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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ और अगर वह स्वयं को बाध्य करे, या किसी की बाध्यता में आ जाए और कुछ करने में लग जाए, उसी क्षण संसार उसके हाथ के बाहर निकल जाता है। क्योंकि जैसे ही तुम कुछ करते हो, कर्ता आया, वैसे ही परमात्मा से तुम्हारा संबंध टूट जाता है। परमात्मा से तुम्हारा संबंध टूटा है तुम्हारे ज्ञानी होने और कर्ता होने से। और परमात्मा से तुम्हारा संबंध जुड़ जाएगा, तुम अकर्ता हो जाओ और अज्ञानी हो जाओ। तुम कह दो कि मुझे कुछ पता नहीं। और यही असलियत है, पता तुम्हें कुछ भी नहीं है। क्या पता है? कुछ भी पता नहीं है। आइंस्टीन ने मरते वक्त कहा है कि जिंदगी ऐसे ही गई, मैं कुछ बिना जाने मर रहा हूं; कुछ जाना नहीं है। और आइंस्टीन ने मरते वक्त कहा कि दुबारा अगर जन्म मिले तो मैं वैज्ञानिक न होना चाहूंगा। एडीसन कहा करता था...। एडीसन ने एक हजार आविष्कार किए हैं, उससे बड़ा आविष्कारक नहीं हुआ। तुम्हें पता ही नहीं, तुम्हारे घर की बहुत सी चीजें उसी के आविष्कार हैं-ग्रामोफोन, रेडियो, बिजली, सब उसी के हैं। तुम्हारा घर उसके आविष्कारों से भरा है। लेकिन एडीसन से जब किसी ने पूछा कि तुम इतना जानते हो! तो उसने कहा कि हमारे जानने का क्या मूल्य है? मैं सारे उपकरण बना लिया हूं विद्युत के, लेकिन विद्युत क्या है, यह मुझे अभी पता नहीं। बिजली क्या है? ऐसी घटना है एडीसन के जीवन में कि एक गांव में गया था, पहाड़ी गांव पर विश्राम करने गया था। छोटा गांव ग्रामीणों का; छोटा सा स्कूल। स्कूल का वार्षिक दिन था, और बच्चों ने कई चीजें तैयार की थीं। पूरा गांव स्कूल देखने जा रहा था। तो एडीसन भी चला गया; फुरसत में बैठा था, कोई काम भी न था। कोई वहां उसे पहचानता भी नहीं था। तो बच्चों ने छोटे-छोटे खेल-खिलौने बिजली के बनाए थे। वह एडीसन तो बिजली का सबसे बड़ा ज्ञाता था। बच्चों ने मोटर बनाई थी, इंजन बनाया था, और बिजली से चला रहे थे। और ग्रामीण बड़े चकित होकर सब देख रहे थे। एडीसन भी चकित होकर सब देख रहा था। फिर उसने उस बच्चे से पूछा, जो बिजली की गाड़ी चला रहा था, कि बिजली क्या है? व्हाट इज़ . इलेक्ट्रिसिटी? उस बच्चे ने कहा कि यह तो मुझे पता नहीं; मैं अपने विज्ञान के शिक्षक को बुला लाता हूं। तो वह अपने विज्ञान के शिक्षक को बुला लाया। वह ग्रेजुएट था विज्ञान का। पर उसने कहा कि यह तो मुझे भी पता नहीं है कि बिजली क्या है। बिजली का कैसे उपयोग करें, वह हमें पता है। आप रुकें, हम अपने प्रिंसिपल को बुला लाते हैं। उसके पास डाक्टरेट है साइंस की। वह प्रिंसिपल भी आ गया। उस प्रिंसिपल ने भी समझाने की कोशिश की इस ग्रामीण को; क्योंकि वह ग्रामीण जैसा ही वेश पहने हुए था। लेकिन वह ग्रामीण कोई ग्रामीण तो था नहीं, वह एडीसन था। वह पूछता ही गया कि आप सब कह रहे हैं, लेकिन जो मैंने पूछा, वह नहीं कह रहे हैं। मैं पूछ रहा हूं, बिजली क्या है? सीधा सा उत्तर क्यों नहीं देते? आप जो भी कह रहे हैं, उससे उत्तर मिलता है कि बिजली का कैसे उपयोग किया जा सकता है। लेकिन बिजली क्या है? उपयोग तो पीछे कर लेंगे। आखिर वह भी हैरान हो गया और उसने कहा कि तुम बकवास बंद करो, बेहतर होगा तुम एडीसन के पास चले जाओ। तुम उससे ही मानोगे। उसने कहा, तब गए काम से। वह तो मैं खुद ही हूं। तो फिर कहीं उत्तर नहीं है। अगर एडीसन के पास ही आखिरी उत्तर है तो फिर कहीं उत्तर नहीं है। तो फिर जाना बेकार है; क्योंकि वह तो मैं खुद ही रहा। यह जो अस्तित्व है, बड़ी से बड़ी जानकारी के बाद भी तो बिना जाना रह जाता है। क्या जानते हैं हम? एक फूल का भी तो हमें पता नहीं। अज्ञान और अक्रिया, अगर दो सध गईं—तुम गए, तुम मिट गए। फिर परमात्मा है तुम्हारी जगह; तुम खाली हो गए। जैसे ही तुम खाली होते हो वह तुम्हें भर देता है। 16
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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