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________________ बियमों का बियम प्रेम व स्वतंत्रता है और तब तुमने क्या अड़चन कर ली! अब तुमसे ध्यान भी नहीं हो सकता। ध्यान नहीं हो सकता तो वे समझते क्या हैं? ये मन के गणित बड़े अजीब हैं। वे समझते हैं कि तमस की वजह से ध्यान नहीं लग रहा। और कम सोओ, तमस को काटो। जितना तमस काटोगे उतनी तमस की जरूरत बढ़ती जाएगी। क्योंकि कहीं न कहीं से जरूरत पूरी होगी। इसलिए तुम मंदिरों में जाओ, वहां लोगों को तुम झपकी लेते पाओगे। . मुल्ला नसरुद्दीन मस्जिद जाता है तो सोने के लिए ही। जो पुरोहित वहां व्याख्यान करता है, वह थोड़ा परेशान हुआ, क्योंकि वह सिर्फ सोता ही नहीं, वह घुर्राता भी है। और बुजुर्ग आदमी है, पंचायत का प्रमुख है, तो आगे ही बैठता है। और आगे ही घुर्राता है। उससे पुरोहित को बड़ी अड़चन होती है; बोलने में भी अड़चन होती है। और अभद्र भी मालूम पड़ता है, इससे वह कुछ कह भी नहीं सकता। उसके लड़के का लड़का, नाती भी साथ आता है। तो पुरोहित ने तरकीब निकाली। और पुरोहित तो तरकीब निकालने वाले लोग हैं, उनसे ज्यादा चालाक आदमी नहीं। क्योंकि उनका धंधा ही चालाकी का है। बड़ा सूक्ष्म धंधा है, उसमें चालाकी होगी ही। तो उसने बगल में, सभा के बाद, लड़के को बुलाया और कहा, देख, तुझे मैं चार आने दूंगा; जब भी तेरे दादा को नींद लग जाए तो तू जरा हिला कर जगा दिया कर। लड़के ने कहा, ठीक। दो-तीन सप्ताह तो सब ठीक चला। चौथे सप्ताह लड़का बिलकुल शांत बैठा रहा और बूढ़ा घुर्राने लगा। फिर पुरोहित ने उसे बुलाया कि क्यों भाई, तुझे मैं चार आने देता हूं! उसने कहा, वह आप देते हैं, लेकिन मेरे दादा मुझे आठ आने देने का कहे हैं; कि अगर बीच में बाधा नहीं देगा तो आठ आने दूंगा, वे कहते हैं। अब मैं क्या कर सकता हूं? मंदिरों में, मस्जिदों में, चर्चों में लोग सो रहे हैं। ध्यान रखना कि अगर नींद पूरी न होगी तो ध्यान तुम कर ही न सकोगे। नींद एक जरूरत है। नींद कोई पाप नहीं है। नींद कुछ बुराई नहीं है, कोई अपराध नहीं है। पूरी नींद कर लोगे, तभी तुम ध्यान कर पाओगे। क्योंकि ध्यान भी बड़ी विश्राम की अवस्था है। अगर तुम नींद ही में पूरे न गए तो जैसे ही तुम शांत बैठोगे वैसे ही नींद लग जाएगी। क्योंकि जरूरत शरीर की पहले पूरी होती है। इसे ध्यान रखना ः शरीर की जरूरत पहले है, आत्मा की जरूरत बाद में है। और शरीर की जरूरत जिसने पूरी नहीं की उसकी आत्मा की जरूरत कभी भी वह पूरी नहीं कर पाएगा। इसलिए तो हम कहते हैं, भूखे भजन न होंहि गुपाला। भूख लगी हो तो भजन कैसे करोगे? भूख ही भजन में गूंजती रहेगी। पेट भरा हो तो ही भजन हो सकता है। इसका यह मतलब भी नहीं है कि पेट बहुत भरा हो। बहुत भरा हो तो भी भजन नहीं हो सकता। एक सम्यक अवस्था चाहिए शरीर की। न तो बहुत भोजन, में बहुत कम। न बहुत ज्यादा नींद, न बहुत कम। न बहुत ज्यादा श्रम, न बहुत कम। और हर व्यक्ति को अपना सूत्र खुद ही खोजना पड़ता है। क्योंकि हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अलग है। इसलिए दुनिया में कोई तुम्हारे लिए नियम नहीं बना सकता। लेकिन अक्सर यह भ्रांति होती है। यह भी तुम समझ लेना कि मिताचारी होने का यह भी अर्थ है कि तुम दूसरे के लिए नियम बनाने की कोशिश मत करना। क्योंकि जो तुम्हारे लिए नियम है वह दूसरे के लिए घातक फंदा हो सकता है। शास्त्र अक्सर, हिंदू शास्त्र, बूढ़ों ने लिखे हैं। बूढ़ों की नींद कम हो जाती है। शरीर की जरूरत खतम हो जाती है। तो बूढ़े अक्सर, चाहे वे ज्ञानी न भी हों, तो भी तीन बजे के करीब जग जाते हैं। पड़े रहें, बात अलग। जब बूढ़े शास्त्र बनाएंगे तो वे लिखेंगे कि तीन बजे उठना नियम है। लेकिन यह शास्त्र बच्चों के काम में नहीं लाया जा सकता। क्योंकि मां के पेट में बच्चा चौबीस घंटे सोता है। उसकी जरूरत उतनी है। जब शरीर में इतना काम हो रहा है, सृजन हो रहा है, हर चीज बन रही है, तो बच्चे के जागने से बाधा पड़ जाएगी। वह सोया रहता है। शरीर में सृजन का काम चल रहा है। बच्चे को बीच में आने की जरूरत नहीं है। वह चौबीस घंटे सोता है मां के पेट में। फिर पैदा होने के बाद 253
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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