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सत्य कह कर भी नहीं कहा जा सकता
तुम पहाड़ पर जाओ, तुम्हें बड़ी बेचैनी लगेगी। शोरगुल याद आएगा बाजार का।
मैं एक नगर में जहां रहता था एक मित्र के बंगले में, वह थोड़ा गांव के बाहर था। मित्र मेरे कारण आने को उत्सुक थे, लेकिन पत्नी सख्त विरोध में थी। मैंने पूछा कि कारण क्या है? तो उसने कहा, यहां कोई न बाजार, न शोरगुल; सड़क पर भी जाकर खड़े हो जाओ तो कोई निकलता ही नहीं है, देखने को कुछ भी नहीं।
. वह जिंदगी भर बाजार में रही; वहां छज्जे पर खड़े होकर नीचे का सारा उपद्रव देखती रही। आधी रात तक शोरगुल जारी रहता। सुबह पांच-चार बजे फिर उपद्रव शुरू हो जाता। सामने ही सिनेमाघर, वहां निरंतर भीड़ लगी रहती। उस बंगले की शांति उसे बड़ी कठिन पड़ी। और जैसे ही मैंने वह गांव छोड़ा वे वापस अपने शहर के घर में चले गए। मुझे पीछे मिलने आए तो पत्नी बोली कि अब बड़ा सब ठीक है।
शोरगुल की आदत! शोरगुल न हो तो ऐसा लगता है कि मर गए, कुछ जीवन ही नहीं है। लोग बाजार में घूमने जाते हैं, लोग उपद्रव की तलाश करते हैं। स्वाद लग गया उपद्रव का। जब भी शांति होती है तभी उनको बेचैनी लगती है कि कुछ गड़बड़ हो रहा है। यह जो बुद्धि का शोरगुल है इसके भी तुम आदी हो गए हो। इस आदत को छोड़ो।
'यही रहस्यमयी एकता है।'
और क्या होगा फिर? अगर छिद्र हो जाएं बंद, द्वार हो जाएं बंद, धारों को घिस डाला जाए, ग्रंथियां खुल जाएं, बुद्धि का प्रकाश शांत हो जाए, भीतर चलता बाजार बंद हो जाए; क्या होगा? लाओत्से कहता है, एक रहस्यमयी एकता का जन्म होता है। तुम एक हो जाओगे। तुम्हारी अनेकता समाप्त हो जाएगी। तुम्हारे खंड-खंड सब जम कर अखंड हो जाएंगे। वही पाने योग्य है। वही एक सत्य है।
जो उसे जान लेता है वह कैसे उसे कहे? जो उसे जान लेता है वह बिना कहे कैसे रहे? वह स्वाद ही ऐसा है; कहा नहीं जा सकता और कहे बिना नहीं रहा जा सकता। __ 'तब प्रेम और घृणा उसे नहीं छू सकतीं।
जिसने इस रहस्यमयी एकता को उपलब्ध कर लिया वह सभी द्वंद्वों के पार हो गया। अब दो का कोई अर्थ न रहा। जो-जो चीजें दो हैं अब उसे नहीं छू सकतीं। अब प्रेम और घृणा उसे नहीं छू सकतीं। अब वह दोनों के मध्य में स्थिर हो गया जहां करुणा का वास है। करुणा न तो घृणा है, करुणा न तो प्रेम है। या करुणा में कुछ है जो प्रेम जैसा है और करुणा में कुछ है जो घणा जैसा है।
इसे थोड़ा समझ लो। क्योंकि करुणा बड़ा रहस्यपूर्ण तत्व है जो उस एक के साथ आता है। करुणा में कुछ प्रेम जैसा है। क्योंकि करुणा तुम्हें रूपांतरित करना चाहेगी। करुणा तुम्हें आनंदित देखना चाहेगी। करुणा तुम्हें परम सुख की तरफ ले जाने में सहारा देना चाहेगी। करुणा, तुम धूप में थके-मांदे आए हो, तुम्हारे लिए छाया बनना चाहेगी। करुणा में कुछ प्रेम जैसा है। लेकिन करुणा में कुछ घृणा जैसा भी है, क्योंकि तुम्हारे भीतर जो-जो गलत है करुणा उसे मिटाना चाहेगी, नष्ट करना चाहेगी। तुम जैसे हो, करुणा तुम्हें वैसा ही नहीं बचाना चाहेगी। प्रेम तुम्हें वैसा ही बचाना चाहता है; करुणा तुम्हें बदलना चाहेगी। तुम्हारा क्रोध, तुम्हारी धारों को घिस डालेगी, तोड़ेगी।
करुणा तुम्हारी मित्र है, अगर तुम्हारी अंतिम नियति को खयाल में रखा जाए; करुणा तुम्हारी दुश्मन है, अगर तुम्हारी आज की वास्तविकता को समझा जाए। करुणा तुम्हें मिटाएगी और बनाएगी। करुणा तुम्हें मारेगी तुम जैसे हो,
और जन्माएगी तुम्हें जैसे तुम होने चाहिए। तो करुणा में घृणा का तत्व भी होगा, विध्वंसक, और करुणा में प्रेम का तत्व भी होगा, सृजनात्मक। करुणा दोनों जैसी है और दोनों जैसी भी नहीं है। क्योंकि अगर तुम करुणावान व्यक्ति की न सुनो तो वह बेचैन न होगा, जैसा कि प्रेम बेचैन होता है। नहीं सुनी, तुम्हारी मर्जी। इससे कुछ करुणावान आदमी को तुम चिंतित न कर पाओगे। करुणा घृणा से भी भिन्न है। क्योंकि जिसको हम घृणा करते हैं, अगर उसको
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