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________________ बियमों का बियम प्रेम व स्वतंत्रता हूँ जो व्यक्ति अपने को जीत लेता है वह अशेष क्षमता को प्राप्त होता है। यह समझ लेने जैसा है। उसकी क्षमता कभी भी चुकती नहीं। उसके जीवन की क्षमता अशेष है। कितना ही जीए, क्षमता कायम रहती है। जैसा उपनिषद कहते हैं, निकाल लो पूर्ण को पूर्ण से, तो भी पीछे पूर्ण शेष रह जाता है। ऐसी उसकी क्षमता होती है। वह कितना ही जीए, चुकता नहीं। जितना जीता है उतना ही पाता है कि जीने के लिए और तत्पर हो गया। तुम चाहते तो हो कि तुम्हें और जीवन मिले, लेकिन तुमने कभी ठीक से सोचा नहीं कि तुम और जीवन लेकर करोगे भी क्या? तुम वैसे ही थक गए हो! कभी विचार करके सोचना कि और जीवन लेकर करोगे क्या? एक ही जीवन काफी थका देता है। क्षमता कुछ बचती ही नहीं। खोखले हो जाते हो दौड़-दौड़ कर वासना के पीछे। जैसे ही व्यक्ति दौड़ बंद कर देता है, अपने में ठहरता है, ऊर्जा नष्ट नहीं होती, सब छिद्र बंद हो जाते हैं, सब द्वार बंद हो जाते हैं, ऊर्जा की एक विराट लपट उसके भीतर उठती है। उसके पास अनंत ऊर्जा होती है। महावीर ने कहा है, वह अनंत वीर्य हो जाता है। उसकी क्षमता अशेष है। वह जीता जाता है, बांटता जाता है, देता जाता है, कभी चुकता नहीं। वह जितना देता है उतना ही और पाता है। वह जितना उलीचता है उतना ही पाता है कि और भर गया है। और जब तक तुम ऐसी अशेष क्षमता के धनी न हो जाओ तब तक तुम दीन ही रहोगे। जब तुम ऐसी अशेष क्षमता के धनी हो जाओगे तभी तुम सम्राट हुए। इसीलिए हमने फकीरों को सम्राट कहा है। हमने ऐसे सम्राट जाने जो फकीर थे, भिखारी थे-बुद्ध, महावीर। और हमारे सम्राट निश्चित ही फकीर हैं, भिखमंगे हैं। सम्राट मांगते चले जाते हैं, मांग का कोई अंत नहीं। फकीर देते चले जाते हैं, देने का कोई अंत नहीं। सम्राट की आत्मा भिखारी की आत्मा है। फकीर की आत्मा सम्राट की आत्मा है। चूंकि जब तुम मांगते हो तब तुम भिखमंगे हो। जब तुम देते हो तभी पहली बार तुम्हारे सुर परमात्मा से बंधे। तुम्हारा झरना उसके अनंत झरने से जुड़ गया। अब कोई चुका न सकेगा। लाओत्से कहता है, जिसमें अशेष क्षमता है, वही किसी देश का शासन करने के योग्य है।' तो जो लोग शासन करते हैं देशों में उनमें से तो कोई भी योग्य नहीं हो सकता। लाओत्से कहता है कि सिर्फ संत ही शासन करने के योग्य है। वही व्यक्ति शासन करने के योग्य है जो शासन करना ही नहीं चाहता। जिसकी शासन करने की कोई आकांक्षा नहीं है वही योग्य है। जो शासन करना चाहता है उसकी करने की चाह में ही अयोग्यता छिपी है। मनसविद भी राजी हैं लाओत्से से। वे कहते हैं, जो व्यक्ति शासन करना चाहता है वह हीनता की ग्रंथि से पीड़ित है, उसके भीतर हीन भाव है। पद पर खड़े होकर वह दुनिया को बताना चाहता है कि मैं हीन नहीं हैं, देखो कैसे सिंहासन पर खड़ा हूं। इसलिए लंगड़े-लूले, अंधे-काने सब दिल्ली की तरफ जाते हैं। जाएंगे ही। क्योंकि उनके पास और कोई उपाय नहीं है घोषणा करने का। तुम राजनीतिक को कभी साबित न पाओगे। कहीं न कहीं कानापन, कहीं न कहीं तिरछापन, कहीं न कहीं कोई कमी, कोई भीतरी अभाव होगा, कोई हीनता की ग्रंथि होगी। उस हीनता की ग्रंथि को दिखाने के लिए कि वह नहीं है वह बड़े आयोजन रचता है। लेकिन कितना ही आयोजन करो हीनता की ग्रंथि मिटती नहीं। हीनता की ग्रंथि का मिटने का यह उपाय नहीं है। हीनता की ग्रंथि तो तभी मिटती है जब तुम अशेष क्षमता के धनी हो जाते हो। 'जिसमें अशेष क्षमता है, वही किसी देश का शासन करने के योग्य है।' और ऐसा जब कोई शासक उपलब्ध हो जाए किसी देश को तो उस देश की जो मातृत्व की क्षमता है, उस देश की जो प्रेम की क्षमता है, प्रेम जो कि जीवन का गहरे से गहरा सिद्धांत है, आधार है, उसमें फूल आने शुरू होते हैं। वह विकसित होता है, वह सुरक्षित होता है। 259
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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