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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ जिस आदमी ने हिरोशिमा पर बम डाला, वह बम फेंक कर वापस सो गया आकर। आठ बज कर दस मिनट पर उसने बम फेंका; नौ बजे वापस आकर वह गहरी नींद में सो गया। उधर एक लाख लोग आग में भुन गए। छोटे-छोटे बच्चे थे; अभी गर्भ से बाहर भी न आए थे, वे भी बच्चे थे। स्त्रियां थीं, बूढ़े थे, जिनका कोई युद्ध से लेना-देना न था; नागरिक, जो न युद्ध कर रहे थे, न जो युद्ध चला रहे थे; बिलकुल निहत्थे, जिनके पास कोई बचाव भी नहीं था। वे आग में भुन गए। हिरोशिमा में एक बैंक है जो जल गया। उसकी घड़ी किसी तरह बच गई है। वह ठीक आठ बज कर दस मिनट पर रुक गई। उस घड़ी को बचा लिया गया है। वह हिरोशिमा की याददाश्त है। उस दिन समय जैसे रुक गया। और आदमी ने गैर-आदमी होने की, अमानवीय होने की आखिरी छलांग ले ली। यह आदमी सो गया। सुबह जब उठा तो पत्रकारों ने उससे पूछा कि तुम रात ठीक से सो सके? उसने कहा कि बहुत मजे से! ऐसी गहरी नींद कभी नहीं आई। क्योंकि काम पूरा कर दिया; जो मुझे आज्ञा मिली थी वह पूरा कर दिया। आज्ञा पूरी हो गई; मैं विश्राम में चला गया। इस आदमी के मन पर जरा सा दंश भी नहीं है। तुम्हारे पैर से चींटी भी कुचल जाए तो भी थोड़ा सा लगता है कि अकारण, थोड़े होश से चल सकता था। एक लाख लोग! थोड़ी संख्या नहीं है। और मैं एक लाख लोगों को मार आऊं और रात आराम से नींद आ जाए, यह सिर्फ सैनिक को हो सकता है। वह विचार से नीचे गिर गया। इसके पास अब कोई विचार-विमर्श की क्षमता न रही। इसका अपना विवेक न रहा। इसका अब कोई होश नहीं है। यह मशीन है। नियम व्यक्ति को मशीन बनाते हैं। नियम मनुष्यता की हत्या है। इसलिए पहला तो खयाल ले लेना कि जितने कम नियम तुम्हारे अंतर्संबंधों में हों उतना अच्छा। न हों तो वह परम दशा है। संत तुम्हारे साथ बिना नियम के जीता है। प्रेम उसका नियम कह सकते हो। लेकिन वह कोई नियम नहीं है, वह उसका स्वभाव है। संत तुम्हारे साथ ऐसे जीता है जैसे तुम्हारे-उसके बीच कोई भी नियम नहीं है। क्षण-क्षण, क्षण की संवेदना, क्षण का प्रतिसंवेदन जो ले आता है, उसी को जीता है। नियम अतीत से आते हैं। एक ढांचा भीतर होता है। अगर तुम मेरे पास आओ और इसलिए मेरे पैर छुओ कि परंपरागत है कि गुरु के पास जाओ तो पैर छूने चाहिए-इसलिए अगर पैर छुओ-तो छूना ही मत। क्योंकि यह नियम से आ रहा है। न, अचानक तुम मेरे पास झुकने के भाव से भर जाओ, वह भाव किसी नियम से न आए, वह तुम्हारे अंतस से आए, वह तुम्हारे प्रेम का हिस्सा हो। तब बात और है। तब गुण और है। तब उस झुकने का रस और है। तब तुम उस झुकने में कुछ पाओगे। तब तुम उस झुकने में भर जाओगे, तब तुम उस झुकने में पाओगे कि तुम्हारा घड़ा झुका और नदी से भर गया। लेकिन अगर नियम से तुम झुके तो तुम व्यर्थ ही झुकोगे। वह कवायद हो सकती है, उससे तुम्हारे शरीर को शायद थोड़ा लाभ हो, लेकिन आत्मा को कोई लाभ न होगा। नियम से आत्मा को कभी कोई लाभ नहीं होता, हानि भला हो जाए। तुम घर जा रहे हो। तुम पत्नी के लिए बाजार से एक फूल खरीद लेते हो। यह तुम नियम की तरह खरीद रहे हो? तो मत खरीदो। ये पैसे व्यर्थ जा रहे हैं। या कि तुम एक प्रेम, एक अनुग्रह के भाव से खरीदते हो कि पत्नी दिन भर प्रतीक्षा करती रही होगी, कि न मालूम कितना काम उसने किया होगा, खाना बनाया होगा, सब्जी तैयार की होगी, वह राह देखती होगी, और ऐसे ही मैं खाली हाथ चला जाऊं! और फूल तुम्हें दिख जाता है, तो तुम फूल ले लेते हो एक भाव-प्रवण दशा में-पत्नी तुम्हें इतना दे रही है, तुम उसे कुछ भी नहीं दे पा रहे! तब तुम्हारा फूल एक मूल्य रखता है। वह मूल्य बाजार का मूल्य नहीं है। तब चाहे तुमने यह फूल दो पैसे में खरीदा हो, यह बहुमूल्य हो 248
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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