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के पूर्व कुछ बातें समझ लें । मनुष्य के व्यवहार में और मनुष्य की व्यवस्था में स्वतंत्रता सूत्र है । जितने कम होंगे नियम, जितनी कम व्यवस्था करने की चेष्टा होगी, उतनी ही व्यवस्था आती है। जितने ज्यादा होंगे नियम, जितनी चेष्टा होगी व्यवस्था को आरोपित करने की, उतनी ही अराजकता पैदा होती है। इसे हम ऐसा कहें, मनुष्य और मनुष्य के बीच जितनी अराजकता हो उतनी व्यवस्था 'होगी, और जितनी व्यवस्था हो उतनी अराजकता हो जाएगी।
इसका कारण है। क्योंकि जब भी कोई एक व्यक्ति दूसरे को व्यवस्था देता है तब उसके अहंकार को चोट पहुंचती है। छोटे से बच्चे तक को व्यवस्था देने में अहंकार को चोट पहुंचती है तो बड़े बच्चों की तो कहना ही क्या !
छोटे से बच्चे को भी तुम कहो कि बैठ जाओ शांत होकर ! तो तुम जो
कहते हो वह महत्वपूर्ण नहीं मालूम पड़ता, छोटे बच्चे को पीड़ा मालूम पड़ती है। वह पीड़ा यह है कि उसे बिठाया जा रहा है। उसे अपनी असहाय अवस्था मालूम पड़ती है कि मेरे ऊपर अन्याय किया जा रहा है। आज मैं छोटा हूं तो मुझे दबाया जा रहा है। यह बच्चा बैठ भी जाए तो भी बड़े प्रतिशोध से भरा हुआ बैठेगा। और बैठने का तो कुछ भी मूल्य न था, प्रतिशोध का जहर जीवन भर पीछा करेगा।
इसलिए बच्चे अपने माता-पिता को कभी माफ नहीं कर पाते। असंभव है। नहीं माफ करने का कारण यह है कि इतनी व्यवस्था दी जाती है कि बच्चे के अहंकार को प्रतिपल चोट पहुंचती है। उसे लगता है, जैसे उसका अपना कोई होना ही नहीं; दूसरों के इशारे सब कुछ हैं-जहां वे चलाएं, चलो; जो वे बताएं, देखो; जो वे करने को कहें, करो। तुम्हारे भीतर स्वतंत्रता का कोई सूत्र वे बचने नहीं देते हैं। एक बोझ की भांति मालूम होता है यह व्यवस्था आरोपित किया जाना । यह बोझ इतना हो जा सकता है कि फिर बच्चा सारे ही बोझ को तोड़ दे और ठीक और गलत का हिसाब भी भूल जाए, और हर चीज के विरोध में खड़े होने की प्रवृत्ति से भर जाए।
इसीलिए तो अक्सर सज्जन माता-पिता के घर में सज्जन बच्चे पैदा नहीं हो पाते। क्योंकि सज्जन माता-पिता बच्चे को सज्जन बनाने में इतनी शीघ्रता से लग जाते हैं, उनकी चेष्टा का परिणाम दुर्जन का जन्म होता है। तो कभी-कभी जुआरी - शराबी के घर में अच्छा बच्चा पैदा हो जाए, लेकिन सज्जनों के घर में अच्छा बच्चा पैदा नहीं होता। जुआरी और शराबी के घर में कोई नियम तो है नहीं। जुआरी - शराबी नियम बनाएगा भी कैसे ? जुआरी - शराबी खुद ही अपने को व्यवस्थित नहीं कर पा रहा है, बच्चे को क्या व्यवस्था देगा ?
और एक अनूठी घटना घटती है - और मनसविद बड़ी चिंता में रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है— कि बच्चा खुद अपनी व्यवस्था अपने हाथ में ले लेता है। यह देख कर कि कोई व्यवस्था करने वाला नहीं है, यह अनुभव करके कि मैं अंधेरे में खड़ा हूं, खुद ही सम्हलने लगता है। यह देख कर कि माता-पिता, परिवार गलत रास्ते पर जा रहा है...।