________________
मेरी बातें छत पर चढ़ कर कठो
वह खुद ही तुम्हारे द्वार पर आ जाता है। वह द्वार पर ही खड़ा था। लेकिन तुम खोज में इतने व्यस्त थे कि फुरसत न थी कि तुम उसे देख लो। वह तुम्हारे भीतर बैठा था, तुम कहीं और तलाश रहे थे।
जब तलाश बंद हो जाती है तो तुम अपने भीतर देखोगे। करोगे क्या और? जब सब तलाश खो जाएगी, जब तुम पहली दफा अपने आमने-सामने खड़े होओगे, उस घड़ी में ही सब सध जाता है बिना साधे। . कबीर कहते हैं : अनकिए सब होय।
तुमने किया कि बिगाड़ा। तुमने कर-करके ही तो बिगाड़ा है। इतनी लंबी यात्रा कर रहे हो। तुम न करो। थोड़ी देर भी न करके देखो; सब सुधर जाता है। तुम चुप हुए कि अस्तित्व तुम्हारे आस-पास ठीक होने लगता है। तुम मौन हुए कि विकृतियां अपने आप बैठने लगती हैं। ऐसे ही जैसे नदी बहती है, कूड़ा-कर्कट उठ आता है; तुम किनारे बैठ जाते हो, थोड़ी देर में कूड़ा-कर्कट अपने से बह जाता है, धूल-धवांस नीचे बैठ जाती है।
भूल कर भी नदी में मत उतर जाना सफाई करने के लिए। नहीं तो तुम्हारी सफाई करने की कोशिश, तुम और कीचड़-कबाड़ को उठा दोगे। नदी और गंदी हो जाएगी। अनकिए सब होय। तुम न करना सीख लो। मत पूछो कैसे साधे! क्योंकि तुम फिर वही अपनी नासमझी ले आए। इतना ही पूछो कि कैसे समझें? साधने में कृत्य है; समझ में कोई कृत्य नहीं है। और ध्यान रखना, जितने लोग तुम्हें साधते हुए मिलेंगे, तुम उन्हें नासमझ पाओगे। असल में, बुद्ध ही साधते हैं; ज्ञानी समझते हैं। साधने को यहां कुछ है नहीं। सब सधा ही हुआ है। तुम्हारे लिए रुका था कुछ? तुम नहीं थे तब भी सब सधा था; तुम नहीं हो जाओगे तब भी सब सधा रहेगा। चांद-तारे चल रहे हैं। सूरज निकल रहा है। इतना विराट विश्व सधा है-तुम्हारे बिना साधे।।
लेकिन तुम उसी भ्रांति में हो। मैंने सुना है, एक छिपकली को उसके मित्रों ने भोज के लिए निमंत्रित किया। कहीं शादी-विवाह था। छिपकली ने कहा, मैं न आ सकूँगी। इस महल को कौन सम्हालेगा? मैं रहती हूं तो छप्पर सम्हला रहता है। मैं गई कि छप्पर गिरा।
तुम उस छिपकली की भांति हो जो नाहक परेशान हो रहे हो। महल का छप्पर छिपकली से नहीं सधा है, छप्पर के कारण छिपकली सधी है। तुम्हारे साधने के लिए बचा क्या है? सब सधा ही हुआ है। तुम अकारण श्रम मत उठाओ। जैसे ही तुम समझोगे, सब साधना व्यर्थ हो जाती है।
तो अगर तुम मुझसे पूछो कि फिर साधना का प्रयोजन क्या है? साधना का कुल प्रयोजन इतना है कि जब तक तुम समझे नहीं हो और समझने को राजी नहीं हो तब तक तुमसे कुछ करवाए रखना जरूरी है। यह करवाना ऐसे है जैसे बच्चों को मिठाई दे दी जाती है; मिठाई के कारण वे रुके रहते हैं। यह करवाना वैसे ही है जैसे दवा के ऊपर हम शक्कर की एक पर्त चढ़ा देते हैं। तुम बिना किए न मानोगे, तुम्हारा मन कहता है, कुछ करना है, इसलिए तुम्हारे मन को करने को कुछ दे देते हैं।
ये जितनी विधियां हैं ध्यान की, सब तुम्हारे मन को कुछ करने के लिए देना है। धीरे-धीरे ताकि तुम्हें खुद ही बोध आए कि किए कहीं कुछ होता है। एक दिन ऐसी घड़ी आएगी कि करते-करते तुम जाग जाओगे और देखोगे कि क्या कर रहे हो, इस करने से कुछ भी नहीं होता। करना हाथ से छूट जाएगा और टूट जाएगा और बिखर जाएगा पारे की तरह। फिर तुम उसे इकट्ठा न कर पाओगे। और उसी घड़ी सब हो जाएगा।
सब तैयारी उस घड़ी को लाने की है जब तुम थोड़ी देर के लिए न करने को राजी हो जाओ। अगर तुम अभी राजी हो तो अभी हो जाएगा। इसी क्षण हो सकता है। आध्यात्मिक जीवन, आत्मिक जीवन का रूपांतरण, भविष्य की प्रतीक्षा नहीं कर रहा है। वह इसी क्षण हो सकता है। तुम बिलकुल पूरे हो। कुछ कमी नहीं है जिसको पूरा करने के लिए समय लगे। सिर्फ आंख झुकानी थोड़ी। अपने को देखना थोड़ा। उसमें तुम जितनी देर लगा दो, तुम्हारी मर्जी।
267