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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ उन्होंने कहा, हां। तो मैंने कहा, पूरा खतरा है। आप चिकित्सक को दिखाएं, और इसको गौरव मत मानें। उन्हें कुछ मेरी बात पर भरोसा आया, क्योंकि बेचैनी तो उनको भी अनुभव होती थी। प्रशंसा के कारण वे कभी किसी को बेचैनी कहते नहीं थे। चिकित्सक को दिखाया तो पाया कि वे तो बड़े महारोग से ग्रस्त हैं जिसका कोई इलाज नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति का ऊंचाई का मापदंड पहले वीर्याणु में छिपा होता है। उसमें ब्लू-प्रिंट छिपा होता है कि वह छह फीट ऊंचा होगा, कि पांच फीट ऊंचा होगा। उतनी ऊंचाई, जैसे ही व्यक्ति कामवासना की दृष्टि से प्रौढ़ होता है, पूरी हो जाती है। उसके बाद ऊंचाई का बढ़ना खतरनाक है। और उसके बाद ऊंचाई का बढ़ता ही जाना, और उनकी उम्र अब तो कोई अट्ठाइस वर्ष थी, अभी भी ऊंचाई बढ़ रही है तो उसका अर्थ ही यह है कि ब्लू-प्रिंट कहीं खो गया, कोई प्राकृतिक भूल हो गई, और सेल को पता नहीं है कि अब कहां रोकना; रुकने की व्यवस्था भीतर नहीं है। जिस दिन से वे चिकित्सकों के पास गए उस दिन से उनकी अकड़ चली गई। न केवल अकड़ चली गई, बल्कि उलटी हालत हो गई। वे अब झुक कर चलने लगे और छिपाने लगे ऊंचाई को। मैंने कहा कि अब यह दूसरा रोग मत पालो। पहला रोग यह था कि तुम अकड़े हुए थे कि बड़ी ऊंचाई है . तुम्हारी, तुम जैसे मापदंड थे। और तुम्हारे आस-पास सब बौने मालूम पड़ते थे। और तुम प्रत्येक को एक हीनता की ग्रंथि से भर रहे थे। अब बीमारी उलटी पकड़ रहे हो तुम। अब इसका इलाज करो, लेकिन अब दूसरी हीनता मत पकड़ो कि तुम झुक कर चलो, कि तुम छिपाओ। जिन व्यक्तियों को मैं विशिष्ट कहता हूं, इसी अर्थ में कह रहा हूं। कहीं इस जीवन का सामान्य सूत्र खो गया है। तुम कितना ही उनका सम्मान करो, कहीं बुनियादी भूल है। उसके कारण वे, जीवन की जो सहज व्यवस्था है, उससे भिन्न हो गए हैं। समझो। चाहे वे कितने ही बड़े व्यक्ति हों, इससे कोई भेद नहीं पड़ता। क्योंकि लाओत्से या मेरे लिए बड़े से बड़ा व्यक्ति वही है जो अति सामान्य हो जाए। क्योंकि सामान्य में छिपा है स्वभाव। सत्य सार्वभौम है। सत्य कोई विशिष्टता नहीं है। सत्य तो कण-कण में छिपा है। वह जो स्वभाव के अनुसार बहने की. व्यवस्था है वही सत्य है। तो जो अति सामान्य है, जिसमें तुम कुछ भी विशिष्ट न खोज पाओगे, वही स्वास्थ्य का मापदंड है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। धृतराष्ट्र की कथा में उल्लेख है कि उन्होंने जिस स्त्री से विवाह किया, गांधारी से-तो धृतराष्ट्र तो अंधे थे-गांधारी ने पति के प्रेम में अपनी आंखें बंद कर ली और जीवन भर आंखें न खोली, पट्टी बांधे रही। गांधारी का उल्लेख किया जाता है कि स्त्री हो तो ऐसी हो। एक आदमी अंधा है, उसकी पत्नी के पास चार आंखें होनी चाहिए। न कि अपनी और दो आंख बंद कर लेना। पति के लिए जरूरत थी पत्नी की जो कि आंख वाली हो। पति को आंख की कमी है; आंख की कमी पूर्ति होनी थी। लेकिन गांधारी को कहानियां कहती हैं, प्रेम में उसने अपनी दोनों आंखें भी करीब-करीब फोड़ लीं, क्योंकि कभी खोली नहीं। बड़ी प्रशंसा है शास्त्रों में गांधारी की कि पत्नी हो तो गांधारी जैसी। यह पत्नी थोड़ी सी विशिष्ट है, लेकिन स्वाभाविक नहीं। कथा इसके आधार पर अच्छी बनेगी, क्योंकि स्वाभाविक मनुष्य के आधार पर कोई कथा नहीं बन सकती। इसलिए पुराणों में तो कथा ही उनकी लिखी होती है जो कुछ स्वभाव से भिन्न, अन्यथा हो गए होते हैं। स्वाभाविक आदमी की क्या कथा? एक धोबी ने कह दिया कि सीता के आचरण पर शक है और राम ने उसे निकाल कर फेंक दिया। अब राम जो हैं वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। पति हो तो ऐसा! अगर सभी लोग ऐसा करें तो एक भी पत्नी घर में न रह पाएगी। क्योंकि धोबियों की कोई कमी है? बिना 202
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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