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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ लाओत्से कहता है, संसार को बिना कुछ किए जीतो, प्रेम से जीतो। 'मैं कैसे जानता हूं कि ऐसा है? इसके द्वारा।' और तब वह कहता है, ये मेरे अनुभव हैं। 'जितने अधिक निषेध होते हैं, लोग उतने ही अधिक गरीब होते हैं।' निषेध का बड़ा आकर्षण है। जिन मुल्कों में कानून बन जाता है कि शराब बंद, प्रोहिबीशन लागू, उन मुल्कों में लोग दुगुनी शराब पीने लगते हैं। यह सारी दुनिया जानती है। फिर भी मूढ़ता का कोई अंत नहीं है। फिर भी पागल लोग पीछे पड़े हैं कि शराब बंद करो। सारी दुनिया का अनुभव यह है कि जिस मुल्क में शराब बंद होती है उस मुल्क में लोग दुगुनी-तिगुनी शराब पीने लगते हैं। चोरी से शराब बनने लगती है। चोरों के लिए रास्ता खुल जाता है। सब निषेध चोरी को बढ़ाते हैं। और सब निषेध लोगों को गरीब करते हैं। क्योंकि जितना तुम कहते हो कि मत करो! उतना लोगों के अहंकार को चोट लगती है; वे करने को तत्पर हो जाते हैं। वे यह भी भूल जाते हैं कि क्या जरूरी था, क्या गैर-जरूरी था। ऐसे ही जैसे इस दरवाजे पर हम एक तख्ती लगा दें कि भीतर झांकना मना है। फिर तुम बिना झांके निकल सकोगे? तख्ती पढ़ना न आता हो तो बात और, लेकिन तख्ती लगी है कि झांकना मना है तो तुम बिना झांके नहीं निकल सकते। क्योंकि तख्ती खबर देती है कि कुछ झांकने योग्य भीतर होना ही चाहिए। कोई सुंदरी बैठी हो। कुछ न कुछ मामला है, नहीं तो तख्ती क्यों है? तुम झांकोगे। अगर दुर्जन हुए तो वहीं अड़ कर खड़े हो जाओगे। अगर सज्जन हुए तो जरा चोरी-छिपे से झांकोगे। चलोगे इधर को, देखोगे उधर को। अगर बहुत ही सज्जन हुए, कमजोर, बिलकुल लचर, तो रात को लौटोगे जब भीड़-भाड़ न रहे, कोई न रहे, तब झांक कर देखोगे। अगर बिलकुल ही कमजोर रहे, बिलकुल नपुंसक, सपने में झांकोगे, मगर झांकोगे। बिलकुल असंभव है। तुमने देखा, दीवारों पर जहां लगा रहता है कि यहां पेशाब करना मना है, वहां पहुंचते ही से पेशाब लग आती है। पढ़ा नहीं कि बस एकदम खयाल...अभी तक खयाल भी नहीं था। तो जिस दीवार पर लिखा हो वहां तुम देख लो, हजार निशान पेशाब के बने होंगे। सामान्य आदमी है। अगर दीवार बचानी हो तो भूल कर लिखना मत। अगर बिलकुल ही बचानी हो तो लिखना कि यहां करना सख्त अनिवार्य है। अगर यहां पेशाब न की तो पकड़े जाओगे, मारे जाओगे। फिर तुम देखना, जिसको लगी भी है वह भी सम्हाल कर निकल जाएगा कि यह क्या मामला है। कोई परतंत्र हैं! कोई हम किसी के गुलाम हैं कि तुम हमको आज्ञा दो कि कहां हम करें और कहां हम न करें! निषेध लोगों को दीन और दरिद्र बना रहा है। क्योंकि निषेध के कारण लोग व्यर्थ चीजों की तरफ आकर्षित होते हैं। शराब बंद है तो लोग शराब की तरफ आकर्षित होते हैं। खाना छोड़ देंगे, लेकिन शराब पीएंगे। क्योंकि जब बंद है तो जरूर कोई मामला होगा। शराब में कुछ न कुछ होगा रहस्य। मिलता होगा कोई न कोई आनंद। कोई न कोई हर्षोन्माद आता होगा। नहीं तो क्यों इतने लोग पीछे पड़े हैं? कानून इतने पीछे क्यों पड़ा है? सरकारें इतने पीछे क्यों पड़ी हैं? नेतागण इतने पीछे क्यों पड़े हैं? और लोग जानते हैं कि नेतागण खुद पी रहे हैं; दूसरों को रोक रहे हैं। जरूर कुछ रहस्य है। जरूर कोई बात है। और एक दफा आदमी पड़ जाए जाल में तो उस जाल के बाहर आना मुश्किल होता जाता है। अगर दुनिया को कम शराबी बनाना हो, शराब को खुला छोड़ दो। तुम्हारे रोकने से कोई रुकता नहीं, तुम्हारे रोकने से सिर्फ और गलत शराब पीयी जाती है। कोई स्पिरिट पी लेता है, कोई पेंट पी जाता है। सैकड़ों लोग मर जाते हैं। अगर शराब खुली हो तो कम से कम कोई स्पिरिट तो न पीएगा, पेट्रोल तो न पीएगा। अगर शराब खुली हो तो कम से कम ठीक शराब तो पीएगा। बंद होते ही से अंधेरे में चला जाता है सब काम। और अंधेरे के व्यवसायी हैं, वे तत्क्षण हाथ में ले लेते हैं। अगर तुम ठीक से समझो तो जो लोग शराब बेचते हैं, उनके पक्ष में है कि कानून हो 214
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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