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ताओ उपनिषद भाग ५
रहता है तो भ्रष्टाचारी है। वह साइकिल पर चलना चाहिए तो तुम्हें ठीक लगता है। साइकिल पर ही चलना था तो यहां कौन सी दिक्कत थी? वहां अगर वह बड़ी कार में चलता है तो मुसीबत। वह जाता इसीलिए है।
जीवन को सामान्य की तरह सोचो। तब तुम्हें तुम्हारे राजनेता इतने भ्रष्टाचारी न दिखेंगे जितने दिखाई पड़ते हैं। और तब तुम्हें मुल्क भी इतना भ्रष्टाचारी नहीं मालूम पड़ेगा जितना मालूम पड़ता है। इतना है भी नहीं। क्योंकि इतना भ्रष्टाचारी हो तो कोई समाज टिक ही नहीं सकता; वह नष्ट ही जो जाए। सम्हल ही नहीं सकता।
लेकिन भ्रष्टाचार तुम बड़ा करके देखते हो; क्योंकि तुम्हारे आदर्श बड़े असामान्य हैं। झूठे तुम्हारे आदर्श हैं, उनके आधार पर तुम नियम बनाते हो। और वही आदर्श तुम्हारा नेता भी मानता है। उसी के आधार से वह तुमको कहता है कि जनता भ्रष्ट है। और जनता कहती है, नेता भ्रष्ट है।
सामान्य को देखो। मनुष्य की सामान्य आकांक्षा पर दया करो। सामान्य को समझने की कोशिश करो। उससे ही असामान्य को पैदा करना है। असामान्य को ऊपर से नहीं थोपना है।
कहता है लाओत्से, 'राज्य का शासन सामान्य के द्वारा करो। रूल ए किंगडम बाइ दि नार्मल।'
तब जीवन व्यवस्थित हो पाता है। क्या है नार्मल? आदमी को समझो, आदर्शों को मत। वहीं से सूत्र खोजो। । सामान्य आदमी क्या चाहता है? चाहता है : छप्पर हो, रोटी हो, कपड़ा हो, प्रेम हो जीवन में, सुरक्षा हो। यह सामान्य आदमी की आकांक्षा है। न तो सामान्य आदमी चाहता है कि कोई परमात्मा मिल जाए आज, न कोई मोक्ष, न कोई ब्रह्मचर्य। तुम जो सामान्य आदमी चाहता है उसको देख कर व्यवस्था दो। उसी व्यवस्था में जब वह शांत होने लगेगा तभी उस शांति की समृद्धि से ये नई अभीप्साएं पैदा होंगी।
छोटे-छोटे बच्चों को हम ब्रह्मचर्य का पाठ सिखा रहे हैं। छोटे बच्चों को पहले कामवासना का पाठ सिखाओ, ताकि वे कामवासना में गलत न चले जाएं। अभी ब्रह्मचर्य का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन स्कूलों में लिखा है कि ब्रह्मचर्य परम धर्म है। छोटे-छोटे प्राइमरी स्कूलों में मैंने तख्तियां लगी देखी हैं कि ब्रह्मचर्य ही जीवन है। यह प्राइमरी के बच्चे को, ब्रह्मचर्य ही जीवन है, इससे क्या मतलब है? यहां कोई बूढ़े पढ़ने आते हैं? अभी इस बच्चे को पता ही नहीं कि ब्रह्मचर्य क्या है। अभी तुम इसे क्षमा करो। अभी तुम इसे समझाओ कि जीवन में कामवासना आएगी, उसे कैसे सम्यकरूपेण जीया जाए, कैसे तू कामवासना में ठीक-ठीक कुशलता से प्रवेश करे, ताकि तू भटके न। अगर कोई व्यक्ति कामवासना में ठीक से प्रवेश कर गया तो दूसरा कदम ब्रह्मचर्य का स्वाभाविक है। बिना कामवासना में गए हुए बच्चे को अगर तुमने ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ा दिया तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।
मेरे पास लोग आते हैं, युवक, वे कहते हैं कि विवाह करें या नहीं, क्योंकि है तो ब्रह्मचर्य ऊंची बात। युवकों के मन में भी विवाह की निंदा हो जाती है। है तो ब्रह्मचर्य ऊंची बात। मैं उनसे पूछता हूं, ब्रह्मचर्य की तुम बात ही मत करो, तुम अपने हृदय की कहो। कहते हैं, हृदय तो वासना से भरा है। लेकिन आप कोई तरकीब बताएं लड़ने की, ताकि वासना को काट कर अलग कर दें।
वासना को कभी किसी ने काट कर अलग किया है? और अगर वासना को ही काट दिया तो फिर ब्रह्मचर्य कैसे लाओगे? जो पैर वेश्याघर की तरफ जाते हैं उनको तुमने काट दिया तो वे ही पैर तो मंदिर की तरफ भी ले जाते थे। पैर तो वही हैं, चाहे वेश्याघर जाओ, चाहे मंदिर जाओ। दिशा बदलनी है; पैर थोड़े ही काट देने हैं।
ऊर्जा तो वही है, शक्ति तो वही है; चाहे व्यर्थता में खोओ, चाहे सार्थकता में उठाओ; चाहे अधोगामी बनाओ और चले जाओ नरक में और चाहे ऊर्ध्वगमन करो और पहुंच जाओ परम उत्कृष्ट जीवन की अवस्था में, ब्रह्मचर्य को। काटना थोड़े ही है; जानना है, पहचानना है, ठीक से जमाना है; सीढ़ियां बनानी हैं पत्थरों की। होशियार कारीगर तिरस्कृत पत्थर को भी उपयोग में ले आता है, नासमझ उस बहुमूल्य पत्थर को भी फेंक देता है जिसमें कोई महान
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