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________________ बियमों का नियम प्रेम व स्वतंत्रता है अतिशय नियम में जीवन भी जटिल हो जाता है; और तुम ऐसे जीने लगते हो जैसे कोई सैनिक हो। सैनिक से आदमियत खो जाती है, उसका मानवीयपन खो जाता है। वह यंत्रवत हो जाता है-रोबोट। कब उठना, नियम से उठता है; कब बैठना, नियम से बैठता है; कब खाना, नियम से खाता है। सब व्यवस्थित हो जाता है। सैनिक आज्ञा में जीता है और नियम में बंध कर जीता है। सैनिक मनुष्यता का आखिरी पतन है। क्योंकि उसकी कोई स्वतंत्रता नहीं है। वह अपने सपने में भी स्वतंत्र नहीं होता। सपने तक में नियम घुस जाते हैं; उसकी नींद तक नियमों से आविष्ट हो जाती है। किसी पक्के सैनिक के पास अगर नींद में भी तुम खड़े होकर कह दो, लेफ्ट टर्न! वह नींद में भी करवट ले लेगा उसी वक्त। नियम अचेतन तक चले जाते हैं। विलियम जेम्स ने अपना एक संस्मरण लिखा है कि एक होटल में बैठ कर वह बातचीत कर रहा है। एक रिटायर्ड सैनिक रास्ते से गुजर रहा है अंडों की एक टोकरी लिए। उसने सिर्फ मजाक में, अपने मित्रों को दिखाने के लिए कि नियम कितने गहन घुस जाते हैं, जोर से चिल्ला कर कहा, अटेंशन! उस सैनिक को रिटायर हुए बीस साल हो गए। वह अटेंशन खड़ा हो गया। टोकरी नीचे गिर गई। अंडे सब जमीन पर फूट गए। वह सैनिक बहुत नाराज हुआ। उसने कहा, यह क्या मजाक है? विलियम जेम्स ने कहा कि हमें अटेंशन कहने का हक नहीं? तुम मत मानो। उसने कहा, यह कोई अपने बस में है मानना न मानना? आज्ञा आज्ञा है! रोबोट का मतलब है यंत्रवत। यहां तुमने बटन दबाई वहां प्रकाश जल गया। प्रकाश कोई रुक कर प्रतीक्षा थोड़े ही करता है, सोचता थोड़े ही है कि जलं, न जलूं। सैनिक भी वही है जो सोचने से बाहर हो गया। सोचने से दुनिया में दो लोग बाहर होते हैं, एक संत और एक सैनिक। संत सोचने के पार हो जाता है और सैनिक सोचने के नीचे गिर जाता है। दोनों पार हो जाते हैं। सैनिक पतित हो जाता है सोचने के स्थान से। उसको सोचने की जगह से पदच्युत करने के लिए ही सारी सैनिक व्यवस्था है। युद्ध चले या न चले, सैनिक के लिए जैसे युद्ध चलता ही रहता है। उसके क्रम में कोई भेद नहीं पड़ता। सुबह-शाम उसे घंटों लेफ्ट-राइट और कवायद करनी ही पड़ती है। उसे जरा भी शिथिल नहीं छोड़ा जा सकता। और क्यों इतनी कवायद करवाते हैं? लेफ्ट-राइट का क्या संबंध है? कोई संबंध नहीं है, लेकिन बहुत गहरी कंडीशनिंग की व्यवस्था है। सैनिक को हम कहते हैं, बाएं घूमो, वह बाएं घूमता है। हम कहते हैं, दाएं घूमो, वह दाएं घूमता है। धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे यह बात इतनी प्रगाढ़ हो जाती है, उसकी चेतन पर्तों से उतरते-उतरते अचेतन में चली जाती है। तब तुम्हारा कहना बाएं घूमो बटन दबाने की तरह काम करता है। सैनिक के बस के बाहर है कि न घूमे। घूमना ही पड़ेगा। यह घूमना अब यंत्रवत है। और जब एक सैनिक यंत्रवत घूमने लगा तब उसका भरोसा किया जा सकता है। तब उससे कहो, चलाओ गोली! तो वह गोली चलाएगा, चाहे सामने उसकी मां ही क्यों न खड़ी हो। तब वह अजनबी आदमी पर गोली चला देगा जिससे उसको कुछ लेना-देना नहीं है, जिससे कोई झगड़ा-झांसा नहीं है; जो उसी जैसा आदमी है, जिसके घर मां होगी, पत्नी होगी, बच्चे प्रतीक्षा कर रहे होंगे, प्रार्थना करते होंगे कि कब वापस लौट आए; और जिसने कुछ बिगाड़ा नहीं है। लेकिन सोच-विचार के सैनिक नीचे गिर जाता है। उसे यंत्रवत गोली चलानी है। उसे बंदूक का ही हिस्सा हो जाना है। सोचे-विचारे, यह मौका राज्य उसे नहीं दे सकता। क्योंकि सैनिक अगर खुद सोचने लगे तो हिरोशिमा पर बम गिराना मुश्किल है। क्योंकि वह सैनिक कहेगा, यह मैं न करूंगा; एक लाख आदमी राख हो जाएंगे क्षण भर में! इससे तो बेहतर तुम मुझे मार डालो। अगर मैं अपराध कर रहा हूं आज्ञा के उल्लंघन का, तुम मुझे गोली मार दो। लेकिन एक लाख लोगों को अकारण मारने मैं नहीं जा रहा हूं। 247
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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