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________________ नियमों का बियम प्रेम व स्वतंत्रता है जो व्यक्ति क्रोध से पीड़ित हो उसको पूर्व-निवारण करना चाहिए। और अपनी पूरी जीवन-स्थिति को समझना चाहिए कि यह मैं बारूद कैसे इकट्ठी कर रहा हूं! और बारूद को सूखा रखा हुआ हूं। मैं खतरा लेकर घूम रहा हूं। जैसे पेट्रोल की टंकी पर लिखा रहता है : एनफ्लेमेबल। ऐसे ही सबकी खोपड़ी पर लिखा रहना चाहिए : एनफ्लेमेबल। जरा कोई ने माचिस जलाई कि झंझट खड़ी हो जाएगी। . लाओत्से कहता है, जिसने जीवन को समझने की कोशिश की और जीवन के छोटे-छोटे नियम, जो सहजता से आने चाहिए, शास्त्रों से नहीं, वह पूर्व-निवारण कर लेता है। ___ 'मिताचार पूर्व-निवारण करना है। टु बी स्पेयरिंग इज़ टु फोरस्टाल।' पहले से ही तुम काट देते हो वे जड़ें। ठीक से सोओ; सम्यक निद्रा जरूरी है। ठीक से भोजन करो; सम्यक भोजन जरूरी है। होशपूर्वक उठो, बैठो, चलो; होश जरूरी है। स्वाभाविक बनो; अस्वाभाविक की आकांक्षा मत करो। जरूरतों को पूरा करो; वासनाओं की उपेक्षा करो। व्यर्थ की दौड़ में मत लगो; सार्थक को ही बस पा लेना काफी है। शक्ति को बचाओ; अकारण खर्च मत करो। जितनी शक्ति तुम्हारे पास संग्रहीत होगी, जितने तुम शक्तिशाली होओगे, उतना ही कम क्रोध होगा। जितने तुम शक्तिशाली होओगे उतना ही दूसरे लोग तुम्हें कम उत्तेजित कर सकेंगे। तुम्हारी ऊर्जा ही तुम्हारा कवच है। 'पूर्व-निवारण करना तैयार रहने और सुदृढ़ होने जैसा है; तैयार रहना और सुदृढ़ होना सदाजयी होना है।' और जो आदमी पूर्व-निवारण कर लेता है अपनी बीमारियों का, जो अपने भीतर एक शांति का स्थल बना लेता है, एक छोटा सा मंदिर बना लेता है जहां सब शांत और मौन है, जहां बड़ी गहन तृप्ति है, परितोष है, उसे तुम उद्वेलित नहीं कर सकते, उसे तुम पराजित नहीं कर सकते। तुम उसे हराओगे कैसे? क्योंकि वह जीत की आकांक्षा ही नहीं करता। तुम उसे मिटाओगे कैसे? क्योंकि उसने खुद ही अपने को मिटा दिया है। उसके जीवन में कोई असफलता नहीं हो सकती, क्योंकि सफलता की कामना और वासना को उसने उपेक्षा कर दी है। सफलता को खाओगे या पीओगे या पहनोगे? जीवन तो बहुत छोटी-छोटी चीजों से भर जाता है। रोटी चाहिए, कपड़ा चाहिए, प्रेम चाहिए, एक छप्पर चाहिए। जीवन किसी बहुत बड़ी-बड़ी आकांक्षा के कारण सुखी नहीं होता। नहीं तो पक्षी कभी सुखी नहीं हो सकते थे, पौधे कभी फूल नहीं दे सकते थे। क्योंकि पौधे राष्ट्रपति कैसे बनेंगे? पक्षी प्रधान मंत्री कैसे बनेंगे? सारा अस्तित्व प्रसन्न है, क्योंकि थोड़े से राजी है, जरूरत से राजी है। सिर्फ आदमी बेचैन है। अकेला आदमी पागल है। अकेला आदमी भटक गया है। जरूरत की तो फिक्र ही नहीं है, गैर-जरूरत की फिक्र है। पेट भरे न भरे, गले में सोने का हार चाहिए। नींद मिले या न मिले, सिर पर ताज चाहिए। प्यास बुझे न बुझे, वासना! व्यर्थ की दौड़ का नाम वासना है कि जिसको पा भी लोगे तो कुछ पाया नहीं। न पाए तो परेशान हुए, पा लिए तो पाया कि हाथ खाली हैं। वासना दुष्पूर है। उसको कभी कोई नहीं भर पाता। दौड़ना बहुत होता है उसमें, पहुंचना कभी भी नहीं होता। तो लाओत्से कहता है, जिसने पूर्व-निवारण कर लिया, जो अपनी छोटी-छोटी जरूरतों में राजी हो गया...। और तुम सोच भी नहीं सकते, क्योंकि इतनी वासनाएं मन को पकड़े हैं, अन्यथा तुम इतने अनुगृहीत हो जाओगे परमात्मा के! श्वास भी तुम्हारी इतनी शांत और आनंदपूर्ण हो जाएगी। उठने-बैठने में एक नृत्य भीतर चलने लगेगा। बोलने में, चुप रहने में एक संगीत बजने लगेगा। जो पक्षियों को उपलब्ध है वह तुम्हें उपलब्ध नहीं हो पाता, यह हैरानी की बात है। तुम पक्षियों से श्रेष्ठ हो, तुम पौधों से बहुत आगे जा चुके हो, तुम शिखर हो इस पूरे अस्तित्व के। और तुमसे ज्यादा दीन कोई नहीं दिखाई पड़ता। 257
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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