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ताओ उपनिषद भाग ५
गए, वे जहर इतना पी गए, जो मरने वाले थे, कमजोर, वे मर गए; और जो ताकतवर थे, वे बच गए, और अब जहर पीने में समर्थ हो गए। अब उनके खून में जहर है। अब तुम्हारा डी डी टी कुछ भी नहीं करता।
अभी सिर्फ दस साल पहले सारी दुनिया में डी डी टी का चमत्कार था। सारी दुनिया की सरकारें, भारत की अभी भी डी डी टी छिड़के जा रही है। लेकिन अमरीका और इंग्लैंड में भारी विरोध है इस समय। और अमरीका और इंग्लैंड में सख्ती से डी डी टी को रोका जा रहा है। क्योंकि डी डी टी बड़ा खतरनाक है। मच्छर में जहर जाता है, मच्छर तुम्हें काटता है, जहर तुममें चला गया। मच्छर फल पर बैठ जाता है, जहर फल में चला गया। और डी डी टी तुमने डाल दिया हवा में, वह पानी में गिरेगा, वर्षा में गिरेगा जमीन पर, वह इकट्ठा होता जा रहा है। और चारों तरफ तुम अपने हाथ से जहर इकट्ठा करते हो। तुम मच्छर मारने चले थे, मनुष्यता को मारने का इंतजाम हो जाता है। .
जिंदगी जुड़ी है। जिंदगी ऐसे है जैसे तुमने कभी मकड़ी का जाल छूकर देखा हो; मकड़ी के जाल को तुम एक तरफ छुओ, पूरा जाल कंपता है। ऐसा जीवन एक जाल है। और हिंदू तो बड़े पुराने समय से कह रहे हैं इसे कि यह मकड़ी का जाल है। उन्होंने तो परमात्मा को मकड़ी का प्रतीक दिया है। उन्होंने तो कहा है, जैसे मकड़ी अपने भीतर से अपने थूक को ही धागा बना कर निकालती है और जाल बुनती है, ऐसे ही परमात्मा अपने भीतर से सारी सृष्टि को बुनता है। फिर प्रलय में, जैसे मकड़ी को अगर यात्रा करनी हो, जाना हो छोड़ कर घर, तो तुम्हारे जैसा घर छोड़ कर या बेच कर जाने की जरूरत नहीं है। वह वापस अपने घर को लील जाती है, वह फिर उन धागों को पी जाती है। पीकर दूसरी जगह चली जाती है और वहां जाकर फिर धागे निकाल लेती है। वह उसका थूक है। ऐसे ही परमात्मा प्रलय के क्षण में फिर अपने सारे विस्तार को लील लेता है, विश्राम में चला जाता है। जब फिर नींद खुलती है, ब्रह्ममुहूर्त आता है, तब फिर अपने जाल को फैला लेता है।
___ संसार यही तो है। जो विराट संसार है यह मकड़ी के जाल जैसा है। अंग्रेज कवि टेनीसन ने कहा है, तुम हिलाओ एक फूल को और आकाश के तारे हिल जाते हैं। दूरी कितनी ही हो, लेकिन चूंकि जाल एक का है, और एक का ही जाल है, इसलिए जुड़ा है।
ज्ञान से हम सुधारने की कोशिश करते हैं, और हम बिगाड़ते चले जाते हैं। लाओत्से कहता है, जैसे-जैसे कोई निरंतर खोता है, व्यक्ति निष्क्रियता, अहस्तक्षेप को उपलब्ध होता है।
तब व्यक्ति धीरे-धीरे निष्क्रिय होता जाता है, वह कुछ भी नहीं करता। वह मेरे जैसा हो जाता है; कुछ भी नहीं करता, चुपचाप बैठा रहता है। खाली हो जाता है।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, आप कुछ करते क्यों नहीं? समाज में इतनी तकलीफ है, क्रांति की जरूरत है; समाज-सुधार चाहिए; विधवाओं की हालत देखिए, गरीबों की हालत देखिए, कोढ़ी हैं, उनकी हालत देखिए; कुछ करिए।
उन्हें पता ही नहीं कि करने वाले केवल उपद्रव करते हैं। और जब तक क्रांतिकारी हैं तब तक दुनिया में मुसीबत रहेगी। और जब तक समाज-सुधारक हैं तब तक समाज के सुधरने का कोई उपाय नहीं। यही तो उपद्रवी तत्व हैं। ये चीजों को ठीक बैठने नहीं देते, ये सुधारने में लगे हैं। सब सुधरा ही हुआ है।
इस फ्रेंच शब्द लैसे-फेअर का यही अर्थ है : जैसा है, बिलकुल ठीक है। तुम हस्तक्षेप मत करो। तुम अस्तित्व को और बेहतर न कर सकोगे। तुम हो कौन? तुम्हारी क्षमता क्या? तुम क्या सोचते हो कि तुम मूल स्रोत से ज्यादा ज्ञानी हो? क्या तुम सोचते हो, परमात्मा ने जो बनाया है, तुम उस पर सुधार आरोपित कर सकोगे? तुम इससे बेहतर दुनिया बना सकोगे? क्रांतिकारी की यही आकांक्षा है कि इससे बेहतर दुनिया हम बना कर रहेंगे। इससे बेहतर दुनिया बनाने में तुम इसे भी गंवा दोगे।
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दुनिया बना सकोगे? कलमात्मा ने जो बनाया है.
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