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________________ शासन जितना कम हो उतना ही शुभ 229 आखिर कलुषता क्या है ? तुमने कभी खयाल किया कि तुम जितने कानून बनाओ उतनी ही कलुषता बढ़ती जाती है, क्योंकि उतने ही कानून के टूटने की संभावना बढ़ती जाती है। मैं घरों में देखता हूं। बच्चा कहता है, मुझे बाहर खेलने जाना है; मां कहती है, नहीं। बच्चा कहता है, आइसक्रीम चाहिए; मां कहती है, गला खराब हो जाएगा। बच्चा कहता है, चलो तो मिठाई ही ले लें; मां कहती है, ज्यादा मिठाई खाने से ये-ये नुकसान हो जाएंगे। तुम खड़े करते जाते हो कानून चारों तरफ से, बच्चे को कुछ होने का उपाय छोड़ते हो? कुछ भी सुविधा है उसको बच्चा होने की या नहीं है? रेत में खेले तो कपड़े खराब होते हैं, मिट्टी में खेले तो गंदगी हो जाती है। पड़ोस के बच्चों के साथ खेले तो वे बच्चे भ्रष्ट हैं, उनके साथ बिगड़ जाएगा। एक छोटे बच्चे से एक औरत ने पूछा कि तू तो अच्छा बच्चा है न? उसने कहा कि अगर सच पूछो तो मैं उस भांति का बच्चा हूं जिसके साथ मेरी मां मुझको खेलने न देगी। कोई सुविधा नहीं है। तब बच्चा अपराधी मालूम होने लगता है। उसे बाहर जाना जरूरी है। बच्चा है, बाहर जाएगा। खुले आकाश के नीचे सांस लेनी जरूरी है। अब अगर जाता है तो अपराधी हो जाता है; नहीं जाता है तो अभी से बूढ़ा होने लगता है। तुम ऐसी असुविधा खड़ी कर देते हो । रोको, आग में जाने की आज्ञा मांग रहा हो, मत जाने दो; समझ में आता है। लेकिन बाहर खुले आकाश में खेलने दो। कपड़े इतने मूल्यवान नहीं हैं जितना रेत के साथ खेलना। फिर यह उम्र दुबारा न आएगी। कपड़े धोए जा सकते हैं, लेकिन जो बच्चा खेलने से वंचित रह गया वह सदा कुछ न कुछ कमी अनुभव करेगा। उसका जीवन कभी पूरा न होगा। जो बच्चा मिट्टी में न लोट पाया, खेल न पाया, उसके जीवन में उत्सव की क्षमता कम हो जाएगी। वह कभी नाच न सकेगा, गीत न गा सकेगा। तुम उसे मारे डाल रहे हो। अब अगर बच्चा अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करे तो बगावती है। अगर स्वतंत्रता की घोषणा न करे, आज्ञा मान ले, तो जीवन का घात कर रहा है अपने। क्या करे ? और जो तुम बच्चे की हालत घर में कर देते हो वही शासन तुम्हारी हालत किए हुए है। कहीं कोई सुविधा नहीं है। कहीं कोई जगह नहीं है, जहां तुम खुल सको और मुक्त हो सको। तुम किसी का कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हो। तुम किसी की हानि नहीं कर रहे हो । मेरे कैंपों में मैंने लोगों को आज्ञा दी थी कि अगर उन्हें उचित लगे और वे आनंदपूर्ण समझें, तो वस्त्र निकाल दें। तो राजनीतिज्ञ बड़े बेचैन हो गए। विधान सभाओं में चर्चा हो गई। कानून सख्त हो गया । अब जब तुम नग्न हो रहे हो तो तुम किसी दूसरे को नग्न नहीं कर रहे हो। तुम खुद नग्न हो रहे हो। तुम्हारे शरीर को खुले सूरज के नीचे खड़े करने की तुम्हें स्वतंत्रता नहीं है! तुम किसी के भी तो जीवन में कोई बाधा नहीं डाल रहे । तुम किसी से यह भी नहीं कह रहे कि आओ और हमें देखो। अगर वे देखते हैं तो उनकी मर्जी । अगर वे नहीं देखना चाहते, वे अपनी आंख बचा कर जा सकते हैं। तुम्हारी कोई जबरदस्ती भी नहीं है। लेकिन राजनीति बहुत जरूरत से ज्यादा है। अब इस छोटी सी स्वतंत्रता में, जो कि व्यक्ति का निजी अधिकार है। अगर मुझे ठीक लगता है कि मैं नग्न चलूं तो किसी को भी अधिकार नहीं होना चाहिए कि मुझे रोके । हां, मैं किसी को दबाव डालूं कि तुम नग्न चलो, तब राज्य को बीच में आ जाना चाहिए कि भई गलत बात हो रही है; दूसरे पर दबाव मत डालो ! तुम्हारी मौज है, तुम्हें नग्न चलना है, तुम नग्न चलो। मेरी नग्नता से किसी दूसरे का क्या लेना-देना है ? तुम तो महावीर को भी नग्न न होने दोगे। महावीर अच्छा हुआ पहले हो गए; तब शासन थोड़ा सुस्त था । खुला आकाश था, स्वतंत्रता थी । लोगों ने महावीर की महिमा में कोई बाधा न डाली; कोई कानून बीच में न आया। बड़ी मुश्किल में पड़ते। आज बड़ी अड़चन हो जाती ।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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