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नियमों का नियम प्रेम व स्वतंत्रता है
कर-तीन बजे उठ कर देख लो दो दिन, चार बजे उठ कर देख लो दो दिन, पांच बजे उठ कर देख लो, छह बजे, सात बजे, आठ बजे-एक तीन सप्ताह प्रयोग करके देख लो। जो घड़ी तुम्हें सबसे ज्यादा जम जाए, जिसमें तुम रम जाओ, जिसमें चौबीस घंटे तुम ताजा मालूम पड़ो, वही तुम्हारे लिए नियम है।
__ कुछ लोग हैं जो रात में बारह बजे सोएं तो ही सुबह उनको ताजगी रहेगी। कुछ हैं जो नौ बजे सोएं तो ही सुबह ताजगी रहेगी। और कोई किसी के लिए नियम नहीं बना सकता। प्रत्येक व्यक्ति अनूठा और अलग-अलग है। अपना नियम खोजना। और अपने नियम को ठीक से, समझ के अनुसार चलने पर तुम पाओगे, तुम्हारे जीवन में बड़ी सहजता और स्वाभाविकता आ जाती है। अड़चन कम हो जाती है। दूसरे का नियम हमेशा अड़चन देगा।
जैसे विनोबा के आश्रम में, विनोबा तीन बजे उठते हैं, तो सबको तीन बजे उठना चाहिए। अब यह अड़चन की बात है। विनोबा बूढ़े आदमी हैं। उनकी जरूरत होगी तो वे नौ बजे सो जाते हैं। लेकिन नौ बजे दूसरों को नींद ही नहीं आती, वे पड़े हैं। लेकिन नौ बजे नियम है आश्रम का तो नौ बजे सो जाना है, तीन बजे उठ आना है। फिर दिन भर बेचैनी है; फिर बेचैनी से इररिटेशन है; फिर बेचैनी से हर छोटी-छोटी बात में क्रोध है।
इसलिए तुम साधु-संतों को बड़ा क्रोधी पाओगे। उनके भीतर जीवन-ऊर्जा सम्यक नहीं है। इसलिए हर छोटी चीज परेशान करेगी, हर छोटी चीज पर नाराजगी आएगी। नाराजगी का कारण भीतर है कि तुम बेचैन हो। न ठीक भोजन कर रहे हो, न ठीक सो रहे हो; न ठीक श्रम कर रहे हो। तुम्हारी अड़चन स्वाभाविक है।
___ अपना नियम खोज लेना। आने देना अनुशासन को भीतर से। इसलिए मैं तुम्हें सिर्फ विवेक सिखाता हूं कि तुम होशपूर्वक अपने को समझने की कोशिश करो। दुनिया में कोई तुम्हारा मालिक नहीं है। और किसी ने तुम्हारे लिए आखिरी नियम नहीं लिख दिए हैं। तुम्हारा धर्मशास्त्र तुम्हारे शरीर और तुम्हारे मन में छिपा है। तुम उसे पढ़ना सीखो। और वहीं से अगर तुमने आदेश लिया तो तुम पाओगे कि तुम शांत होते चले जाते हो। जितने तुम शांत होते हो उतने आनंद की क्षमता बढ़ती है। और तब तुम यह भी पाओगे कि बहुत नियम की जरूरत नहीं है। बड़े छोटे से नियम, जिनको नियम कहना भी ठीक नहीं है, तुम्हारे जीवन को रूपांतरित कर देंगे।
'मानवीय कारबार की व्यवस्था में, मिताचारी होने से बढ़िया दूसरा नियम नहीं है।'
अगर लाओत्से से तुम पूछो कि तुम्हारे जीवन का नियम क्या है? तो लाओत्से कहता है, जब मुझे नींद आती है मैं सो जाता है; जब मुझे भूख लगती है तब मैं भोजन कर लेता हूं; जब नींद खुल जाती है तब जाग जाता हूं। बस ऐसे नियम हैं, और कोई नियम नहीं है। और लाओत्से परम अवस्था को उपलब्ध हुआ।
. फिर नियम भी सख्त नहीं हो सकते, लेचपूर्ण होंगे। क्योंकि तुम्हारी जरूरत रोज बदलेगी। जो नियम तुमने जवानी में बनाया, वह बुढ़ापे में काम न आएगा। जो आज बनाया, कल काम न आएगा। इसलिए तुम नियम को भी सख्त मत बना लेना। अपना भी बनाया हुआ नियम सख्त नहीं होना चाहिए। अगर सख्त हुआ तो तुम जाल में पड़ जाओगे। क्योंकि तुम्हारी शरीर की जरूरत रोज बदलेगी। आवश्यकता के अनुसार तुम जागते हुए बदलते जाना। नियम लोचपूर्ण चाहिए। तुम नियम के लिए नहीं हो, नियम तुम्हारे लिए हैं। नियम तुम्हें व्यवस्था देने के लिए हैं। तुम यहां इसलिए नहीं हो कि कुछ नियमों को तुम अपने में व्यवस्था दो।
'मिताचार पूर्व-निवारण करना है।'
और जिस व्यक्ति के जीवन में लोचपूर्ण, कम से कम, अपरिहार्य नियम होंगे, अपने ही खोजे हुए, वह व्यक्ति पूर्व-निवारण कर लेता है। उसकी हजारों मुसीबतें आती ही नहीं। पहले तो मुसीबत को बुलाना और फिर निवारण करना नासमझी है। मुसीबत तो पहले ही रोकी जा सकती है। मुसीबत का तो पूर्व-निवारण हो सकता है। लेकिन बड़ा होश चाहिए तब। बड़ी सजगता चाहिए।
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