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________________ आदर्श गोग, सामान्य व स्वयं ठोबा स्वास्थ्य है, और कोई मुक्ति नहीं। आज जब तुम्हारी समझ के प्रकाश से प्रकाशित होगा और बदलेगा, उसी से तो कल का जन्म होगा। आज अगर तुम कम क्रोध किए-होशपूर्वक-तो कल और कम होगा, परसों और कम होगा, एक दिन अक्रोध की दशा आ जाएगी। उस दिन अहिंसा का फूल खिलेगा। वह आदर्श की तरह नहीं, वह जीवन के यथार्थ से गुजर कर मिलता है। . लाओत्से कहता है, सामान्य को सूत्र बना लो। तुम जैसे हो उसे देखो। और राज्य को कहता है कि राज्य भी मनुष्य के सामान्य को नियम बनाए, असामान्य को आदर्श न बनाए। अब हम क्या कर रहे हैं? हम चाहते हैं कि हमारे मंत्री, प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति झोपड़े में रहें। तब तुम आदमी की सामान्य स्थिति को नहीं समझ रहे। जिसको झोपड़े में रहना है वह पागल है जो प्रधान मंत्री बनने जाए। जब झोपड़े में ही रहना है तो तुम्हारे पैर दबा-दबा कर वोट पाने की जरूरत क्या है? झोपड़े में रहने के लिए तुम से कोई आज्ञा नहीं लेनी। सामान्य आदमी की सामान्य मनोदशा है। वह महल में रहने के लिए तो जा रहा है, तुम्हारे पैर दबा रहा है, तुम्हारे सामने हाथ जोड़े खड़ा है। तुम, जिनसे कुछ लेना-देना नहीं है, तुम्हारे सामने झुक रहा है, जी-हुजूरी कर रहा है। तुम अकड़े खड़े हो और वह तुम्हें फुसला रहा है। मुल्ला नसरुद्दीन चुनाव में खड़ा हुआ। तो गांव भर में उसने चक्कर लगाया जांच-पड़ताल के लिए-कौन अपने पक्ष में है, कौन विपक्ष में है। तो वोटर-लिस्ट लेकर निशान लगाता गया। जिसने कहा पक्ष में उस पर लगा दिया पक्ष, जिसने कहा विपक्ष में उस पर लगा दिया विपक्ष। एक महिला के द्वार पर गया, वह अपने बगीचे में काम कर रही है। उसने वहीं से कहा कि बाहर रहो, भीतर मत आओ! तो भी मुस्कुराया, फाटक खोल कर कहा कि और किसी कारण से नहीं आया हूं, सिर्फ यह पूछने आया हूं कि चुनाव में खड़ा हो रहा हूं मेयर के, तो आपका मत तो मुझे मिलेगा? वह स्त्री आगबबूला हो गई। उसने कहा, लावारिस! आवारा! तुम्हें मत? और मेयर बनना है? तुम सड़क पर भीख मांगने के योग्य भी नहीं। तुम्हें तो असल में गांव के बाहर निकाला जाना चाहिए। हटो बाहर! वह झाडू से जिससे साफ कर रही थी, झाडू उसने उठा ली। नसरुद्दीन पीछे हटता जा रहा है, मुस्कुराता जा रहा है, और कह रहा है कि नहीं, कोई बात नहीं, सोच लेना, अभी कोई जल्दी भी नहीं है। उस स्त्री ने कहा, सोचने का सवाल ही नहीं। तुम निकलते हो कि मैं झाडू चलाऊं? तो वह बाहर आ गया। बाहर से उसने फिर नमस्कार किया, अपनी डायरी देखी, और उसने डायरी पर लिखाः डाउटफुल, संदिग्ध। विपक्ष में है, उसको भी विपक्ष में राजनीतिज्ञ नहीं मानता। तुम्हारे हाथ-पैर जोड़ रहा है। - फिर मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन बूढ़ा हो गया और उसका बेटा एक दफा चुनाव में खड़ा हुआ, तो यही गुजरी बेटे पर। उसने बाप से आकर कहा कि यह तो बड़ा कठिन काम है, लोग बड़ा अपमान करते हैं। नसरुद्दीन ने कहा, अपमान? कितने चुनाव मैं लड़ा, ऐसी भी नौबत आ गई कि पीटा गया, फेंका गया, घरों से धक्के देकर निकाला गया, लोगों ने जूते मारे, केले के छिलके फेंके, सड़े टमाटर मारे। लेकिन अपमान? अपमान कभी किसी ने नहीं किया। सब तरह झुकता है, और तुम चाहते हो झोपड़े में रहने के लिए! तो झोपड़े में रहने के लिए यहीं कौन सी तकलीफ थी? और जब वह जाकर महल में रहता है, तुम कहते हो भ्रष्टाचारी। तुम अजीब हो। सीधी-सीधी बात है। आदमी का सामान्य मन है। तुम जैसा ही आदमी है। उसी आकांक्षा से बेचारा दिल्ली की यात्रा किया है। जूते खाता है, सड़े टमाटर खाता है, छिलके फेंके जाते हैं, गाली-गलौज झेलता है। जगह-जगह काले झंडे, और लोग मुर्दाबाद कर रहे हैं; वह सब झेल कर जाता है-झोपड़े में रहने के लिए? तो जाएगा ही काहे के लिए? इतनी सीधी सी बात है। वह जाता इसीलिए है कि महल में रह सके थोड़ी देर। यह आदमी का सामान्य मन है। फिर जब वह महल में 211
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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