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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ अंतस को खिलने दो। अड़चनें तो हैं ही। पर तुम्हारी अड़चनें कोई दूसरा थोड़े ही चलेगा; तुम्हीं को चलना होगा। सपना देखना एक बात है। महावीर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध होते हैं, तो कामवासना की अड़चनें महावीर ने झेली हैं। ऐसे ही मुफ्त कोई ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं होता। तुम बिना यात्रा किए घर बैठे महावीर का ब्रह्मचर्य पाना चाहते हो। तो महावीर की यात्रा कौन करेगा? तुम फूल तो चाहते हो; बीज बोने की, वृक्ष को सम्हालने की कठिनाई को नहीं झेलना चाहते। तब तुम्हारे फूल प्लास्टिक के होंगे। सभी आदर्श प्लास्टिक के हैं, कागजी हैं, असली नहीं हैं। असली तो सदा स्वभाव से आता है। असली तो सदा सामान्य से आता है। नकली सदा आदर्श से आता है, जो कि झूठा है, जो कि दूर आकाश में तुमने अपनी कामनाओं के आधार पर बनाया है। अब यह भी समझ लेना जरूरी है : आवश्यक नहीं है कि तुम जैसा महावीर को कहते हो वैसे वे रहे हों। न यह आवश्यक है कि तुमने राम की जो प्रतिमा गढ़ी है वैसी राम की रही हो। तब जाल और गहरा है। पहले तो तुम राम के जीवन में आदर्श को थोप देते हो-जो कि रहा हो, न रहा हो। पहले तो तुम महावीर के आस-पास प्रकाश की कल्पना कर लेते हो-जो कि रहा हो, न रहा हो। फिर तुम उसको आदर्श बना कर उसका अनुसरण करते हो। और जब तुम उसका अनुसरण करने लगते हो तो पहले तुमने ही तो आरोपित किया। तुम्हें क्या पता कि महावीर कैसे व्यक्ति हैं? तुम शास्त्रों से पढ़ते हो। शास्त्र प्रशंसक लिखते हैं, प्रशंसक अतिशयोक्ति करते हैं, प्रशंसक भावावेश में होते हैं। जो नहीं होता वह भी उन्हें दिखाई पड़ता है। प्रशंसक और निंदक, दो का भरोसा कभी मत करना। दोनों ही अंधे होते हैं। और दो के अलावा तीसरा आदमी तो खोजना मुश्किल है। और तीसरा आदमी अगर होगा तो वह कोई महावीर का चरित्र लिखने जाएगा? वह अपना चरित्र निर्मित करेगा। क्योंकि तीसरा आदमी जो इतना तटस्थ होगा कि न प्रशंसा न निंदा, वह किसकी फिक्र करेगा? अपने जीवन को वह क्यों गंवाएगा किसी दूसरे के जीवन को लिखने में? वह अपने को ही लिखेगा। उसकी कथा उसकी भीतरी कथा होगी। निंदक को अगर सुनो तो जीसस सूली पर लटकाने जैसे योग्य हैं; प्रशंसक को सुनो तो वे ईश्वर के पुत्र हैं। . दोनों अतिशय कर रहे हैं। और दोनों अतिशय को खींचे चले जा रहे हैं। निंदक और प्रशंसक में होड़ लगी है। और दोनों खींच रहे हैं अति की ओर। जिन्होंने जीसस को सूली दी उन्होंने दो चोरों को भी साथ में सूली दी, सिर्फ यह बताने को कि हम चोरों से ज्यादा हैसियत नहीं मानते जीसस की। और प्रतिवर्ष एक व्यक्ति को माफ करने का अधिकार था गवर्नर जनरल को, क्योंकि यहूदियों का मुल्क इजरायल रोमन साम्राज्य के अंतर्गत था। तो जो रोमन वाइसराय था उसको हक था प्रतिवर्ष एक व्यक्ति को मुक्त करने का। चार व्यक्तियों को फांसी दी जानी थी इस वर्ष, एक जीसस और तीन चोर। तो उसने पूछा लोगों से कि इन चार में से तुम किसकी मुक्ति चाहते हो? तो उन्होंने एक चोर चुना जिसकी मुक्ति मांगी, जीसस की मुक्ति नहीं।। वाइसराय थोड़ा जीसस के प्रति सदय था, क्योंकि वाइसराय को यहूदियों की निंदा से कुछ लेना-देना न था। वह ज्यादा निष्पक्ष आदमी था, बाहर का आदमी था। उसका मन था कि किसी तरह जीसस छूट जाए। यह सीधा-सरल आदमी मालूम पड़ता है; नाहक फंस गया है। इसके प्रशंसक इसको परमात्मा का बेटा कह रहे हैं; वैसा भी यह नहीं है। इसके दुश्मन इसको कह रहे हैं कि यह महापापी है, इससे देश का विनाश हो जाएगा; वैसा भी नहीं है। सीधा-सादा आदमी है, सरल चित्त का आदमी है; कुछ कीमती बातें कहता है। कुछ किसी का उपद्रव भी नहीं कर रहा है। उसके भीतर आकांक्षा थी, यह छूट जाए। उसने तीन बार, बार-बार पूछा कि तुम फिर से सोच लो कि तुम उस चोर को छोड़ना चाहते हो या जीसस को? तीनों बार भीड़ ने हाथ उठा कर चिल्लाया कि जीसस को हम मारना चाहते हैं; चोर को हम छोड़ने को राजी हैं। 204
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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