत्रु की भांति लग सकता हूं। क्योंकि दूसरा मिट नहीं गया है, सिर्फ छिपा है। और ध्यान रखना कि मन का एक नियम है : जो छिपा है वह धीरे-धीरे शक्तिशाली हो जाता है, और जो प्रकट है वह धीरे-धीरे धूमिल हो जाता है। क्योंकि जो छिपा है उसकी शक्ति व्यय नहीं होती, और जो प्रकट है उसकी शक्ति व्यय होने लगती है। फिर मन का एक दूसरा नियम भी खयाल रखना कि जिसको तुम बहुत देर तक देखते रहते हो उससे तुम ऊबने लगते हो; फिर स्वाद के परिवर्तन की आकांक्षा होने लगती है। सो रोज श्रद्धा, रोज श्रद्धा, रोज श्रद्धा; वही भोजन रोज, वही भोजन रोज। 269||
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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