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ताओ उपनिषद भाग ५
तुम मंदिर के चारों तरफ जितनी देर परिक्रमा करते रहो, तुम्हारी मर्जी। अन्यथा मंदिर का सिंहासन खाली है, आ जाओ
और बैठ जाओ। तुम किसकी परिक्रमा लगा रहे हो? तुम मंदिर के सिंहासन पर बैठने को बने हो, परिक्रमा लगाने को नहीं। और जब तक परिक्रमा लगाते रहोगे, साफ है कि सिंहासन पर बैठ न सकोगे।
मत पूछो कैसे साधे! बस समझो। समझे कि तुम पाओगे: गूंगे केरी सरकरा, खाय और मुस्काय। कुछ साधने को नहीं है।
यह बड़ा कठिन लगता है। मन कहता है कि पहाड़ पर भी चढ़ना हो, हिमालय पर, तो भी कोई हर्जा नहीं। कुछ तो करने को कहो, हम कर लेंगे। गौरीशंकर भी चढ़ जाएंगे। कितनी ही मुसीबत होगी, पार कर लेंगे। मन हर तरह की कठिनाई से लड़ने को तैयार है। मन लड़ने की तैयारी है। और जब मैं कहता हूं, कुछ भी नहीं करना, तो मन कहता है, बड़ी मुसीबत हो गई। लड़ने को कुछ नहीं, करने को कुछ नहीं; फिर होगा कैसे? जैसे तुम्हारे करने से सब हो रहा है।
तुमने सुनी है कहानी उस बूढ़ी औरत की जो नाराज हो गई गांव से और अपने मुर्गे को लेकर दूसरे गांव चली गई। क्योंकि गांव वालों से उसने कहा कि मेरा मुर्गा बांग देता है इसलिए सूरज निकलता है। गांव में लोग हंसने लगे। किसी ने उसकी मानी नहीं। उसने कहा, फिर पछताओगे। अगर मैं दूसरे गांव चली गई तो सूरज वहां निकलेगा; जहां मेरा मुर्गा बांग देगा वहां सूरज निकलेगा। फिर रोओगे, छाती पीटोगे अंधेरे में। लोग हंसते रहे; किसी ने उसकी मानी नहीं। बूढ़ी अपने मुर्गे को लेकर दूसरे गांव चली गई। दूसरे दिन सुबह मुर्गे ने बांग दी दूसरे गांव में, सूरज निकला। बूढ़ी ने कहा, अब रोते होंगे।
सूरज के निकलने के कारण मुर्गा बांग देता है; मुर्गे के बांग देने के कारण सूरज नहीं निकलता। परमात्मा के निकट आने के कारण ध्यान लगता है; ध्यान लगने के कारण परमात्मा निकट नहीं आता। तुम्हारे करने का कुछ नहीं है। एक गहन प्रतीक्षा मौन। एक गहन प्रतीक्षा; और जो हो, जैसे हो, उससे राजी हो जाना। इसको लाओत्से तथाता कहता है-टोटल एक्सेप्टबिलिटी। और खयाल रखना, समग्र, टोटल, उससे कम में न चलेगा।
तब तुम पूछते हो, लेकिन मन में अशांति है, क्या करें? स्वीकार करो कि है; कुछ मत करो। तुम कहते हो, क्रोध होता है। स्वीकार करो कि क्रोध होता है—है। कुछ मत करो। होने दो क्रोध, राजी रहो। तुम कहते हो, कामवासना है। है। न तुमने बनाई है, न तुम मिटा सकोगे। जो तुमने बनाया ही नहीं उसे तुम मिटाओगे कैसे? कामवासना न होती तो तुम पैदा कर सकते थे? है तो तुम कैसे मिटा सकोगे? जिसने दी है वही ले लेगा। जिसने बनाई है वही मिटाएगा। तुम्हारे किए कुछ भी न होगा। तुम राजी हो जाओ कि जो तेरी मर्जी।
इसी को मैं प्रार्थना कहता हूं। जिस दिन तुम्हारा हृदय परिपूर्ण रूप से कह सके: जो तेरी मर्जी। अगर वासना में भटकाना है, राजी हूं। अगर ब्रह्मचर्य में ले जाना है, राजी हूं। अगर क्रोध करवाना है और जगत का निकृष्टतम आदमी बनाना है, राजी हूं। अगर करुणा से भरना है और जगत में श्रेष्ठतम उठाना है, राजी हूं। मेरी कोई मर्जी नहीं, तेरी मर्जी। तेरी मर्जी का भाव! कोई शिकायत नहीं! और तुम पाओगे, क्षण की देर नहीं लगती। एक पल भी नहीं खोता और द्वार पर मंजिल आ जाती है। बिना चले आती है मंजिल; बिना हिले-डुले मोक्ष मिल जाता है।
यह गहनतम सार है समस्त ज्ञानियों का।
न रुचे, न जंचे, फिर अज्ञानियों से पूछो। वे तुम्हें बहुत रास्ते बताएंगे। जब अज्ञानियों से थक जाओ तब मेरे पास आना। उसके पहले तुम मुझे समझ ही न पाओगे। पहले तुम अज्ञानियों के साथ खूब उलटा-सीधा कर लो, शीर्षासन लगा लो, आड़े-टेढ़े व्यायाम कर लो, तंत्र-मंत्र सब कर आओ। जब तुम थक जाओ कर-करके, न पाओ, तब मेरे पास आ जाना। क्योंकि मैं तो न करना सिखाता हूं।
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