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________________ आदर्श रोग हैं, सामान्य व स्वयं होना स्वास्थ्य 203 किसी विचार के, बिना पूछताछ के, बिना सीता को कोई न्याय दिए सीता को जंगल में फिंकवा दिया। यह अहंकार पति का हो भला, लेकिन यह कोई स्वाभाविक घटना नहीं है । इतने हजार-हजार लोग हैं, हजार-हजार उनके मंतव्य हैं। उनके मंतव्यों के आधार पर अगर कोई जीवन को इस तरह छिन्न-भिन्न करने लगे तो यह जीवन का कोई सामान्य मापदंड नहीं बन सकता। इस आदमी के आस-पास कहानी अच्छी बन सकती है, यह कथा का पात्र होगा, लेकिन यह जीवन का आदर्श नहीं हो सकता। महावीर नग्न हो गए। सर्दी हो, धूप हो, छाया हो, गर्मी हो, नग्न खड़े हैं। इनको आधार नहीं बनाया जा सकता। इनको आधार मान कर अगर लोग नग्न खड़े हो जाएं तो आत्मा को पहचान पाएंगे इसमें तो संदेह है, शरीर को जरूर खो देंगे। लेकिन महावीर के आस-पास कथा गढ़ने की बड़ी सुविधा है। विशिष्ट के पास कथा निर्मित होती है, ध्यान रखना । और कथा को तुम मनोरंजन की तरह लेना, आदर्श मत बना लेना। उसको पढ़ना, समझना । सुंदर है । लेकिन साहित्य की कृति है, जीवन का आधार नहीं बुद्ध पत्नी को छोड़ कर चले गए, घर-द्वार छोड़ जंगल में भाग गए। सभी लोग घर-द्वार छोड़ कर जंगल में भाग जाएं तो बुद्धों का पैदा होना भी बंद हो जाएगा। जीवन उससे गरिमा को उपलब्ध न होगा। जीवन की सारी गरिमा खो जाएगी। और बुद्ध से इस संसार में फूल न खिलेंगे फिर, संसार मरुस्थल जैसा हो जाएगा। उदासी - उदासी के मरुस्थल फैल जाएंगे। दुख और रुदन के सिवाय यहां कुछ भी दिखाई न पड़ेगा। पर बुद्ध की कथा में इस घटना से बड़ा कुतूहल आ जाता है। और बुद्ध की कथा एक अनूठापन ले लेती है। अनूठे लोग कथाओं के लिए ठीक हैं; जीवन के लिए तो सामान्य ही सूत्र है । जब तुम जीवन को बनाना चाहो तो कभी किसी अनूठी बात के प्रभाव में जीवन को मत बनाना । अन्यथा तुम रुग्ण होओगे; तुम परेशान होओगे । और फिर यह भी हो सकता है कि जो महावीर को हुआ, जो बुद्ध को हुआ, जो राम को हुआ, वह उनके लिए स्वाभाविक रहा । तुम अपने स्वभाव की परख करना । और तुम अपने स्वभाव को ही अपने जीवन का मापदंड बनाना। अगर तुमने आदर्श को अपने जीवन का मापदंड बनाया तो तुम एक कारागृह में जीने लगोगे । वह आदर्श तो कभी पूरा न होगा, क्योंकि स्वभाव के प्रतिकूल कुछ भी पूरा नहीं हो सकता । न पूरा होने के कारण तुम हमेशा दंश से पीड़ित रहोगे, तुम हमेशा अपने को हीन मानते रहोगे कि यह आदर्श पूरा नहीं हो रहा, मुझ जैसा क्षुद्र कौन ! पापी ! पतित ! तुम पापी पतित अपने आदर्श के कारण हो रहे हो; तुम पापी पतित हो नहीं । तुम्हें पापी और पतित होने का खयाल इसलिए पैदा हो रहा है कि तुमने एक आदर्श बना लिया जो पूरा नहीं होता । तुमने कसम ले ली. ब्रह्मचर्य की जो पूरी नहीं होती । अब तुम पापी हो गए। न ली होती कसम तो ? और न तुमने ब्रह्मचर्य का आदर्श होता तो? तो तुम पापी होते ? एक और ब्रह्मचर्य है जो कामवासना की स्वाभाविकता में से खिलता है, किसी आदर्श के कारण नहीं; अपने जीवन को जीने की प्रक्रिया से ही निकलता है, किसी दूसरे के जीवन के पीछे चलने के कारण नहीं। अपने ही जीवन आविर्भाव में एक क्षण आता है। कामवासना तुम्हारी है, ब्रह्मचर्य भी तुम्हारा ही होगा तभी सत्य होगा। तुम दूसरे से ब्रह्मचर्य सीखते हो; कामवासना तुमने किससे सीखी है? तुम कामवासना सीखने पापियों के पास नहीं जाते तो ब्रह्मचर्य सीखने के लिए पुण्यात्माओं के पास क्यों जाते हो? जब कामवासना प्रकृति से मिली है तो तुम कामवासना की प्रकृति को ही समझो, कामवासना की प्रकृति को बोधपूर्वक जीओ। और उसी से आने दो तुम्हारे ब्रह्मचर्य को । तभी तुम्हारे जीवन में वास्तविक फूल आएगा। आदर्श थोथे हैं, क्योंकि उधार हैं। और आदर्श तुम बाहर से थोपोगे, भीतर की समझ से नहीं निकलेंगे। वे तुम्हारे भीतर के प्रकाश से न आएंगे, बाहर के संस्कार से आएंगे। वे नैतिक होंगे, धार्मिक न होंगे।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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