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बियमों का बियम प्रेम व स्वतंत्रता है
गया। और कोहिनूर भी फीका है इसके सामने, क्योंकि अब तुम्हारे हृदय का संवेग लेकर जा रहा है। अब इस फूल का काव्य ही अनूठा है। अब यह फूल साधारण इस पृथ्वी का फूल न रहा। तुमने इसमें कुछ डाल दिया, यह पारलौकिक हो गया।
लेकिन तुम नियम से खरीद सकते हो। तुमने किताब पढ़ी हो, मैरिज मैनुअल्स में लिखा हुआ है कि जब घर जाओ तो आइसक्रीम, फूल या कुछ खरीद कर ले जाओ। क्योंकि पत्नी वहां बैठी है खतरनाक, उसे थोड़ा संतुष्ट करना है। जैसे देवी पर कोई चढ़ोत्तरी चढ़ाते हैं, ऐसा वह देवी घर में बैठी है, पता नहीं क्रुद्ध हो, नाराज हो, तुम्हारे फूल के ले जाने से थोड़ा सा समझौता होगा-एक रिश्वत की भांति। तब यह फूल कुरूप हो गया। यह दो पैसे का भी न रहा। तब यह फूल गंदा हो गया। क्योंकि फूल तो वही है जो तुम्हारे भीतर से तुम उसमें डालते हो।
पति लाते हैं। जिस दिन वे अपराधी अनुभव करते हैं उस दिन जरूर कुछ खरीद कर लाते हैं। आइसक्रीम खरीद लाते हैं। और पत्नियां भी जानती हैं कि आज जरूर किसी और स्त्री की तरफ गौर से देखा है। नहीं तो आइसक्रीम की क्या जरूरत है? आज पति कुछ गिल्टी है, कुछ अपराधी है, कहीं भीतर कोई दंश है। तो आइसक्रीम खरीद कर लाया है। नहीं तो नहीं। अगर हार ही खरीद लाया हो तो पक्का ही है यह किसी दूसरी स्त्री के प्रेम में पड़ गया है। वह जितनी बड़ी भेंट लाता है उतने ही बड़े अपराध की खबर लाता है।
दो व्यक्तियों के बीच जब नियम होता है तो प्रेम नहीं होता। नियम का अर्थ ही यह होता है कि तुम बाजार में चल रहो हो, बुद्धि से चल रहे हो। हृदय के कोई नियम हैं, कोई अनुशासन हैं? न कोई नियम है, न कोई अनुशासन है। फिर भी हृदय का एक अनुशासन है जो बड़ा अनूठा है; जो बिना लाए आता है, जो बिना आरोपित किए मौजूद हो जाता है। जो खिलता है क्षण-क्षण, जो अतीत से नहीं आता, जो वर्तमान में जन्मता है।
तुमने पत्नी को देखा घर जाकर और तुमने उसे हृदय से लगा लिया। यह तुम नियम से भी कर सकते हो। करना चाहिए। डेल कारनेगी जैसे लोग किताबें लिखते हैं, और वे किताबें लाखों में बिकती हैं। बाइबिल के बाद डेल कारनेगी की किताबें बिकी हैं दुनिया में। और सब कचरा हैं। और सब आदमी को झूठा और पाखंडी बनाती हैं। तो डेल कारनेगी कहता है, चाहे तुम्हें लगता हो चाहे न लगता हो, लेकिन पत्नी से दिन में कम से कम दो-चार बार कहना जरूरी है कि मैं तुझे प्रेम करता हूं, तेरी जैसी सुंदर कोई स्त्री नहीं है। लगे चाहे न लगे, यह सवाल नहीं है, यह कहना जरूरी है। इसको तोते की तरह दोहरा देना जरूरी है। डेल कारनेगी कहता है, इससे संबंध सुमधुर बने रहते हैं। कैसी झूठी दुनिया है! जहां न लगता हो तब दोहराना, तो जिंदगी एक पाखंड हो जाती है।
. जीवन एक कला है, पाखंड नहीं। और कसा का यह अर्थ नहीं है कि तुम किसी स्कूल में उस कला को सीख सकते हो। जीकर ही तुम सीखते हो। जैसे कोई पानी में उतर कर तैरना सीखता है, ऐसे ही जी-जीकर तुम जीवन की कला सीखते हो। एक ही सूत्र खयाल में रखना जरूरी है कि तुम होशपूर्वक जीओ और देखो कि जीवन कैसा है।
और पाखंड से बचो। पाखंड धोखा ही बनाएगा। यह भी हो सकता है कि दो व्यक्तियों के संबंध पाखंड के कारण थोड़े से सुविधापूर्ण हों। लेकिन कभी भी आनंदपूर्ण न होंगे। सुविधा सस्ती चीज है। सुविधा को ले लेना और आनंद को गंवा देना मंहगा सौदा है।
लाओत्से कहता है, मिताचारी। मिताचारी का पहला आयाम है : कम से कम आचरण के नियम हों। 'इन मैनेजिंग ह्यूमन अफेयर्स, देयर इज़ नो बेटर रूल दैन टु बी स्पेयरिंग।'
जब नियम कम होते हैं तो तुम दूसरे व्यक्ति को मौका देते हो उसके स्वयं होने का। यह बड़े से बड़ा प्रेम है इस जगत में कि तुम दूसरे को वही होने दो जो वह होना चाहता है; तुम दूसरे को वही होने दो जो वह होने को पैदा हुआ है। तुम दूसरे की नियति में बाधा मत बनो।
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