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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 218 हृदय बंद न हो जाए तब तक किसी को मरा हुआ नहीं माना जा सकता। और उस आदमी का हृदय अब भी चल रहा है— दूसरे आदमी के भीतर। इसलिए पहले तो यह प्रमाणित करना जरूरी है कि वह आदमी मर गया। अब ऐसी कोई घटना पहले कानून के इतिहास में घटी नहीं थी । यह बड़ी मुसीबत हो गई अदालत को कि करना क्या ! क्योंकि जब तक हृदय बंद न हो जाए तब तक आदमी मरा नहीं है। तो वकील का कहना यह था कि आप उसको दंड दे सकते हैं हमला करने का. लेकिन हत्या का नहीं। हमला करने का दंड तो साधारण है, हत्या का दंड भयंकर है। संयोग की बात थी, इसलिए निबटारा हो गया। लेकिन अब कानूनविद बड़ी चिंता में पड़े हैं। क्योंकि यह तो रोज मामला बढ़ेगा। संयोग की बात थी कि जिसको हृदय का आरोपण किया था वह मर गया । इसलिए कानून का मामला सुलझ गया कि ठीक है, अब हृदय भी बंद हो गया, वह आदमी मर गया पूरा। इसको अब हम फांसी की सजा दे सकते हैं, अपराधी को । लेकिन अगर वह न मरता ? जैसे-जैसे तकनीकी कौशल बढ़ता है वैसे-वैसे लोग सब तरफ से चालाक भी होते जाते हैं। विज्ञान चालाकी है, कनिंगनेस है। वह प्रकृति के छिपे हुए रहस्यों को जबरदस्ती उघाड़ना है । प्रकृति देना भी नहीं चाहती तो भी ले लेना है। वह बलात्कार है। और उस बलात्कार की जितनी ज्यादा व्यवस्था हो जाती है उतना आदमी फिर सब तरफ से चालाक हो जाता है। फिर आदमी से भी क्या फर्क है ? आदमी को भी धोखा देने में क्या अड़चन हैं? निकालना ही ज्यादा है तो आदमी से भी ज्यादा निकाला जा सकता है। 'जितने ही अधिक कानून होते हैं, उतने ही अधिक चोर और लुटेरे होते हैं।' कानून से चोर लुटेरे मिटते नहीं, कानून से ही बनते हैं। अगर तुम चाहते हो कि दुनिया में कम चोर लुटेरे हों तो कम से कम, न्यूनतम कानून चाहिए। जितने कम कानून होंगे उतने कम चोर लुटेरे होंगे। क्योंकि कानून परिभाषा देता है— कौन चोर है, कौन लुटेरा है। कानून पर निर्भर करता है चोर लुटेरा । जैसे मैंने अभी तस्करों की बात की। अगर दुनिया में कोई कानून न हो कि एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान को ले जाने में कोई बाधा नहीं है, कोई पहरेदार नहीं खड़ा है, तस्कर विदा हो जाएगा। तस्कर की कोई जरूरत न रही। अगर दुनिया में संपत्ति समान रूप से, विभाजित हो या संपत्ति न हो, चोर विदा हो जाएंगे। चोर की कोई जरूरत न रही। लेकिन बड़ी कठिनाई है; चोर विदा नहीं किए जा सकते। क्योंकि अगर चोर विदा हो जाए तो न्यायाधीश कहां रहेगा? वह उसका दूसरा पहलू है। अगर तस्कर विदा हो जाए तो तस्कर को पकड़ने वाले लोग कहां जाएंगे ? अगर चोर-लुटेरे चले जाएं तो वकीलों का क्या होगा ? न्यायाधीशों का क्या होगा ? मजिस्ट्रेटों का क्या होगा ? कानूनविद्, जिनको तुम पद्म विभूषण की उपाधियां देते हो, इनका क्या होगा ? ये सब एक ही धंधे के साझेदार हैं। चोर और न्यायाधीश एक ही धंधे के हिस्से हैं। उनका संबंध वैसे ही है जैसा ग्राहक का और दुकानदार का। उनमें से एक गा कि दूसरा नहीं बचेगा। पुलिस का क्या होगा अगर लोग चोर न हों ? सच तो यह है कि अगर लोग बुरे न हों तो नेता का क्या होगा ? राष्ट्रपति को किसलिए सिर पर बिठा कर रखोगे ? प्रधानमंत्रियों की क्या जरूरत है? क्योंकि लोग बुरे उनको सुधारने की उनको जरूरत है। तुम्हें लगता है ऊपर से, वे सुधारने में लगे हैं। वे सुधार नहीं सकते, क्योंकि यह उनका आत्मघात है। वे खुद मरेंगे, अगर लोग सुधर गए। कोई राजनीतिज्ञ नहीं चाहता कि लोग सुधर जाएं। कहता कितना ही हो, चाह नहीं सकता। क्योंकि चाहने का तो मतलब होगा कि मैं मरा, मैं गया। कानून चोरों को बना रहा है। और फिर तुम और कानून बनाते हो, क्योंकि चोरों को रोकना है। तब और चोर बनते हैं। तब तुम और कानून बनाते हो। कानून बढ़ते जाते हैं, चोर बढ़ते जाते हैं । अदालत बड़ी होती जाती है। कारागृह बड़े होते जाते हैं। चोर लुटेरे बढ़ते चले जाते हैं। एक बड़ा जाल है। फिर वकील चाहिए। फिर विशेषज्ञ चाहिए।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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