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नुष्य को जिस बड़ी से बड़ी बीमारी ने पकड़ा है और जिससे कोई छुटकारा होता दिखाई नहीं पड़ता, उस बीमारी का नाम है आदर्श। समझना कठिन होगा, क्योंकि हम सब उसी बीमारी में दीक्षित किए गए हैं।
और हम इस कुशलता से दीक्षित किए गए हैं कि आदर्श हमें बीमारी नहीं मालूम पड़ती, जीवन का लक्ष्य मालूम पड़ता है। लगता है वही परम ध्येय है। बीमारी ही स्वास्थ्य की तरह हमें समझाई गई है। और हमारे मन पूरी तरह से बीमारी से ही भर दिए गए हैं। दूध पीने के साथ बच्चे को आदर्श का जहर दिया जा रहा है। आदर्श का अर्थ है : तुम किसी और जैसे होने की कोशिश करना। एक बात भर आदर्श समझाता है कि तुम अपने जैसे मत होना, किसी और जैसे होना; कोई
महावीर, कोई बुद्ध बनना। जैसे तुम अपने लिए पैदा नहीं हुए हो। जैसे यहां तुम इसलिए हो कि किसी और का अभिनय करो। जैसे यहां तुम उधार जीवन जीने को पैदा हुए हो। जैसे परमात्मा के द्वारा तुम तिरस्कृत हो। और कोई और व्यक्ति तुम्हारा आदर्श है जिसके अनुसार तुम्हें अपने को ढालना है।
बस फिर तुम्हारे जीवन में सब रुग्ण हो जाएगा। जिस व्यक्ति ने स्वयं होने को छोड़ा और कुछ और होने की कोशिश की, उसके रोगों का कोई अंत नहीं है। वह रोज नए रोग खड़े कर लेगा; क्योंकि उसकी पूरी जीवन-शैली ही रुग्ण है। व्यक्ति, समाज, राज्य, सभी आदर्श से अनुप्राणित होकर चल रहे हैं। इसलिए जगत एक पागलखाना हो गया; पृथ्वी रुग्णचित्त लोगों की भीड़ हो गई है।
लाओत्से कहता है, सामान्य को ध्यान में रखो, असामान्य को नहीं। और सामान्य के द्वारा अनुशासन हो, सामान्य के आधार पर अनुशासन हो। राज्य, समाज, व्यक्ति सामान्य को सूत्र मान कर चलें। सामान्य नियम हो, असामान्य नहीं।
___ इसे थोड़ा समझें। असामान्य व्यक्ति कथा के आधार बन जाते हैं, क्योंकि वे विशिष्ट होते हैं। विशिष्ट यानी भिन्न। मैं विशिष्ट शब्द का उपयोग किसी आदर के कारण नहीं कर रहा हूं। सामान्य से भिन्न होते हैं।
मैं एक महाविद्यालय में अध्यापक था। नया-नया पहुंचा; एक शिक्षक से मेरा परिचय करवाया गया। शिक्षक की ऊंचाई साढ़े सात फीट थी। जिन मित्र ने परिचय करवाया उन्होंने बड़ी प्रशंसा की कि देखिए, ऊंचाई हो तो ऐसी हो! मैंने उन मित्र को देखा। सभी उनकी प्रशंसा करते रहे होंगे; शायद मैं पहला ही आदमी था जिसने उन्हें चेताया। मैंने कहा कि मैं समझता हूं कि आपकी ग्लैंड्स ठीक से काम नहीं कर रही हैं; यह ऊंचाई रोग है। आप चिकित्सक को दिखाएं, कहीं कोई गड़बड़ हो गई है। क्योंकि आपकी आंखें बाहर निकली पड़ रही हैं। आपका शरीर स्वस्थ नहीं मालूम पड़ता, शांत नहीं मालूम पड़ता; कोई बड़ी गहन बेचैनी भीतर है। और मैंने उनसे पूछा कि क्या अभी भी आपकी ऊंचाई बढ़ रही है?
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