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आत्म-ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है -
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'और यदि कुछ करने को बाध्य किया जाए, तो संसार उसकी जीत के बाहर निकल जाता है।'
और तुम अगर अपने को बाध्य करोगे कुछ करने को, उसी क्षण तुम्हारा संबंध टूट जाता है। अकर्ता, अज्ञानी, शून्य भाव से - तुम सब कुछ हो । कर्ता हुए, अकड़ आई, कुछ करने का खयाल जगा, क्रिया में उतरे, कर्म के जाल में उतर गए - संसारी हो गए।
इसलिए तो हम कहते हैं इस देश में कि जो कर्म के जाल से मुक्त हो जाए...। कर्म के जाल से कौन मुक्त होगा जब तक तुम्हें कर्ता का भाव है ! और ज्ञान भी तो तुम्हारा कर्म है। वह भी तो तुमने कर करके इकट्ठा किया है। कर्म का जाल उसी दिन टूटेगा जिस दिन न कर्ता रह जाए, न ज्ञान रह जाए। तुम छोटे बच्चे की भांति हो जाओ, जिसे कुछ भी पता नहीं है, जो कुछ भी कर नहीं सकता है। उसी के भीतर से परमात्मा उंडलने लगता है।
और लाओत्से कहता है, सारा संसार जीत लिया है अक्सर उन्होंने, जिन्होंने कुछ भी नहीं किया।
कुछ अनूठे रास्ते हैं। अनुभव से मैं कहता हूं कि वे रास्ते हैं। इधर मैं बिना कुछ किए चुपचाप बैठा रहता हूं, दूर-दूर अनजान देशों से लोग चुपचाप चले आते हैं। वे कैसे आते हैं, रहस्य की बात है। कौन उन्हें भेज देता है, रहस्य की बात है। कोई अनजान, कोई अदृश्य शक्ति चौबीस घंटे काम कर रही है। जहां भी गड्ढा हो जाता है, उसी तरफ यात्रा अनेक चेतनाओं की शुरू हो जाती है। कुछ कहने की भी जरूरत नहीं होती। किन्हीं अनजान रास्तों से उन्हें खबर मिल जाती है। कोई उन्हें पहुंचा देता है। ऐसा सदा ही हुआ है। तुम अपने करने वाले को भर मिटा दो, और तुमसे विराट का जन्म होगा। तुम कर्ता बने रहो, तुम क्षुद्र में ही सीमित मर जाओगे। तुम्हारा कर्ता होना और ज्ञानी होना तुम्हारी कब्र है । कर्ता और ज्ञानी गया कि तुम मंदिर हो गए। परमात्मा तुमसे बहुत कुछ करेगा। तुम जरा हट जाओ, तुम जरा मार्ग दो । परमात्मा तुम्हें बहुत ज्ञान से भरेगा, तुम जरा अपने ज्ञान का भरोसा छोड़ो। तुम जरा अपने ज्ञान की गठरी को उतार कर भर रखो और फिर देखो।
आज इतना ही ।