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ताओ उपनिषद भाग ५
तुमने भी कई बार अनुभव किया है कि क्रोध तुम करते हो, पीछे पछताते हो, दुखी होते हो, निर्णय लेते हो-नहीं करूंगा क्रोध। लेकिन फिर क्रोध हो जाता है। क्या कारण होगा? तुम पूर्व-निवारण नहीं कर पा रहे हो। बीमारी जब आ जाती है तब तुम उसे हटाते हो। तब तक तो बीमारी ने जड़ें जमा लीं। क्रोध कोई अकेली घटना नहीं है, मल्टी कॉजल है; उसके बहुत कारण हैं।
एक आदमी ने तुम्हें गाली दी। तुम यह मत समझना कि बस यही कारण है क्रोध का। तुम अगर ठीक से न सोए तो वह भी कारण बनेगा क्रोध का। तुम्हें अगर ठीक से भोजन न मिला तो वह भी कारण बनेगा क्रोध का। तुम्हारे जीवन में अगर प्रेम की धारा न बही तो तुम हर घड़ी राजी हो क्रोधित होने के लिए। यह आदमी का गाली देना तो सिर्फ बहाना है। ये सब चीजें तुम्हारे भीतर तैयार हैं। बारूद तैयार है, यह आदमी तो सिर्फ एक अधजली सिगरेट फेंक देता है; विस्फोट हो जाता है। तुम समझते हो, यह आदमी बम फेंक दिया। इस आदमी ने कुछ भी नहीं किया है। इस आदमी का कोई संबंध ही नहीं है। तुम अगर भीतर शांत हो तो यह सिगरेट उस शांति के जल में जाकर बुझ जाती, पता भी न चलता। तुम भीतर अशांत थे, बारूद मौजूद थी। सूखी बारूद लिए घूम रहे हो, और तुम सोचते हो कोई दूसरा तुम्हें क्रोधित करवा रहा है।
फिर तुम कसमें खाते हो, व्रत-नियम लेते हो कि मैं क्रोध न करूंगा। तुम और दूसरा पागलपन कर रहे हो। क्योंकि जब बारूद भीतर मौजूद है, तुम कैसे क्रोध न करोगे? वैसे ही झंझट थी, अब दुगुनी हो गई। अब तुम इस बारूद को दबाए फिर रहे हो। अब यह विस्फोट भयंकर होगा। जिस दिन फूटेगा उस दिन तुम बचोगे ही नहीं। तुम किसी की हत्या करोगे या आत्महत्या करोगे।
पुरुष ज्यादा आत्महत्याएं करते हैं। इसे तुम्हें जान कर हैरानी होगी। स्त्रियां कोशिश करती हैं ज्यादा, लेकिन सफल नहीं होती। स्त्रियों का काम-धंधा ही ऐसा है। सौ स्त्रियां आत्महत्या की कोशिश करती हैं तो मुश्किल से बीस सफल होती हैं। उनकी कोशिश भी अधूरी-अधूरी है। उस कोशिश के कारण दूसरे हैं। वे ठीक मरना नहीं चाहतीं। अगर सौ पुरुष आत्महत्या की कोशिश करते हैं तो पचास सफल होते हैं। स्त्रियां कोशिश ज्यादा करती हैं, इसलिए. तुम्हें यह भ्रांति होगी कि स्त्रियां बहुत आत्महत्या करती हैं। नहीं, आत्महत्या पुरुष ज्यादा करते हैं-दो गुनी ज्यादा। स्त्रियों से दुगुनी आत्महत्या करते हैं। और कारण क्या है?
कारण यह है कि स्त्रियां अपने क्रोध को निकाल लेती हैं। बर्तन तोड़ देंगी, प्लेट पटक देंगी, बच्चे की पिटाई कर देंगी। निकाल लेती हैं। रो लेंगी, चीख-चिल्ला लेंगी, कपड़े फाड़ लेंगी, सिर के बाल खींच लेंगी। आत्महत्या के लायक क्रोध इकट्ठा नहीं हो पाता। और पुरुष अकड़ा हुआ रहता है। रो कैसे सकता है! मर्द कहीं रोता है?
अब मर्द नहीं रोता तो भगवान ने मर्द की आंखों में आंसू की ग्रंथि क्यों बनाई? तो भगवान ने कुछ गलती की। उतनी ही बड़ी ग्रंथि आदमी की आंखों में है जितनी स्त्री की। उसमें उतने ही आंसू भरे हैं। वे निकलने चाहिए। लेकिन मर्द रो नहीं सकता। छोटे-छोटे बच्चों को हम सिखलाते हैं कि क्या रो रहा है! लड़कियों जैसा व्यवहार कर रहा है!
आंख में लड़के और लड़की के कोई फर्क नहीं है। और रोना एक निकास है। और जो रो नहीं सकता वह ठीक से हंस भी नहीं सकता। क्योंकि हंसी में भी आंसू निकल आते हैं। रोना और हंसी दोनों तरफ से एक ही दिशा में यात्रा करते हैं।
तो पुरुष न तो हंसता है ठीक से, न रोता है ठीक से, न क्रोध करता है। अकड़ में बना रहता है। तो इतना इकट्ठा हो जाता है मवाद कि जब फूटता है तो या तो हत्या करता है या आत्महत्या करता है। अगर दुर्जन हुआ तो हत्या करता है, सज्जन हुआ तो आत्महत्या करता है। बस इतना ही फर्क है। दोनों ही हत्या करते हैं। दुर्जन दूसरे को मिटाता है, सज्जन अपने को मिटाता है। लेकिन मिटाने में दोनों एक जैसे हैं।
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