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ताओ उपनिषद भाग ५
तुम अपनी सीमा के भीतर हो, जब तक तुम किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहे, जब तक तुम अपने भीतर अपने सुख में लीन हो, तब तक शासन को आलसी होना चाहिए।
लाओत्से कहता है, 'जब शासन आलसी और सुस्त होता है तब उसकी प्रजा निष्कलुष होती है।'
यह जरा हैरानी का है। क्योंकि तुम इससे उलटी बात के लिए तो राजी हो जाओगे कि जब प्रजा निष्कलुष होती है तब शासन सुस्त और आलसी होता है। यह तो तुम्हें समझ में आ जाएगा, गणित साफ है कि जब प्रज्ञा निष्कलुष है तो अपने आप शासन सुस्त होता है, कोई प्रयोजन नहीं होता शासन को बीच में आने का। लेकिन लाओत्से उससे उलटी बात कह रहा है। और उलटी बात भी उतनी ही सही है। यह बात वैसी ही है जैसे मुर्गी पहले या अंडा पहले; तय करना मुश्किल है। मुर्गी से अंडा पैदा होता है, अंडे से मुर्गी पैदा होती है। वे अन्योन्याश्रित हैं, इंटरडिपेंडेंट हैं।
लाओत्से कहता है, प्रजा को निष्कलुष करो और शासन को सुस्त। क्योंकि वे दोनों अन्योन्याश्रित हैं। प्रजा को निर्दोष बनाओ और शासन को अकर्मठ। क्योंकि वे दोनों मुर्गे-अंडे की तरह जुड़े हैं। जब प्रजा निर्दोष होती है तो शासन की कोई जरूरत नहीं होती। जब शासन जरूरत से पीछे हट जाता है, अपनी जरूरत नहीं बनाता, तब प्रजा अपने आप निर्दोष होने लगती है।
अब यहां यह भी समझ लेना जरूरी है कि शासन प्रजा को निर्दोष होने नहीं देगा। क्योंकि अगर शासन प्रजा को निर्दोष होने दे तो शासन की जरूरत कम होती है। इसलिए शासन की पूरी चेष्टा होती है कि प्रजा कभी भी निष्कलुष न हो जाए। इसलिए शासन नए कानून बनाता है ताकि नए कानून तोड़े जा सकें। और शासन करीब-करीब ऐसी स्थिति पैदा कर देता है कि तुम बिना कानून तोड़े जी नहीं सकते। जब तुम जी नहीं सकते तब शासन की जरूरत आ जाती है। तब शासन कहता है, हम कैसे शिथिल हो सकते हैं, क्योंकि लोग अनाचारी हैं।
और शासन इतने कानून बना देता है कि या तो अनाचार करें लोग या मर जाएं, आत्मघात कर लें। दो के बिना कोई उपाय नहीं रह जाता।
अब इतने कानून हैं, इतने कर हैं, इतना टैक्सेशन है कि अगर कोई आदमी ईमानदार हो तो जितना वह कमाए उससे ज्यादा उसे कर देना पड़े। तो वह कमाए किसलिए? वह जीए कैसे? अगर वह निर्दोष हो तो वह लुट जाए। और फिर भी कोई उसका भरोसा न करेगा।
अगर तुम इनकम टैक्स आफिसर के पास जाओगे, और तुमने दस हजार रुपए ही कमाए हैं और तुम पूरे ही बता दो कि मैंने दस हजार कमाए हैं, तो भी वह कहेगा, कम से कम पचास हजार कमाए होंगे। क्योंकि कौन सच बोलता है? तुम्हारा कोई भरोसा करने वाला नहीं है। इस समय सच्चा आदमी जितना झूठा मालूम होगा उतना कोई झूठा नहीं मालूम होता। क्योंकि कोई सच्चा है ही नहीं। तो तुम्हें भी दो हजार से शुरू करना पड़ता है। तुम दो हजार कहते हो, वह पांच हजार कहता है। ऐसा खींचतान करके कहीं तीन-चार हजार पर राजी हो जाते हो। तुम भी जानते हो, वह राजी नहीं होगा, अगर तुम सच बोल दो। वह भी जानता है कि तुम सच बोलोगे नहीं, इसलिए राजी हो जाना जल्दी आसान नहीं है। खींचतान चलेगी।
__ कानून अगर अतिशय हो तो लोगों को अपराधी बनाता है। क्योंकि इतना कानून कोई भी बरदाश्त नहीं कर सकता कि जीना मुश्किल हो जाए। कानून जीने में सहायता देने को है, जीने को मिटा देने को नहीं। इसलिए कम से कम कर होने चाहिए और कम से कम कानून होने चाहिए। न्यूनतम कानून से काम चलेगा तो कम से कम अपराधी होंगे। जब तक कि अपरिहार्य न हो जाए तब तक कानून मत बनाओ। यह अर्थ है लाओत्से का कि शासन सुस्त हो, आलसी हो। अति आवश्यक घड़ी में ही आए। अनावश्यक घड़ियों में बीच से हट जाए; लोगों को मुक्ति की श्वास दे। तो लोग निष्कलुष होंगे।
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