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ताओ उपनिषद भाग ५
अगर चोरी को तुम समझने की कोशिश करो कि चोरी इसलिए है कोई पाप नहीं है चोरी-चोरी इसलिए है, क्योंकि किन्हीं के पास बहुत है और किन्हीं के पास ना-कुछ है। यह फासला इतना ज्यादा है कि इस फासले में चोरी होगी, तुम कितना ही रोको। तुम जितना रोकोगे, चोर नए उपाय खोजेगा। तो असली सवाल फासले को कम करने का है। चोर को मिटाने का और कोई उपाय नहीं है। फासला अस्वाभाविक है।
इसे हम उदाहरण से समझें। स्मगलर या तस्करी नया शब्द है। आज से पचास साल पहले कोई भी नहीं जानता था, स्मगलर कौन है? तस्कर कौन है? लेकिन अभी तस्कर सबसे बड़ा पापी है, सबसे बड़ा चोर है। तस्करी क्या है? चीन में एक दाम है सोने का, भारत में दूसरा दाम है, पाकिस्तान में तीसरा दाम है। सोने का दाम एक होने की कोशिश करता है, जैसे पानी एक होने की कोशिश करता है। सोना एक ही दाम का हो सकता है, अगर दुनिया में कोई व्यर्थ की दीवारें न हों; राज्य बंटे न हों तो सोने का एक ही दाम होगा। क्योंकि जहां खड्डा होगा वहां सोना भागेगा, जैसे पानी भागता है खड्डे की तरफ। अगर इस मुल्क में सोने का दाम ज्यादा है और पाकिस्तान में कम है तो पाकिस्तान से सोना भारत की तरफ दौड़ेगा। यहां खड्डा है। जैसे ही खड्डा भर जाएगा, दाम बराबर हो जाएगा; सोने की दौड़ बंद हो जाएगी। तस्कर कौन है?
तस्कर कानून के खिलाफ है, सोने के पक्ष में है। वह सोने को सहायता दे रहा है, इधर से उधर ला रहा है। वह स्वभाव को सम्हालने की कोशिश कर रहा है। कानून स्वभाव के विपरीत खड़ा है। पूरी राज्य की सत्ता खड़ी है कि नहीं, सोने का जो दाम हमारे मुल्क में है हम उसको जारी रखेंगे। दूसरे मुल्क में अगर कम है तो वह उनकी बात, लेकिन हम अपने मुल्क का दाम न गिरने देंगे। तस्कर बेचारा कुछ भी नहीं कर रहा है, तस्कर इतना ही कर रहा है कि वह जीवन की जो सामान्य व्यवस्था है उसमें सहायता पहुंचा रहा है। लेकिन वह पापी है। होना यह चाहिए, अगर तस्करी मिटानी है, तो दुनिया में लैसे-फेअर की व्यवस्था होनी चाहिए। तो ही तस्करी मिटेगी। बाजार खुले होने चाहिए, नहीं तो तस्करी जारी रहेगी।
हिंदुस्तान में तो तस्करी मुल्क के भीतर भी चलती है। अगर बंबई से दिल्ली जाओ तो कम से कम बीस दफा. कार खोल कर देखी जाएगी, जांच-पड़ताल की जाएगी। क्या पागलपन है। अपने ही मुल्क में चलने में स्वतंत्रता नहीं है। क्योंकि यहां भी प्रांत-प्रांत नियम की दीवार खड़ी है। गेहं कहीं सस्ता बिक रहा है, कहीं मंहगा बिक रहा है। कहीं चावल को खरीदने वाला कोई नहीं है, कहीं लोग कतार लगाए खड़े हैं। चावल भागता है। वह नियम की व्यवस्था है, सीधी जीवन की व्यवस्था है। लोग चावल को लाने लगते हैं वहां जहां कतार लगी है। और ठीक ही कर रहे हैं, क्योंकि कतार को हटाने का यही एक उपाय है।
लेकिन सरकार नियम बना कर खड़ी है। जितने नियम होंगे उतनी चोरी होगी। चोरी का कुल मतलब इतना है कि तुमने जरूरत से ज्यादा, स्वभाव के विपरीत नियम बना दिए। नियम को कम करो, चोरी कम हो जाएगी।
भ्रष्टाचार है मुल्क में। तो जयप्रकाश कहते हैं, नियम को बढ़ाओ तो भ्रष्टाचार कम हो जाएगा; सख्ती करो तो भ्रष्टाचार कम हो जाएगा।
भ्रष्टाचार और बढ़ेगा। जयप्रकाश गांधी की संतान हैं। गांधी ने जो उपद्रव मुल्क को दिया उसको वे फिर थोपना चाहते हैं। जरूरत इस बात की है कि नियम को कम करो, छांटो। यह तो पक्का है कि बिलकुल बिना नियम के हम समाज नहीं बना सकते; आदमी की अभी इतनी ऊंचाई नहीं। लेकिन लक्ष्य वही है कि कभी ऐसा वक्त आए कि कोई नियम न हो, ताकि कोई चोर न हो, ताकि कोई नियम का उल्लंघन करने वाला न हो।
पहले तुम नियम बनाते हो, फिर तुम चोर को पकड़ लेते हो। समझ लो कि एक कानून बना दिया जाए, अगर योगियों के हाथ में सत्ता आ जाए जैसे गांधीवादियों के हाथ में आ गई तो योगी नियम बना दें कि सुबह उठते वक्त
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