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________________ ताओ उपविषद भाग ५ इसे देखने में किसी बच्चे को अड़चन नहीं होती कि गलत क्या है। क्योंकि जहां से जीवन में दुख आता है वह गलत है; इसके लिए कोई अनुभव की जरूरत नहीं है। इस जांच को तो हम लेकर ही पैदा होते हैं कि जिससे दुख मिलता है वह गलत है। बच्चा रोज देखता है, शराब दुख दे रही है, जुआ दुख दे रहा है। परिवार पीड़ा में जी रहा है, नरक में जी रहा है; सचेत हो जाता है, अपने को सम्हालने लगता है। जब कोई सम्हालने वाला नहीं होता तो बच्चा अपने को सम्हालता है। तुमने कभी देखा हो, छोटा बच्चा गिर जाए तो पहले वह चारों तरफ देखता है गिरने के बाद, रोना एकदम शुरू नहीं कर देता। पहले वह देखता है कि कोई है भी? मां है पास? तो ही रोने में कोई सार है। अगर मां पास नहीं है, चारों तरफ देख कर, कपड़े झाड़ कर अपने रास्ते पर चल देता है। गिरने के कारण नहीं रोता, मां की मौजूदगी के कारण रोता है। जब देखता है, कोई सम्हालने वाला नहीं, उठाने वाला नहीं, कोई संवेदना प्रकट करने वाला नहीं, अपने पैरों पर चुपचाप खड़ा हो जाता है। रोना किसके आगे? किसकी प्रतीक्षा करनी? कोई है नहीं उठाने वाला। खुद झाड़ देता है धूल को, उठ कर खड़ा हो जाता है। यह बच्चा प्रौढ़ हो गया। अकेला पाकर एक प्रौढ़ता इसमें आई कि रोना व्यर्थ है। लेकिन मां पास हो तो यह . रोएगा, चीखेगा, चिल्लाएगा। क्योंकि संवेदना किसी से मिल सकती है, कोई फिक्र करेगा, कोई ध्यान देगा। __इस बात को ठीक से समझ लेना कि जिन बच्चों को बहुत ध्यान दिया जाएगा, बहुत फिक्र की जाएगी, वे हमेशा निर्बल रह जाएंगे। वे ऐसे पौधे होंगे जो अपने तईं जी ही न सकेंगे। हॉट हाऊस प्लांट! उनके लिए कांच की दीवार चाहिए। सूरज की रोशनी भी उन्हें मुाएगी; हवा का झोंका भी उन्हें मार डालेगा; जरा सी ज्यादा वर्षा और उनकी जड़ें उखड़ जाएंगी। उनके पास कोई जड़ें नहीं हैं। और कारण क्या है? कारण इतना ही है कि उनकी अतिशय सुरक्षा की गई। अतिशय सुरक्षा स्वयं को सुरक्षित करने की सारी क्षमता का नाश कर देती है। तुम बच्चों को बचाना, लेकिन अति सुरक्षा मत देना। बचाना तो भी परोक्ष; सीधी व्यवस्था मत देना। तुम बच्चों के आस-पास एक वातावरण की तरह होना, जंजीरों की तरह नहीं। एक हवा हो तुम्हारी उनके आस-पास जो दीवार नहीं बनती। लेकिन कारागृह न हो। अगर बच्चे को तुम यह भी कहना चाहो कि मत करो इसे, तो भी इस ढंग से कहना कि उसके अहंकार को चोट न पहुंचे। रास्ते हैं, निषेध को कहने के भी विधायक रास्ते हैं। विधेय को भी कहने के निषेधात्मक रास्ते हैं। अगर बच्चा आग के पास जा रहा हो तो बजाय यह कहने के कि वहां मत जाओ, उसका ध्यान आकर्षित करना कि देखो, बगीचे में कैसा सुंदर फूल खिला है! तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम उसे विधेय देना कि वह फूल की तरफ चला जाए। आग की तरफ मत जाओ, यह बात ही खतरनाक है; क्योंकि यह निमंत्रण बन जाएगी। तुम जब मौजूद न होओगे तब बच्चा आग के पास जाना चाहेगा। क्योंकि निषेध किया गया है, और निषेध को तोड़ना जरूरी है। नहीं तो बच्चे का अपना अहंकार कैसे निर्मित होगा? इसे तुम ठीक से समझ लो। अहंकार निर्मित होने के लिए निषेध को तोड़ना जरूरी है; जो-जो कहा जाए, मत करो, वह करना जरूरी है। नहीं तो बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होना नहीं सीख पाएगा। इसीलिए तो तुम जो-जो कहते हो मत करो, वही-वही बच्चे करते हैं। और तुम परेशान होते हो, सिर पीटते हो कि क्या मामला है! इतना समझा रहे हैं, इतना रोक रहे हैं। समझाने-रोकने के कारण ही किया जा रहा है। निषेध की दीवार बनाई तुमने कि बगावत पैदा होती है। तुमने कहा, धूम्रपान मत करना। शायद अभी बच्चे ने इसके पहले सोचा भी न हो कि धूम्रपान करना है। कौन बच्चा सोचता है? या कभी किसी को देखता भी करते हुए और अनुकरण कर लेता-कोई निषेध न होता तो एक ही बार बच्चा धूम्रपान करेगा, दुबारा नहीं। खुद ही अनुभव से छूट जाएगा। क्योंकि सिवाय आंसू आने के, खांसी आने के 242
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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