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सत्य कह कर भी नहीं कहा जा सकता
उन जगहों पर पहुंच जाती है जो भूख के लिए बने नहीं हैं। तब सब चीजें भीतर उलझ जाती हैं। तुम बाहर से साफ-सुथरे दिखाई पड़ते हो, कि तुम्हारे हाथ हाथ हैं, आंख आंख है, कान कान है, लेकिन भीतर सब गड़बड़ है, भीतर सब उलझा हुआ है और ग्रंथियां पड़ गई हैं। ये ग्रंथियां सुलझ जानी चाहिए। कैसे यह होगा?
एक-एक ग्रंथि को अपनी जगह लाने की कोशिश करो। भूख पेट की होनी चाहिए। घड़ी के कारण भूख नहीं लगनी चाहिए। जब भूख लगे तभी खाओ। कभी ऐसा हो कि आज भूख नहीं है तो मत खाओ। कोई आवश्यकता नहीं है। तुम उपवास भी करते हो, वह भी मन का होता है। वह भी पेट का नहीं होता; वह भी झूठा है। पेट का उपवास तब है जब पेट कह रहा है कि मुझे नहीं खाना, भूख नहीं है। बात खतम हो गई। मत खाओ। क्योंकि जब भूख ही नहीं है तो भोजन जहर हो जाएगा। और तब उलझन बढ़ती जाएगी।
और जब भूख नहीं होती तब अगर खाना हो तो स्वाद पर ध्यान देना पड़ता है, जो कि मन का है, जो कि पेट का नहीं। पेट को स्वाद से क्या लेना-देना? पेट में कोई स्वाद का उपाय भी नहीं है। पेट को स्वाद का पता भी नहीं चलता है। स्वाद मन का है, पेट का कोई स्वाद ही नहीं है। और जब पेट में भूख न हो तो फिर तुम्हें झूठी भूख पैदा करने के लिए स्वाद का उपाय करना पड़ता है। तब तुम ऐसी चीजें खाना शुरू कर देते हो जिनका कोई भी मूल्य शरीर के लिए नहीं है। आइसक्रीम खा रहे हो; उसका कोई मूल्य शरीर के लिए नहीं है। नुकसानदायक है शरीर के लिए। लेकिन मन का स्वाद है। मिठाइयां खा रहे हो, जिनका शरीर के लिए कोई भी मूल्य नहीं है। घातक है। लेकिन मन के लिए मूल्य है। मन के लिए स्वाद है उनमें।
और ध्यान रखना, जब तुम स्वाद से खाओगे तो तुम ज्यादा खा जाओगे। क्योंकि तुम शरीर की सुनोगे ही नहीं। मन कहेगा, थोड़ा और खा लो। अभी क्या बिगड़ा है, अभी थोड़ा और खा सकते हो। अभी और थोड़ी जगह है। पेट से तो तुम पूछते ही नहीं। यह उलझाव है। यह ग्रंथि है।
तब ऐसा आदमी उपवास करे तो भी मन से ही करेगा। वह कहेगा कि अब ये पर्युषण आ गए जैनियों के, अब उपवास करना है; कि रमजान के दिन आ गए मुसलमानों के, अब उपवास करना है। शरीर के लिए कोई रमजान है? कोई पर्युषण है? शरीर के लिए तो तब उपवास है जब शरीर रुग्ण अनुभव कर रहा है, खाने की इच्छा नहीं है। शरीर कह रहा है कि नहीं कोई भूख है, तब शरीर का उपवास। वह उपवास शुद्ध है, वह कीमती है। उस उपवास से तुम्हें लाभ होगा। उस उपवास से तुम्हारी वास्तविक भूख जगेगी। लेकिन मन का उपवास झूठा है कि पर्युषण के दिन हैं, रमजान है, इसलिए उपवास कर रहे हैं। तुम शरीर को नुकसान पहुंचा रहे हो। तुमने खाकर भी शरीर को नुकसान पहुंचाया; तुम उपवास करके भी नुकसान पहुंचा रहे हो।
तुम नुकसान पहुंचाने में ऐसे कुशल हो गए हो कि तुम कुछ भी करो, तुम नुकसान पहुंचाते हो। भूख लगे तब भोजन, नींद आए तब नींद, प्यास लगे तब पानी। लेकिन कोका-कोला दिखाई पड़ गया, प्यास नहीं लगी है, और एक तरह की प्यास लगती है जो झूठी है। तुम्हें एक क्षण पहले तक कोई पता नहीं था कि प्यास लगी है। कोका-कोला दिखाई पड़ गया। पेट को कोका-कोला से क्या लेना-देना है? लेकिन मन को स्वाद आ गया, मन को अतीत की याद आ गई। पहले भी कोका-कोला पीया है, बड़ा स्वादिष्ट था। अब एक रस जगा, जो झूठा है। अब तुम एक ग्रंथि पैदा कर रहे हो।
मन कहता है, कल संभोग किया था बड़ा सुख आया, आज भी संभोग करो। यह शरीर की भूख नहीं है।
शरीर की भूख एक-एक इंद्रिय की अलग-अलग है। तुम अगर इंद्रिय की भूख को सुनो तो तुम भोजन ठीक से कर पाओगे। और जो भोजन ठीक से कर पाता है उसके जीवन में उपवास की भी जगह हो जाती है। तुम अगर कामेंद्रिय की बात सुनोगे तो कभी-कभी संभोग जीवन में होगा, और बड़ा कीमती होगा। और उसका अनुभव बड़ा
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