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________________ आदर्श रोग , सामान्य व स्वयं ठोबा स्वास्थ्य शराब-बंदी का। मोरारजी भाई सोचते हों कि वे शराब-बंदी के पीछे पड़े हैं तो उन लोगों के साथ शराब-बंदी वाले लोग खड़े हैं; वे गलती में हैं। उनसे लाभ तो होने वाला है उन्हीं का जो शराब बेचते हैं। क्योंकि शराब बढ़ जाती है एकदम से, जैसे ही निषेध हो जाता है। जिस फिल्म पर लिख दिया गया कि यह सिर्फ, केवल वयस्कों के लिए है, ओनली फॉर एडल्ट्स, उसको छोटे-छोटे बच्चे भी देखने पहुंच जाते हैं। वह ज्यादा चलती है। उसमें वयस्क तो पहुंचते ही हैं, जो वैसे न गए होते, कि कुछ मामला है, उसमें छोटे-छोटे बच्चे भी पहुंच जाते हैं। जितने होंगे निषेध उतना ही लोगों का आकर्षण बढ़ता है और गलत दिशाओं में यात्रा शुरू हो जाती है। गलत को इतना महत्वपूर्ण मत बनाओ। निषेध महत्व दे देता है। गलत की उपेक्षा करो; इतना आकर्षक मत बनाओ। गलत की बात ही मत उठाओ। बच्चे से भूल कर मत कहो कि झूठ बोलना मना है, झूठ मत बोलना। क्योंकि इससे बच्चे को रस आता है। और बच्चे को लगता है, झूठ में जरूर कोई मजा है। है तो मजा, क्योंकि दूसरे को धोखा देने में अहंकार की एक तृप्ति है। और बच्चा ऐसे कमजोर है; जब उसे पता चल जाता है कि झूठ बोल कर भी हम हरा सकते हैं लोगों को तो वह झूठ बोलने लगता है। फिर वह कुशल होने लगता है धीरे-धीरे। फिर झूठ एक कला बन जाती है। वह इस तरकीब से बोलता है कि तुम पहचान ही न पाओ। छोटे-छोटे बच्चे बड़े कुशल कारीगर हो जाते हैं। उन्होंने अभी कोई शैतानी की; और तुम पहुंच जाओ, देखोगे कि बिलकुल ऐसे शांत बैठे हैं। तुम उनसे कहो, तो वे कहेंगेः क्या? जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं है। किसने किया? यह वे एक खेल खेल रहे हैं। वे यह दिखा रहे हैं कि तुम बड़े समझदार होओगे, ऊंचाई तुम्हारी छह फीट होगी, होगी! लेकिन हम भी तुम्हें मात दे सकते हैं। बच्चे से भूल कर मत कहना कि झूठ बोलना मना है। क्योंकि जो मना है वह किया जाएगा। और बच्चे ही हैं सब तरफ। उनकी उम्र ज्यादा हो जाए, इससे क्या फर्क पड़ता है? कोई पांच साल का बच्चा है, कोई पचास साल का बच्चा है। बस बच्चे ही हैं सब तरफ। और इसलिए लाओत्से कहता है, कैसे मैंने जाना यह? मैंने जाना यह देख कर कि जितने अधिक निषेध, उतने लोग दरिद्र। जितने तेज शस्त्र, उतनी अराजकता। जितना राज्य कोशिश करता है दबाने की, उतने ही लोग दबंग होते जाते हैं, दबते नहीं। पच्चीस सालों से भारत में हम कोशिश कर रहे हैं लोगों को दबाने की, वे और दबंग होते जाते हैं। जितनी तुम व्यवस्था जमाते हो, पुलिस के हाथ में बम हैं, बंदूक हैं; क्या फर्क पड़ता है? तुम रोज लोगों को मार रहे हो; इससे कुछ हल नहीं होता। लोगों का उपद्रव बढ़ता जाता है। लोगों का उपद्रव दबाने से नहीं दबता। उपद्रव को समझो; उपद्रव के पीछे के कारण को समझो। कारण को बदलो। दबाने से कुछ भी न होगा। कारण को कोई बदलने की नहीं सोचता। लोग सोचते हैं कि बस दबाने में। हर सत्ता यही सोचती है कि शक्ति काफी है। लोग भूखे हैं; शक्ति से कोई पेट भरता है? कि तलवार से कोई पेट भरता है? लोग अगर भूखे हैं तो रोटी का इंतजाम करो। दबाने से न होगा। और भूखे आदमी को जब तुम दबाते हो तो एक ऐसी घड़ी आ जाती है जब वह देखता है कि भूख तो मिटती ही नहीं, जीवन में कोई सार है नहीं, कुछ खोने को बचता नहीं, वह पागल हो जाता है। फिर तुम उसे नहीं दबा सकते। और व्यवस्था चलती है सिर्फ धारणा से। नहीं तो क्या कीमत है पुलिसवाले की? अब इस गांव में दस लाख लोग हैं। दस लाख आदमियों को कंट्रोल में अगर रखना हो तो कितने पुलिसवाले चाहिए? कम से कम दस लाख तो चाहिए ही। लेकिन दस पुलिसवालों से काम चलता है। क्योंकि मान्यता है। पुलिसवाले को देख कर लोग रुक जाते हैं। 215
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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