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ताओ उपनिषद भाग ५
किसी ने अमरीका के बहुत बड़े करोड़पति-अरबपति एंड कारनेगी से पूछा कि तुम्हारे जीवन की सफलता का राज क्या है? तो एंड्र कारनेगी ने कहा, मेरी सफलता का राज एक ही है-और अब मैं बता सकता हूं, क्योंकि अब मेरी मौत करीब है और मेरी यात्रा पूरी हो गई और वह राज यह है कि मैं अपने से भी बुद्धिमान लोगों से काम लेता हूं और इस ढंग से काम लेता हूं कि उन सबको यह प्रतीति होती है कि उनके सुझाव मैं मान रहा हूं, हालांकि वे सुझाव मेरे ही होते हैं। तो एंड्र कारनेगी अपने साथियों को, सहयोगियों को बुला लेता था। उन सबसे कहता था, कोई समस्या है, हल करनी है, तो सब सुझाव दें। उसका सुझाव तो पक्का ही है; वह पहले अपना तय कर चुका है कि क्या करना है, वह उसे रखे बैठा है भीतर। लेकिन सबसे सुझाव मांगेगा। फिर मौका देख कर कोई सुझाव, जो उसके भीतर के सुझाव के करीब पड़ता होगा, वह उस सुझाव की चर्चा के बहाने चर्चा शुरू करेगा और वह ऐसा प्रतीत करवाएगा कि तुम्हारे में से ही किसी का सुझाव उसने स्वीकार कर लिया है। लेकिन वह कभी यह एहसास न होने देगा कि मैंने कोई सुझाव दिया जिसे तुम्हें मानना पड़ा है। एंड कारनेगी के पास जिन लोगों ने भी काम किया उन सबका भी वही एहसास है कि उसने कभी कोई सुझाव नहीं दिया। बहुत कुशल आदमी होगा। और ऐसा ही आदमी मानवीय जीवन को व्यवस्था देने में सफल हो पाता है।
तुम दूसरे को आदेश भी दो तो ऐसे देना जैसे वह सझाव है। और इस भांति देना कि मानने की कोई मजबूरी नहीं है। वह मानना चाहे तो माने, न मानना चाहे तो न माने। वह नहीं मानेगा तो तुम्हें कोई दुख होने वाला नहीं है, यह तुम साफ कर देना। क्योंकि न मान कर तुम्हें दुख देने की जो वृत्ति होती है वह तुम खुद ही काट देना। छोटा बच्चा नहीं मानना चाहता, क्योंकि वह जानता है, नहीं मानेगा तो तुम परेशान-पीड़ित होओगे। तो वह भी तुमको पीड़ित कर सकता है, यह शक्ति अनुभव होगी। तुम यह पहले ही जाहिर कर देना कि तू नहीं मानेगा तो कोई अड़चन नहीं है; मैं दोनों तरह से राजी हूं, दोनों में मेरी खुशी है-माने तो, न माने तो। तो तुमने दंश काट दिया। तुमने निषेध का जो रस था वह तोड़ दिया। तुमने जीवन-व्यवस्था को विधायक बना दिया।
सारी जीवन-व्यवस्था निषेधात्मक है। यहूदियों के, ईसाइयों के पास दस आज्ञाएं हैं। तुम अगर पश्चिम को समझने की कोशिश करो तो लाओत्से का सूत्र समझना बहुत आसान हो जाएगा। पश्चिम में बड़ी बगावत है। हर बाप के खिलाफ बगावत है। नई पीढ़ी कुछ भी मानने को राजी नहीं है। कुछ भी! जीवन के छोटे-छोटे नियम भी मानने को राजी नहीं है। स्नान भी करने को राजी नहीं है। गंदगी को आचरण बना लिया है। साफ-सुथरा दिखना बुर्जुआ, गए-गुजरे लोगों की आदत है। तो हिप्पी हैं और हिप्पियों जैसा सारा वर्ग है पश्चिम में, जो स्नान नहीं करेगा, गंदा रहेगा, गंदे कपड़े पहनेगा, धोएगा नहीं। कारण है : ईसाइयत ने बड़ा आग्रह किया पिछले दो हजार साल में, ईसाइयत ने कहा कि क्लीनलीनेस इज़ नेक्स्ट टु गॉड; स्वच्छता बस परमात्मा से नीचे है, स्वच्छता के ऊपर बस केवल परमात्मा है। इसका आग्रह इतना प्रगाढ़ हो गया कि हिप्पी पैदा हो गया। तो नई पीढ़ी ने कहा कि हमारे लिए तो दुर्गंध और अस्वच्छता ही दिव्यता है। ईसाइयत ने दस आज्ञाएं निर्धारित की हैं : चोरी मत करो, पर-स्त्री को मत देखो, धोखा मत दो...। लेकिन सभी नकारात्मक हैं।
एक ईसाई पादरी क्रिसमस के पहले पोस्ट आफिस गया था। वह कोई पार्सल किसी को भेंट भेज रहा था, और उस पर लिखा ऊपर ः हैंडल विद केयर। तो पोस्ट मास्टर ने पूछा कि कुछ कांच इत्यादि का सामान है? उसने कहा कि नहीं, बाइबिल भेज रहा हूं। तो उसने कहा कि बाइबिल में क्या टूटने जैसा है? उसने कहा, दस आज्ञाएं! वे कांच से भी ज्यादा नाजुक हैं।
असल में, नहीं और निषेध से ज्यादा नाजुक चीज जगत में दूसरी नहीं है। तुमने नहीं कहा कि तुमने आधार बना दिया तोड़ने का। तुमने किसी को भी कहा कि नहीं कि तुमने उसको निमंत्रण दे दिया कि तोड़ो।
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