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ताओ उपनिषद भाग ५
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छोटे से, थोड़ी सी संख्या है दिगंबर जैन मुनियों की, बीस-बाईस। इस समय भारत में बीस-बाईस दिगंबर जैन मुनि हैं, जो नग्न हैं। बड़े-बड़े नगरों में उन पर रुकावट है। बंबई में, दिल्ली में वे ऐसे ही नहीं जा सकते, पुलि को खबर करनी पड़ती है। तो उनके अनुयायी पुलिस को खबर करते हैं कि हमारे गुरु इस इस रास्ते से, इस - इस जगह से निकलेंगे। और तब भी वे ऐसा नहीं जा सकते खुले, उनके शिष्य उनके चारों तरफ घेरा बांध कर चलते हैं, ताकि वे किसी को दिखाई न पड़ें।
तुमने कभी जैन मुनि की सीधी खड़ी हुई फोटो किसी अखबार में कभी छपते देखी ? नहीं। जैन मुनि की तुम जितनी फोटो देखोगे उन सब में वह इस भांति बैठता है पालथी लगा कर कि उसकी नग्नता दिखाई न पड़े। क्योंकि वह सीधी फोटो खतरनाक होगी। कानून उसके खिलाफ है।
समझ में आता है कि कानून बीच में आए जब तुम किसी का अहित करो, अकल्याण करो, लेकिन जब कुछ भी नहीं कर रहे हो तब कानून को बीच में आने का क्या प्रयोजन है? पार्लियामेंट- असेंबलियों में चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है। अगर कोई ध्यान में नग्न खड़े होकर ध्यान करना चाहता है तो किसी का भी इसमें कोई लेना-देना नहीं है। और अगर किसी का लेना-देना है तो यह उसका रोग है; उसको अपने रोग की चिकित्सा करवानी चाहिए। अगर उसको लगता है कि किसी की नग्नता से उसके मन में वासना उठती है तो यह उसका रोग है; इससे नग्न होने वाले का कोई लेना-देना नहीं है। और जिसको नग्न देख कर वासना उठती है क्या तुम सोचते हो कपड़ों में छिपे शरीर को देख कर उसे वासना न उठेगी ? थोड़ी ज्यादा उठेगी। क्योंकि जो छिपा हो उसे उघाड़ने का मन होता है; जो उघड़ा हो उसे उघाड़ने का मन नहीं होता।
सच तो यह है कि नग्न आदमी या नग्न स्त्री कम से कम वासना उठाती है । छिपा हुआ शरीर निषेध बन जाता है, ज्यादा वासना उठाता है। स्त्रियां इतनी सुंदर नहीं हैं जितनी कपड़ों में ढंकी हुई मालूम पड़ती हैं। अगर स्त्रियों की नग्न कतार खड़ी हो, तो तुम बड़े चकित हो जाओगे, उसमें शायद ही कोई एकाध स्त्री सुंदर मालूम पड़े। लेकिन कपड़ों में ढंकी हैं; कुछ भी पता नहीं चलता । कपड़ों में ढंकी सभी स्त्रियां सुंदर मालूम पड़ती हैं। और अगर बुरका. ओढ़ा हो, तब तो कहना ही क्या ! तो कुरूप से कुरूप स्त्री भी बुरका पहने सड़क से निकल जाए तो हर आदमी सचेत हो जाता है। और सभी झांक कर देखने की कोशिश करते हैं मामला क्या है। यही स्त्री बिना बुरके के निकले, कोई देखने की फिक्र नहीं करता ।
जीवन के सीधे-सीधे सत्य हैं कि जो छिपा हो वह आकर्षक हो जाता है, जो प्रकट हो वह आकर्षक नहीं रह जाता। आदिवासियों को जाकर देखो, नग्न हैं । तुम्हें भी कुछ न लगेगा कि उनके नग्न होने में कुछ अपराध हो रहा है। तुम भी थोड़े दिन में राजी हो जाओगे। तुम्हें लगेगा कि अगर तुम्हें कुछ लग रहा है तो वह तुम्हारी अपनी बेचैनी है, जिसका इलाज चाहिए।
पार्लियामेंट में जो लोग बैठे हैं, जिनको चिंता होती है कि कोई ध्यानी नग्न खड़ा न हो, इनको अपनी मनोचिकित्सा करवानी चाहिए। लेकिन नहीं, उनके ऊपर पूरे देश का भार है। यह किसी ने दिया भी नहीं है भार, यह अपने हाथ से ले लिया है। सारे देश के कल्याण का उन्हें विचार करना है।
लाओत्से कहता है, कृपा करो, तुम अपना ही कल्याण कर लो तो काफी है। तुम सबका कल्याण मत करो; क्योंकि तुमसे अकल्याण होगा।
'शासन जब आलसी और सुस्त होता है, तब उसकी प्रजा निष्कलुष होती है।'
कानून कम से कम, शासन कम से कम, स्वतंत्रता ज्यादा से ज्यादा। क्योंकि स्वतंत्रता के बिना निष्कलुषता का फूल खिलता नहीं। स्वतंत्रता की भूमि चाहिए ।