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ताओ उपनिषद भाग ५
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तो मिताचार का दूसरा आयाम है कि तुम व्रत, त्याग, उसमें भी थोड़े से राजी हो जाना; आचरण में भी थोड़े से राजी हो जाना। आचरण में भी तुमको बहुत बड़ा महात्मा होना चाहिए, इस पागलपन में मत पड़ना। क्योंकि वह पागलपन तो एक ही जैसा है। क्योंकि उसका सूत्र एक ही है और चाहिए, और चाहिए, और चाहिए। जब तक सारी दुनिया तुमको महात्मा न कहे तब तक तुम कैसे राजी हो सकते हो ? वहां भी तुम थोड़े से राजी हो जाना।
असल में, थोड़े से राजी हो जाना ही महात्मापन है। इसलिए तुम महात्मापन की अगर तलाश करते रहे तो मुश्किल में पड़ोगे। तब दौड़ वही की वही रहेगी। दिशा बदल गई, लेकिन दिशा का स्वभाव नहीं बदला। गुणव का वही है। तुम त्याग की भी ज्यादा आकांक्षा मत करना । जो सुखपूर्वक तुम कर सको, जो तुम सहजता से कर सको, बस उतने पर राजी हो जाना। असहजता की तरफ मत जाना ।
एक साधु मेरे पास आए; कहने लगे, बहुत अड़चन है। एक ही अड़चन है, उसकी वजह से आया हूं। वह अड़चन यह है कि नींद बहुत सताती है । और शास्त्रों में कहा है कि जो नींद में ज्यादा लिप्त है वह तामसी है। तो मैंने पूछा कि कितना सोते हो? तो उन्होंने कहा कि रात तीन बजे उठता हूं और कोई ग्यारह बजे सोने जाता हूं। तो चार ही घंटे सोते हैं। और उन्होंने कहा, शास्त्रों में कहा है कि योगी को दो घंटा काफी है। मैंने कहा, शास्त्रों में तो यह भी कहा है कि जब सब सोते हैं तब भी योगी जागता है। तुम बड़ी मुश्किल में हो।
वे कहते हैं, दिन भर नींद आती है। आएगी ही। तीन बजे उठोगे तो इसमें कसूर किसका है? तो वे कहते हैं, प्रार्थना भी करता हूं तो झपकी आती है। आएगी ही । ध्यान लगता ही नहीं; क्योंकि ध्यान के पहले नींद लग जाती है। आएगी ही। बिलकुल सीधा-साफ है । इसमें कुछ अड़चन नहीं है। शरीर की जरूरत है। अतिशय मत खींचो। पागल हो जाओगे । और अगर नींद जैसी सरल चीज के प्रति भी अपराध का भाव आ गया— नींद जैसी सरल चीज, इससे ज्यादा सरल और क्या होगा ? कुछ भी तो नहीं करना है, सिर्फ सो जाना है। और नींद में कम से कम तुम महात्मा होते हो। कुछ उपद्रव नहीं करते, कोई की हत्या नहीं करते, कोई की चोरी नहीं, कोई जेब नहीं काटते। इतनी सरल सी चीज से ऐसा क्या विरोध बना रखा है ?
वे थोड़े चौंके। उन्होंने कहा, क्या आपका मतलब है ज्यादा सोना शुरू करूं? तो वह तो तामस हो जाएगा । क्या होगा कि नहीं होगा, यह मुझे मतलब नहीं है। जो जरूरत है ! तो उसका अर्थ हुआ कि तामस की जरूरत है। क्योंकि शरीर तामस का हिस्सा है। जब तक तुम शरीर में हो तब तक शरीर थकता है; थकता है तो विश्राम चाहिए। और अगर तामस की जरूरत ही न होती तो परमात्मा तामस को बनाता ही क्यों ? दो ही गुणों से काम चला ता। तीन गुण की क्या जरूरत है? परमात्मा भी बिना तामस के नहीं बना सकता अस्तित्व को। तुम कोशिश में लगे हो परमात्मा से आगे जाने की। प्रतिस्पर्धा बड़ी है।
परमात्मा भी सत्व और रज से अस्तित्व को नहीं बना सकता। क्योंकि तमस की बड़ी खूबी है। उसका अपना रहस्य है । तमस के बिना कोई चीज थिर ही नहीं होती । रज में बड़ी गति है। लेकिन अकेली गति से थोड़े ही संसार बनता है! कोई चीज ठहराने वाली चाहिए। तुम दौड़ते ही रहोगे, दौड़ते ही रहोगे, तो मुश्किल में पड़ोगे । कहीं तो रुकना पड़ेगा। रुकोगे, वहीं तमस शुरू होगा । तमस तो एक सिद्धांत है। लेकिन लोगों ने तमस शब्द का बड़ा अपमानजनक उपयोग शुरू कर दिया । तमस का तो इतना ही मतलब है : रुकने का सिद्धांत, विश्राम का सिद्धांत ।
परमात्मा को भी विश्राम करना पड़ता है। इसलिए तो हम कहते हैं कि ब्रह्मा का दिन सृष्टि है। फिर ब्रह्मा की रात आती है तो प्रलय हो जाता है । सारा अस्तित्व सिकुड़ कर शांत हो जाता है, नींद में चला जाता है। तो अगर हम पूरे अस्तित्व को बारह घंटा मान लें, दिन, तो फिर बारह घंटा, इतनी ही बड़ी रात है जब सब सो जाता है। खुद परमात्मा सो जाता है। तो तुम परमात्मा से किसलिए होड़ में लगे हो ? तुम शांति से सो जाओ।