________________
ताओ उपनिषद भाग ५
'और शासक देश की माता (सिद्धांत) दीर्घजीवी हो सकती है।'
तभी वस्तुतः एक परिवार बनता है समाज का प्रेम के आधार पर। अन्यथा समाज एक भीड़ है। और उस भीड़ को किसी तरह व्यवस्थित रखने की ही कोशिश में शासन व्यस्त रहता है-किसी तरह व्यवस्थित करने की कोशिश में—कि भीड़ कोई उपद्रव न करे। बस भीड़ को किसी तरह शांत रखा जा सके, इतनी ही शासन की कुल चेष्टा बनी रहती है। लेकिन जब कभी कोई संत शासक हो जाए...।
कभी-कभी वैसा हुआ है। और अगर बड़े पैमाने पर नहीं हुआ तो छोटे पैमाने पर तो बहुत बार हुआ है। बुद्ध या महावीर या लाओत्से एक दूसरा ही छोटा समाज समाज के भीतर निर्मित कर लेते हैं। बुद्ध के दस हजार भिक्षु हैं। बुद्ध ने एक छोटा सा समाज निर्मित कर लिया इनका। इस समाज की हवा और है।
अजातशत्रु बड़ा शासक था बुद्ध के समय में। उसके आमात्यों ने कहा कि बुद्ध का आगमन हुआ है, आप भी चलें। आमात्यों को, प्रजा को प्रसन्न करने के लिए वह गया। जाने की कोई इच्छा न थी, लेकिन लोग समझेंगे, अच्छा राजा है, साधु का सम्मान किया, तो वह गया।
जब वे करीब पहुंचे उस आम्रवन के जहां बुद्ध ठहरे थे तो वह ठिठक कर खड़ा हो गया और उसने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। और उसने अपने मंत्रियों को कहा कि क्या तुम मुझे कुछ षड्यंत्र में डाल रहे हो? तुम कहते थे, दस हजार भिक्षु बुद्ध के साथ हैं। जहां दस हजार आदमी हों वहां बाजार मच जाता है, और यहां तो सन्नाटा है। यहां तो ऐसा नहीं है कि एक भी आदमी हो इस आम्रवन के भीतर। तुम चाहते क्या हो? तुम मुझे कहीं धोखे में ले जाकर कोई खतरा करना चाहते हो? वे आमात्य हंसने लगे। उन्होंने कहा, आप बुद्ध के परिवार को जानते नहीं; आप तलवार भीतर रख लें और निःशंक हो जाएं। जल्दी ही इन झाड़ों के पार आपको खुद ही दिखाई पड़ जाएगा।
जैसे ही उन झाड़ों की पंक्ति को अजातशत्रु पार हुआ, वह चकित हुआ। वहां दस हजार लोग थे। उसने बुद्ध से पूछा कि यह मेरी समझ में नहीं आता, ये किस तरह के लोग हैं ? क्योंकि दस हजार आदमी जहां हों वहां तो उपद्रव होना ही है। वहां तो हमें पुलिस का और इसका इंतजाम करना पड़ता है सब कि कैसे लोग शांत रहें। और ये दस . हजार लोग बिना किसी व्यवस्था के और बिना किसी शासन के क्यों शांत हैं? इनको क्या हो गया है?
बुद्ध ने कहा, यह और ही तरह का परिवार है; इससे तुम अपरिचित हो।
तो कभी-कभी बुद्धों के करीब छोटे-छोटे समाज निर्मित हुए हैं। वे समाज इस पृथ्वी पर किसी दूसरे ही लोक के प्रतिनिधि हैं। बुद्ध का शासन है उन पर-जो शासन नहीं करना चाहता। और वे शासित नहीं हैं जो उनके आस-पास इकट्ठे हैं। क्योंकि उन्होंने खुद ही समर्पण किया है; वे हराए नहीं गए हैं, वे हारे हैं। जब तुम किसी को हराते हो तब घृणा पैदा होती है और जब तुम खुद ही हार जाते हो तो प्रेम का जन्म होता है। वे समर्पित हैं। उन्होंने खुद ही अपने को बुद्ध के चरणों में डाल दिया है। एक दूसरे ही तरह की गंध वहां है-शांति की, आनंद की।
ऐसे छोटे-छोटे परिवार दुनिया में बने हैं। कभी यह भी हो सकता है कि सारी दुनिया का ऐसा पूरा परिवार बने। क्योंकि जो दस हजार के लिए संभव है वह दस लाख के लिए संभव है। जो दस लाख के लिए संभव है वह दस करोड़ के लिए भी संभव हो सकता है। लाओत्से उसी सपने को तुम्हें दे रहा है। लाओत्से कह रहा है, यह पृथ्वी. तभी शांत होगी जब हम यहां एक गुणात्मक रूप से भिन्न तरह का परिवार बना सकेंगे; जिसमें कम से कम नियम होगा, अधिक से अधिक प्रेम होगा। जिसमें ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्रता होगी, न के बराबर परतंत्रता होगी। जिसमें निषेध न होंगे, विधेय होंगे। जिसमें लोगों पर कुछ थोपा न जाएगा, लोग अपनी ही अंतःप्रज्ञा से संचालित होंगे। जहां उनकी जीवन-व्यवस्था उनके बोध से आएगी; किसी के दबाव, किसी के आरोपण से नहीं। जहां उनका जीवन उनके अंतस से बहेगा। जहां उनका आचरण उनकी अपनी ही सजगता का हिस्सा होगा।
260